भारत ने G-20 की अध्यक्षता में सिर्फ अपनी समस्याएं नहीं उठाई, 125 देशों की भी ली राय: विदेश मंत्री एस जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, "हम 125 देशों में गए हैं और उनसे जी-20 के मुद्दों के बारे में पूछा. जलवायु संकट बढ़ता जा रहा है. यह कोई अलग डिपार्टमेंट नहीं है. जलवायु आपदाएं नियमित रूप से हो रही हैं."

नई दिल्ली:

जी-20 समिट (G-20 Summit in India) के मद्देनजर NDTV के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर (Dr S Jaishankar) से खास बातचीत की. इस दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि भारत ने जी-20 की अध्यक्षता को कैसे नया आकार दिया. #DecodingG20WithNDTV के तहत   से एक्सक्लूसिव बातचीत में जयशंकर ने कहा, "भारत की G20 की अध्यक्षता अद्वितीय रही है. G20 अपने आप में अद्वितीय है और भारत की अध्यक्षता खास है. क्योंकि कोविड महामारी के बाद और चल रहे संघर्ष (रूस-यूक्रेन युद्ध) के कारण आज दुनिया कहीं अधिक जटिल हो गई है. ऐसी स्थिति में भारत ने उन मुद्दों को उठाया है, जो वसुधैव कुटुंबकम से जुड़े हैं."

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया, "मौजूदा समय में दो डिवाइड (विभाजन) हैं. ईस्ट-वेस्ट डिवाइड, नॉर्थ-साउथ डिवाइड. दोनों डिवाइड के खिलाफ कौन से देश हैं, ये समझना जरूरी है. सवाल ये है कि कौन सा देश है, जो दो डिवाइड के बीच एक मिडिल ग्राउंड पर खड़ा है. इसका जवाब है भारत. भारत आज ग्लोबल साउथ की आवाज है. भारत पड़ोसी देशों के बीच अपनी मिसाल बना रहा है. ग्लोबल साउथ विकास का अक्स है, इनकम का अक्स है. ग्लोबल साउथ एकता का अहसास भी कराता है. ग्लोबल साउथ एक फीलिंग हैं. ये प्रदर्शन का आइना भी है. ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनना बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है, हमने यह नाम खुद नहीं दिया है. लेकिन हम इसका पालन पूरी जिम्मेदारी के साथ कर रहे हैं."

125 देशों से जी-20 के मुद्दों के बारे में पूछा
विदेश मंत्री ने कहा, "हम 125 देशों में गए हैं और उनसे जी20 के मुद्दों के बारे में पूछा. जलवायु संकट बढ़ता जा रहा है. यह कोई अलग डिपार्टमेंट नहीं है. जलवायु आपदाएं नियमित रूप से हो रही हैं. अगर जलवायु परिवर्तन की वजह से सप्लाई चेन पर असर पड़ता है, तो आपकी पूरी अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी. इसलिए हमें इस मुद्दे पर पूरी संजीदगी से काम करना होगा."

हम सभी एक परिवार का हिस्सा
एस जयशंकर ने आगे बताया, "ग्लोबल साउथ जानते हैं कि वे ग्लोबल साउथ हैं. लेकिन क्या आप ऐसा व्यवहार करते हैं? ग्लोबल साउथ वे हैं जो अपने सीमित संसाधनों के बावजूद दूसरे देशों के लिए काम करेंगे, क्योंकि हमें लगता है कि हम सभी एक परिवार का हिस्सा हैं और उनकी समस्या हमारी समस्या है. भारत इसी सोच के साथ दूसरे देशों को साथ लेकर चलने पर काम कर रहा है."

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