Farmers' Protests in Delhi: आंदोलन से निपटने के लिए सरकार ने तैयार किया एक्शन प्लान. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:
मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसानों का आंदोलन फिलहाल बिल्कुल भी कमजोर पड़ता नजर नहीं आ रहा है. किसानों और सरकार के बीच फिलहाल कोई बातचीत भी होती नजर नहीं आ रही है. किसान इन कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं, वहीं सरकार इनमें बस संशोधन करना चाहती है. लेकिन मामला बनता नहीं दिख रहा, वहीं आंदोलन और भी विस्तृत होता जा रहा है, ऐसे में सरकार ने इससे निपटने के लिए आक्रामक रणनीति बनाई है. 10 बिंदुओं में सरकार का एक्शन प्लान तैयार है, जिसके तहत वो अलग-अलग फ्रंट पर इस पूरे मामले से निपटने की कोशिश करेगी.
सरकार का 10-सूत्री एक्शन प्लान
- किसान संगठनों के मतभेद उजागर करना: इसके लिए सरकार लगातार छोटे-छोटे किसान संगठनों से चर्चा कर रही है. कृषि मंत्री इन संगठनों से मुलाकात कर रहे हैं. यह संगठन कृषि कानूनों के पक्ष में बयान दे रहे हैं.
- किसान आंदोलन में घुस आए माओवादी और अलगाववादी ताकतों के बारे में प्रचार करना: वरिष्ठ मंत्री और बीजेपी नेता लगातार टुकड़े टुकड़े गैंग और माओवादी ताकतों, खालिस्तानी ताकतों के बारे में बात कर रहे हैं. एक किसान संगठन ने दिल्ली और महाराष्ट्र हिंसा के आरोप में पकड़े गए लोगों की रिहाई की मांग कर सरकार को और बल दे दिया. विदशों में हुए प्रदर्शनों में खालिस्तानी तत्वों की मौजूदगी ने इन आरोपों को हवा दी है कि इस आंदोलन को अलगाववादी ताकतों का समर्थन है.
- आंदोलनकारी किसान संगठनों में फूट डालना: भारतीय किसान यूनियन के कुछ गुटों से सरकार ने अलग से बातचीत की. बीकेयू भानु गुट से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बात की और नोएडा का रास्ता खुलवाया गया जिसे लेकर इन संगठनों में आपस में ही मतभेद हो गए. अलगाववादी ताकतों को लेकर सरकार के प्रचार के बाद कई किसान संगठनों ने बीकेयू के उग्रान गुट से खुद को अलग किया जिसने मानवाधिकार दिवस पर रिहाई की मांग की थी. बाद में बीकेयू उग्रान ने किसान संगठनों के सोमवार के अनशन से खुद को अलग कर लिया.
- किसानों से बातचीत की पेशकश करना: कृषि मंत्री और अन्य मंत्री कई बार कह चुक हैं कि सरकार आंदोलनकारी किसानों से चर्चा के लिए तैयार है. कृषि मंत्री ने क्लाज बाइ क्लाज चर्चा की फिर पेशकश की. इस तरह सरकार यह संदेश देना चाहती है कि वह अड़ी हुई नहीं है. बल्कि संशोधन की पेशकश कर पीछे हटने का संदेश भी दे चुकी है.
- जनमत तैयार करना: बीजेपी के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री 700 से अधिक जिलों में प्रेस कांफ्रेंस, किसान रैली और चौपालों के माध्यम से कृषि कानूनों के फायदे गिनाएंगे. इस बारे में उठे सवालों का जवाब दिया जाएगा. यह जनमत अपने पक्ष में करने का प्रयास होगा ताकि किसान आंदोलन को देश भर में फैलने से रोका जा सके.
- हरियाणा में सतलुज-यमुना नहर का मुद्दा उठाना: बीजेपी के हरियाणा के सांसदों और विधायकों ने कल कृषि मंत्री और जल संसाधन मंत्री से मांग की है कि सतलुज यमुना नहर के मुद्दा का समाधान किया जाए. यह पंजाब के किसानों के साथ आए हरियाणा के किसानों को भावनात्मक रूप से कमजोर करने का प्रयास है क्योंकि इसे हरियाणा के हक से जोड़कर देखा जाता है.
- हरियाणा में स्थानीय निकाय के चुनाव: राज्य सरकार जल्दी ही स्थानीय निकाय के चुनावों का ऐलान कर सकती है ताकि किसान और प्रभावशाली नेताओं का ध्यान आंदोलन से भटके. राज्य में अगले दो महीनों में चुनाव कराने का प्रस्ताव है.
- नौकरियों के लिए भर्ती का ऐलान: हरियाणा सरकार तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों के लिए भर्ती अभियान चलाने का ऐलान कर सकती है ताकि आंदोलन में जुटे युवाओं को आंदोलन से दूर किया जा सके
- बीजेपी मुख्यमंत्रियों ने संभाली कमान: सभी बीजेपी मुख्यमंत्रियों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने-अपने राज्यों में किसान आंदोलन को न बढ़ने दें. सभी बीजेपी सीएम मीडिया के माध्यम से किसानों के मन में उठी आशंकाओं को दूर करेंगे. इसके लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है.
- विपक्षी दलों की भूमिका उजागर करना: सरकार विपक्षी दलों की दोहरी भूमिका उजागर कर रही है जिन्होंने किसी समय कृषि सुधारों का समर्थन किया था. किसान आंदोलन में राजनीतिक दलों के झंडे दिखने से सरकार कह रही है कि इस आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया है और किसान संगठन विपक्षी दलों के हाथों में खेल रहे हैं.