भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एनडीटीवी को दिए एक विशेष साक्षात्कार में अपनी यात्रा, न्यायपालिका से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे और व्यक्तिगत अनुभवों पर बात की. उन्होंने कहा कि मैं अपनी अंतरात्मा के प्रति हमेशा सच्चा रहा.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने साझा किया कि न्यायाधीश के रूप में उन्हें कई रातें बिना सोए बितानी पड़ीं, जब वह अपने निर्णयों पर विचार करते थे और प्रशासनिक फाइलों को सुलझाते थे. उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में गहरी चिंतनशीलता होती है और एक न्यायाधीश हमेशा निर्णय लेने से पहले खुद से कई महत्वपूर्ण सवाल करता है.
वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी की ओर से एक अखबार में लिखे गए लेख के मुताबिक, 'न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 90 प्रतिशत सही थे और उन्हें ट्रोल नहीं किया जाना चाहिए.' इस सवाल पर चंद्रचूड़ ने कहा कि उनके लिए यह मायने रखता है कि उन्होंने अपनी पूरी क्षमता से काम किया है.
भारत के पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वह अपने काम का मूल्यांकन दूसरों पर छोड़ते हैं. उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि मैं अपनी अंतरात्मा के प्रति सच्चा था और मैंने अपनी पूरी क्षमता से काम किया. लेकिन आज और कल, यह दूसरों का काम है कि वे मेरे काम का मूल्यांकन करें, उसकी आलोचना करें और यह तय करें कि इससे समाज में कोई बदलाव आया है या नहीं.
चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि उनके लिए यह महत्वपूर्ण था कि व्यक्तिगत मामलों के फैसले समाज में बदलाव लाने में सहायक साबित हुए हैं. उन्होंने उदाहरण के तौर पर सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका का उल्लेख किया, "मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मैं किसी महिला लड़ाकू पायलट, युद्ध क्षेत्र में किसी महिला या युद्धपोतों में महिलाओं की तस्वीर देखता हूं. यह एक परिवर्तनकारी कदम है."
चंद्रचूड़ ने बताया कि उनके पिता ने उन्हें हमेशा अपना करियर खुद चुनने की स्वतंत्रता दी और अपने परिवार के लिए समय निकालते हुए कभी भी अपने विचार उन पर थोपे नहीं. वह एक आदर्श स्थापित करते हुए हमेशा समर्थन में खड़े रहे. चंद्रचूड़ ने बताया कि मेरे पिता मेरे लिए केवल एक अभिभावक नहीं, बल्कि एक दोस्त भी थे.
डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं, 'सर्वोच्च न्यायालय अंतिम इसलिए नहीं है क्योंकि वह सदैव सही होता है, बल्कि इसलिए है क्योंकि वह अंतिम होता है. इसी सिद्धांत के आधार पर हमने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अतीत में दिए गए कुछ निर्णयों की समीक्षा की है. 2024 में और उससे पहले भी हमने 1970, 1980 और 1990 के दशकों में हमारे पूर्ववर्ती न्यायाधीशों द्वारा दिए गए कई निर्णयों को पलटा है. इन निर्णयों को पलटने का कारण यह नहीं था कि वे अपने समय में पूरी तरह से गलत थे. संभवत उन निर्णयों का उस समय के समाज पर कुछ प्रभाव रहा होगा और वे उस विशिष्ट सामाजिक संदर्भ में प्रासंगिक रहे होंगे. हालांकि, समय के साथ समाज में बदलाव आया है और उन पुराने निर्णयों का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है. वे आज के समय में अप्रासंगिक हो गए है.
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