प्रतीकात्मक तस्वीर
गुजरात:
गुजरात सरकार ने एक बार फिर केन्द्र सरकार से खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने के लिए और समय मांगा है। राज्य सरकार ने कहा है कि यह कानून लागू करने के लिए डेडलाइन बढ़ाई जानी चाहिेए, लेकिन इस मुद्दे पर गुजरात में राजनीति गर्माने लगी है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल ने इस मुद्दे पर गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने गुजरात के विकास मॉडल पर सवाल उठाते हुए कहा कि गुजरात सरकार गरीबों के लिए यह योजना लागू करने में पूरी तरह से विफल रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार अपनी पब्लिसिटी करने में करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन ऐसी अहम योजना लागू करने में लगातार विफल हो रही है। जबकि गुजरात से ज्यादा जनसंख्या वाले बिहार जैसे राज्यों ने इसे लागू कर दिया है।
इस मुद्दे पर गुजरात सरकार चुप है। सरकार के प्रवक्ता नितिन पटेल ने बताया कि उन्हें अभी चिट्ठी नहीं मिली है, जब मिलेगी तभी वो इस पर बात करेंगे, लेकिन उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार अच्छा काम कर रही है। लेकिन कई स्वयंसेवी संगठन भी सरकार के इस ढीले रवैये पर सवाल उठाते रहे हैं। खासकर तब जब राज्य में कुपोषण को लेकर कई चिंताजनक तथ्य सामने आ रहे हैं।
सरकार के अपने ही प्रचार को मानें, तो राज्य में करीब 41 लाख गरीबी रेखा के नीचे के परिवार हैं यानी बहुत बड़ी संख्या में राज्य में गरीब हैं और उन्हें खाद्य सुरक्षा की दरकार है।
हाल ही में इकोनॉमिस्ट जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में भी भारत में कुपोषण पर एक रिपोर्ट आई थी और दावा किया गया था कि कुपोषण के मामले में गुजरात पूरे देश में सबसे बेहाल राज्यों में से एक है। ऐसे में हेमंत शाह जैसे आर्थिक विश्लेषक भी ये आरोप लगा रहे हैं कि राज्य सरकार औद्योगिक निवेश को जितनी प्राथमिकता देती है, उतनी खाद्य सुरक्षा जैसे अहम मसले को नहीं, जो गुजरात मॉडल की नाकामियाबी है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल ने इस मुद्दे पर गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने गुजरात के विकास मॉडल पर सवाल उठाते हुए कहा कि गुजरात सरकार गरीबों के लिए यह योजना लागू करने में पूरी तरह से विफल रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार अपनी पब्लिसिटी करने में करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन ऐसी अहम योजना लागू करने में लगातार विफल हो रही है। जबकि गुजरात से ज्यादा जनसंख्या वाले बिहार जैसे राज्यों ने इसे लागू कर दिया है।
इस मुद्दे पर गुजरात सरकार चुप है। सरकार के प्रवक्ता नितिन पटेल ने बताया कि उन्हें अभी चिट्ठी नहीं मिली है, जब मिलेगी तभी वो इस पर बात करेंगे, लेकिन उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार अच्छा काम कर रही है। लेकिन कई स्वयंसेवी संगठन भी सरकार के इस ढीले रवैये पर सवाल उठाते रहे हैं। खासकर तब जब राज्य में कुपोषण को लेकर कई चिंताजनक तथ्य सामने आ रहे हैं।
सरकार के अपने ही प्रचार को मानें, तो राज्य में करीब 41 लाख गरीबी रेखा के नीचे के परिवार हैं यानी बहुत बड़ी संख्या में राज्य में गरीब हैं और उन्हें खाद्य सुरक्षा की दरकार है।
हाल ही में इकोनॉमिस्ट जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में भी भारत में कुपोषण पर एक रिपोर्ट आई थी और दावा किया गया था कि कुपोषण के मामले में गुजरात पूरे देश में सबसे बेहाल राज्यों में से एक है। ऐसे में हेमंत शाह जैसे आर्थिक विश्लेषक भी ये आरोप लगा रहे हैं कि राज्य सरकार औद्योगिक निवेश को जितनी प्राथमिकता देती है, उतनी खाद्य सुरक्षा जैसे अहम मसले को नहीं, जो गुजरात मॉडल की नाकामियाबी है।
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