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This Article is From Sep 05, 2016

सिर्फ पत्थर फेंकने वालों की बात सुन रही सरकार, प्रतिनिधिमंडल के रुख से जम्मू वासी खफा

सिर्फ पत्थर फेंकने वालों की बात सुन रही सरकार, प्रतिनिधिमंडल के रुख से जम्मू वासी खफा
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का काफिला.
नई दिल्ली: कश्मीर का डेढ़ दिन का दौरा करने के बाद सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने जम्मू में मात्र चार घंटे गुजारे. जम्मू के लोगों को लग रहा है कि प्रतिनिधिमंडल ने कश्मीर के लोगों की बात सुनी और और मात्र कुछ घंटों के लिए जम्मू के लोगों से मिले. उन्होंने इसे सिर्फ खानापूर्ति ही करार दिया है.

इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में कश्मीर में शांति बहाली के उद्देश्य से राज्य के दो दिवसीय दौरे पर आया सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू के कन्वेंशन सेंटर दोपहर बाद पहुंचा. यहां समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों से उनकी बातचीत हुई. जम्मू-कश्मीर टैंकर यूनियन, जम्मू बार एसोसिएशन, सामाजिक व धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराया.

वैसे जम्मू के लोग इस बात से काफी खफा हैं कि कश्मीर के लोग लगातार हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं, सुरक्षा बलों पर हमला कर रहे हैं. कश्मीरियत और इंसायिनत की दुहाई देने के बावजूद अलगावावादी और अन्य तबके के लोग बातचीत के लिए बाहर नहीं निकले लेकिन जम्मू के लोग तो सालों से शांतिपूर्वक अपनी बात कहना चाहते हैं लेकिन न तो रियासत की सरकार और न ही केंद्र सरकार उनको तवज्जो देती है.

जम्मू के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश डुग्गर कहते हैं कि केंद्र सरकार यह न भूले कि कश्मीर का रास्ता जम्मू से ही होकर जाता है और कहीं कश्मीर के चक्कर में सरकार जम्मू को न गंवा दे. जम्मू के लोगों की हमेशा से यह शिकायत रही है कि उनके साथ भेदभाव होता आया है. चाहे वह केंद्र की हो या फिर राज्य की सरकार. ज्यादातर फंड कश्मीर के हिस्से में ही आता है, जबकि जम्मू का इलाका कश्मीर से बड़ा है.

जम्मू संभाग की आबादी 62 लाख के करीब है लेकिन दो संसद सदस्य ही चुने जाते हैं जबकि कश्मीर की आबादी 58 लाख है पर तीन सांसद चुने जाते हैं. दो लाख की आबादी वाले लद्दाख से एक सांसद चुना जाता है. ऐसा नहीं कि केवल जम्मू के लोग ही शिकायत करते हैं, लद्दाख के लोगों की भी ऐसी ही शिकायत है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर में सिर्फ कश्मीर ही दिखता है. यही वजह है आज सरकार पत्थर फेंकने वालों की बात तो सुन रही है लेकिन पत्थर रोकने वालों की बात अनसुनी कर रही है.

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