
अरविंद नेताम की गिनती मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के कद्दावर आदिवासी नेताओं में होती है. वो इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रहे. इन दिनों नेताम की चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने उन्हें अपने एक कार्यक्रम के लिए नागपुर मुख्यालय में पांच जून को आमंत्रित किया है. एनडीटीवी से हुई बातचीत में नेताम आरएसएस के इस आमंत्रण को लेकर काफी सहज नजर आए. उन्होंने इसे विचारों के आदान-प्रदान का अवसर बताया. उनका कहना था कि आदिवासी समाज की सही तस्वीर रखने के लिए वो आरएसएस के इस कार्यक्रम में जा रहे हैं.
आदिवासी और आरएसएस कितने दूर, कितने पास
नेताम ने कहा कि आदिवासी समाज और आरएसएस में बहुत फासला है. उन्होंने कहा,''मेरा मानना है कि आदिवासी समाज और आरएसएस में संपर्क बहुत कम होता होगा. जब दूरियां होंगी और आपसी संवाद नहीं होगा तो यह फासला और बढ़ेगा. मेरा मानना है कि आरएसएस वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए आदिवासी समाज के जिन लोगों से संपर्क या संवाद करता है, वो लोग सनातन को मानने वाले होते हैं, मुझे लगता है कि इससे आदिवासी समाज की सही तस्वीर उनके सामने नहीं आ पाती होगी.''
अरविंद नेताम उन लोगों में शामिल हैं,जो आदिवासियों को प्रकृति पूजक बताते रहे हैं. वहीं आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठन आदिवासियों को हिंदू बताते हैं. वो आदिवासियों को वृहद हिंदू समाज का हिस्सा बताते हैं. आरएसएस आदिवासियों को वनवासी कहता है, इस टकराव के सवाल पर नेताम ने कहा कि जब तक संवाद नहीं होगा, तब तक एक दूसरे को जानेंगे कैसे. उन्होंने कहा कि अगर एक दूसरे को जान गए तो हो सकता है कि एक कदम हम पीछे हटें या एक कदम वो पीछे हटे, लेकिन यह होगा तभी जब हम एक दूसरे से संवाद करेंगे और विचारों का आदान-प्रदान करेंगे. लेकिन अगर आप उनसे फासला रखेंगे तो यह फासला और बढ़ता जाएगा.

अरविंद नेताम ने 2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से अलग होकर हमर राज पार्टी के नाम से अपना राजनीतिक दल बनाया था.
उन्होंने कहा कि आरएसएस देश-दुनिया की बहुत बड़ी संस्था है, वहां देश और समाज के बहुत से मुद्दों पर चिंतन-मनन होता रहता है. मुझे नहीं लगता कि उससे बड़ी कोई संस्था है, ऐसे में उनके सामने आदिवासी समाज की सही तस्वीर पेश करनी चाहिए, हो सकता है कि उसके बाद वो अपनी सोच में संशोधन करें.
नक्सलवाद से बीजेपी-कांग्रेस का संबंध
आरएसएस ने जिस समय नेताम को अपने मुख्यालय में आमंत्रित किया है, ठीक उसी समय केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह देश से माओवाद के अगले साल तक खत्म करने का दावा कर रहे हैं. शाह जिस माओवाद को खत्म करने का दावा कर रहे हैं, वह भी आदिवासियों की लड़ाई लड़ने का दावा करता रहा है, वहीं आरएसएस भी वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए आदिवासी समाज में सक्रिय रहता है, तो क्या इस समय और आरएसएस के निमंत्रण में कोई संबंध हैं. इस सवाल पर नेताम कहते हैं कि वो नक्सलवाद और माओवाद की समस्या को दूसरे नजरिए से देखते रहे हैं. उनका कहना था कि कांग्रेस मध्यम वर्ग की पार्टी है तो बीजेपी दक्षिणपंथी पार्टी है. उन्होंने कहा कि माओवाद को लेकर कांग्रेस का रवैया थोड़ा साफ्ट रहा है. माओवाद और कांग्रेस में कोई टकराव नहीं रहा है. उन्होंने आरएसएस-बीजेपी के माओवाद से संबंध को सांप और नेवले जैसा बताया.
कांग्रेस की यूपीए सरकार में पी चिंदबरम के गृहमंत्री रहते नक्सलियों के खिलाफ शुरू किए गए अभियानों और झीरम घाटी कांड में कांग्रेस के छत्तीसगढ़ के शीर्ष नेतृ्त्व के मारे जाने के सवाल पर नेताम ने कहा कि किसी राजनीतिक दल और उस पार्टी के नेता के विचार किसी विषय पर अलग-अलग हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में शंकरराव चव्हाण का नजरिया माओवाद को लेकर साफ्ट था, जबकि उनके राज्य महाराष्ट्र में नक्सलवाद की समस्या थी, लेकिन चिदंबरम के राज्य में माओवाद या नक्सलियों की समस्या तो थी ही नहीं, इसलिए उनका नजरिया अलग था. उन्होंने कहा कि बीजेपी के नक्सलियों से रिश्ते तो छत्तीस के हैं, इसलिए जब उनको मौका मिला तो उन्होंने करके दिखाया, उन्हें सफलता या तो मिल गई या मिलने वाली है, इसलिए वो बधाई के पात्र हैं.
अरविंद नेताम ने 2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से अपनी राहें जुदा कर ली थीं. उन्होंने हमर राज पार्टी नाम का राजनीतिक दल बनाकर चुनाव लड़ा था. इस उनकी पार्टी का प्रदर्शन बहुत बढ़िया नहीं रहा था. उनकी पार्टी ने 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन कोई सीट जीत नहीं पाई थी. इन 40 में से पांच सीटों पर उनके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे थे. उनकी पार्टी ने इस चुनाव में 80 से कुछ अधिक वोट जुटाए थे.
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