प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
केंद्र सरकार त्योहार के मौके पर पटाखों पर बैन के पक्ष में नहीं है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि पटाखों को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन मौजूद है। केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि पटाखे ही प्रदूषण का इकलौता कारण नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई बुधवार को करेगा।
गौरतलब है कि तीन बच्चों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस देकर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि इस बारे में क्या कदम उठाए जाने चाहिए। इसी मामले में केंद्र ने कोर्ट में कहा है कि पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में गाइडलाइन जारी की थी और आदेश दिए थे कि सुबह छह से रात 10 बजे तक ही पटाखों की इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में पटाखों पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। वैसे भी पटाखे प्रदूषण का इकलौता कारण नहीं हैं।
इस बीच एक संगठन ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि पटाखों पर बैन नहीं लगाया जाना चाहिए, क्योंकि ये लोगों की आस्था से जुड़ा है। सदियों से ये परंपरा चलती आई है। दरअसल 6 से 14 महीने के बच्चों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर साफ हवा में सांस लेने के अधिकार की मांग करते हुए निर्देश देने की मांग की है। याचिका में मांग की गई है कि दीवाली जैसे त्योहारों पर पटाखों की ब्रिकी पर रोक लगाई जाए।
अर्जुन गोपाल, आरव भंडारी और जोया राव नामक इन बच्चों की ओर से उनके पिताओं ने दायर जनहित याचिका में कहा है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के चलते हालात खराब हो रहे हैं। दिल्ली में त्योहार के वक्त पटाखों की वजह से कई बीमारियां भी हो रही हैं। इसके अलावा रोक के बावजूद खुले में मलबा भी फेंका जा रहा है। राजधानी के आसपास करीब 500 टन फसलों के अवशेष को जलाया जाता है। इतना ही नहीं ट्रकों की वजह से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और इनकी वजह से फेफड़े संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट कोई ठोस दिशा निर्देश जारी करे और प्रदूषण पर रोक लगाए।
गौरतलब है कि तीन बच्चों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस देकर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि इस बारे में क्या कदम उठाए जाने चाहिए। इसी मामले में केंद्र ने कोर्ट में कहा है कि पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में गाइडलाइन जारी की थी और आदेश दिए थे कि सुबह छह से रात 10 बजे तक ही पटाखों की इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में पटाखों पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। वैसे भी पटाखे प्रदूषण का इकलौता कारण नहीं हैं।
इस बीच एक संगठन ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि पटाखों पर बैन नहीं लगाया जाना चाहिए, क्योंकि ये लोगों की आस्था से जुड़ा है। सदियों से ये परंपरा चलती आई है। दरअसल 6 से 14 महीने के बच्चों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर साफ हवा में सांस लेने के अधिकार की मांग करते हुए निर्देश देने की मांग की है। याचिका में मांग की गई है कि दीवाली जैसे त्योहारों पर पटाखों की ब्रिकी पर रोक लगाई जाए।
अर्जुन गोपाल, आरव भंडारी और जोया राव नामक इन बच्चों की ओर से उनके पिताओं ने दायर जनहित याचिका में कहा है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के चलते हालात खराब हो रहे हैं। दिल्ली में त्योहार के वक्त पटाखों की वजह से कई बीमारियां भी हो रही हैं। इसके अलावा रोक के बावजूद खुले में मलबा भी फेंका जा रहा है। राजधानी के आसपास करीब 500 टन फसलों के अवशेष को जलाया जाता है। इतना ही नहीं ट्रकों की वजह से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और इनकी वजह से फेफड़े संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट कोई ठोस दिशा निर्देश जारी करे और प्रदूषण पर रोक लगाए।
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