
आज के दौर में बच्चों के IQ को लेकर खूब ज़ोर है, पर इसके चक्कर में कहीं EQ छूट तो नहीं रहा. EQ मतलब इमोशनल कोशेंट या आम भाषा में कहें तो इमोशनल इंटेलिजेंस. इस पर ध्यान कम लोगों का ही है. बच्चों में आ रही समस्या को लेकर EMONEEDS ने इमोशनल रेगुलेशन इंटरवेंशन प्रोग्राम डिजाइन किया है. स्कूल में जब इसके हिसाब से किशोरियों को प्रशिक्षित किया गया और तब देखा गया कि छात्राओं की सोचने और प्रतिक्रिया देने की शैली में सकारात्मक बदलाव आया.
इस अध्ययन में चंडीगढ़ के कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल की 9 वीं से 12 वीं में पढ़ने वाली 13 से 17 साल के बीच की 32 छात्राओं को शामिल किया गया. 10 मॉड्यूल वाले इस प्रोग्राम में 2 महीने की ट्रेनिंग दी गई. और इसके बाद इन छात्राओं में एक बेहतर बदलाव देखा गया.
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर नीरजा अग्रवाल ने बताया कि किशोर उम्र में इमोशनल इंटेलीजेंस विकसित करना न सिर्फ बच्चों को अवसाद, चिंता और तनाव से बचाता है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और संतुलित व्यक्तित्व को गढ़ने में भी मदद करता है. प्रशिक्षण के दौरान छात्राओं को यह सिखाया गया कि कठिन परिस्थितियों में वे कैसे अपनी भावनाओं को पहचानें, नियंत्रित करें और प्रतिक्रिया देने से पहले सोचें. यह कार्यक्रम खास तौर पर इस उम्र की भावनात्मक जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था.
इंटरवेंशन से पहले और बाद में ‘कॉग्निटिव इमोशन रेगुलेशन क्वेश्चनायर' (CERQ) के ज़रिए मूल्यांकन किया गया. परिणाम में दिखा कि ट्रेनिंग के बाद छात्राओं में स्वीकृति (Acceptance), सकारात्मक पुन: केंद्रीकरण (Positive Refocusing), सकारात्मक पुनर्मूल्यांकन (Positive Reappraisal)', योजना पर ध्यान केंद्रित करना (Refocus on Planning) जैसी चीज़ों में एक बेहतर और सकारात्मक बदलाव दिखा और नकारात्मकता में कमी आई.
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