
- सरकार ने सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन नियमों में संशोधन किया है. अब 79 प्रतिशत प्लांट्स को फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन सिस्टम लगाने से छूट दे दी गई है.
- अधिसूचना के अनुसार, प्रदूषण के हॉटस्पॉट से दस किलोमीटर से दूर स्थित अधिकांश कोयला प्लांट्स को नए नियमों के तहत छूट मिली है.
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विश्लेषण के बाद यह निर्णय लिया गया कि सल्फर स्तर एयर क्वालिटी लिमिट के अंदर है और FGD सिस्टम की जरूरत कम हुई है.
पिछले दिनों एक ऐसा फैसला आया है जिसके बाद माना जा रहा है कि देश में पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को दूर किया ही जा सकेगा. भारत ने कोयले से बिजली बनाने वाले प्लांट्स के लिए सल्फर उत्सर्जन नियमों को आसान बनाते हुए नियमों को बदला है. 11 जुलाई यानी शुक्रवार को पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया है.
क्या है नोटिफिकेशन में
इस नोटिफिकेशन के अनुसार ज्यादातर कोयला प्लांट्स के लिए सल्फर उत्सर्जन नियमों को बदला गया है. साथ ही 79 प्रतिशत प्लांट्स को फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम लगाने से छूट दी है. ये ऐसे प्लांट्स हैं जो प्रदूषण के हॉटस्पॉट से 10 किलोमीटर से ज्यादा दूर स्थित हैं. जो आदेश सरकार की तरफ से आया है उसके बाकी 11 प्रतिशत प्लांट्स की मामले-दर-मामला समीक्षा की जाएगी. जबकि 10 प्रतिशत प्लांट्स जो दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों के करीब हैं, उन्हें दिसंबर 2027 तक आदेश का पालन करना होगा.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का विश्लेषण
जो अधिसूचना केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जारी की गई है, वह विभाग की तरफ से किए गए एक विस्तृत विश्लेषण के बाद जारी की गई है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से नियंत्रण उपायों के कार्यान्वयन की वजह से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में इजाफे पर एक डिटेल्स एनालिसिस की गई थी. नोटिफिकेशन के अनुसार भारत ने 2015 में देश में कोयला और लिग्नाइट बेस्ड थर्मल पावर प्लांट्स के लिए सल्फर डाई ऑक्साइड स्टैंडर्ड जारी किए थे. इनमें कुछ समय सीमाएं थीं जिन्हें बाद में बदला गया था.
कई बार इन समय सीमाओं को बढ़ाया गया लेकिन फिर भी 92 फीसदी कोल बेस्ड पावर प्लांट्स ने कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कोई भी फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन यूनिट्स इंस्टॉल नहीं की है. विशेषज्ञों की मानें तो सल्फर एक अहम वायु प्रदूषक है जो सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5) में बदल जाता है और फिर कई तरह की बीमारियों की बड़ी वजह बनता है.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
देश के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय पैनल इस नतीजे पर पहुंचा था कि पर्यावरण में सल्फर का का स्तर पहले से ही एयर क्वालिटी लिमिट के अंदर है और इसके बाद FGD की जरूरत नहीं रह गई है. कई विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि देश भर में FGD लागू करने से साल 2030 तक कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में 69 मिलियन टन की वृद्धि हो सकती है, जबकि सल्फर डाई ऑक्साइड में सिर्फ 17 मिलियन टन की कमी आएगी. उनका मानना था कि यह भारत के कार्बन लक्ष्यों को कमजोर करेगा.
वहीं अगर ऐसे प्लांट्स उत्सर्जन मानकों को पूरा किए बिना अनुबंध में तय तारीख के बाद भी ऑपरेशन जारी रखते हैं, तो उनसे 31 दिसंबर, 2030 से उत्पादित बिजली पर 0.40 रुपये प्रति यूनिट की दर से पर्यावरण क्षतिपूर्ति ली जाएगी.
यह अधिसूचना ऐसे समय में आया है जब भारत की शीर्ष बिजली उत्पादक कंपनी, एनटीपीसी ने करीब 11 फीसदी बिजली संयंत्रों में उपकरण लगाने पर लगभग 4 अरब डॉलर खर्च किए हैं. साथ ही करीब 50 फीसदी यूनिट्स ने या तो डीसल्फराइजेशन सिस्टम के लिए ऑर्डर दे दिए हैं या उन्हें लगा रही है. शुक्रवार के नोटिफिकेशन में इन बिजली संयंत्रों की प्रतिस्पर्धात्मकता या लागत वसूली पर पड़ने वाले प्रभाव का कोई जिक्र नहीं किया गया है.
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