- लाल किला ब्लास्ट की जांच से खुलासा हुआ कि आतंकी हमास की तरह छोटे रॉकेट, ड्रोन से हमले की फिराक में थे
- इम्प्रोवाइज्ड रॉकेट, मॉडिफाइड ड्रोन 25 किमी तक की रेंज में तेज और सटीक हमले कर सकते हैं
- ये हथियार कम कीमत में आसानी से बनाए जा सकते हैं और इन्हें चलाने के लिए कोई खास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती
लाल किला ब्लास्ट ने देश में आतंक फैलाने की एक बड़ी साजिश का खुलासा किया है. 'सफेदपोश' आतंकी हमास की तरह छोटे रॉकेट और ड्रोन से हमला करना चाहते थे. हमलों को अंजाम देने के लिए इम्प्रोवाइज्ड रॉकेट और मॉडिफाइड ड्रोन की साजिश थी. आत्मघाती ड्रोन अटैक की भी योजना बनाई गई थी. हमास इस तरह के छोटे, सस्ते मगर दमदार ड्रोन के जरिए बड़े पैमाने पर तबाही मचाता रहा है. एक्सपर्ट्स ने NDTV को बताया कि ये छोटे रॉकेट और हथियारबंद ड्रोन कितने घातक साबित हो सकते थे.
कम कीमत में बड़े हमलों का हथियार
INDOWINGS के संस्थापक सीईओ पारस जैन ने NDTV को बताया कि हमास और कुछ अन्य आतंकी संगठन ग्लाइडिंग रॉकेट्स को काफी इस्तेमाल करते हैं. इनके छोटे विंग्स उड़ान को बैलेंस रखते हैं और दूर तक पहुंचने में मदद करते हैं. ये गाइडेड मिसाइल की तुलना में बेहद सस्ते होते हैं, लेकिन अपनी स्पीड और रेंज से बड़े इलाके को कवर कर सकते हैं.
20 सेकंड में 25KM दूर तक तबाही
- इन हथियारों की रेंज करीब 25 किलोमीटर होती है.
- इन्हें एक से दूसरी जगह लाना-ले जाना आसान होता है.
- एक रॉकेट को महज 20 सेकंड में दागा जा सकता है.
- एक मिनट में 3 रॉकेट छोड़कर तबाही मचाई जा सकती है.
- इन्हें धरती या हाथ से भी छोड़ा जा सकता है.
- एक बार में 2 से 50 किलो तक विस्फोटक ले जाने में सक्षम.
कैसे मचाते हैं भारी तबाही ?
इम्प्रोवाइज्ड रॉकेट अपने सटीक निशाने के लिए चर्चित हैं. कंप्रेस्ड गैस इन्हें रफ्तार प्रदान करती है और विंग्स इन्हें स्टेबल रखते हैं. इन्हें शहरी इलाकों में मीडियम रेंज में टारगेट्स को हिट करने में इस्तेमाल किया जाता है. निशाने पर लगने के बाद ये छोटे-छोटे टुकड़ों में फैल जाते हैं और भारी तबाही मचाते हैं. उन्होंने बताया कि इनके अलावा रेल से छोड़े जाने वाले इम्प्रोवाइज्ड यूएवी (ड्रोन) भी खतरनाक होते हैं. आम ड्रोन में जरूरत के मुताबिक बदलाव करके इन्हें तैयार किया जाता है. ये बहुत तेजी से उड़ते हैं और बड़ी मात्रा में विस्फोटक ले जा सकते हैं.
क्यों हैं हमास के पसंदीदा हथियार?
- इम्प्रोवाइज्ड ड्रोन, रॉकेट्स को एक से दूसरी जगह ले जाना आसान होता है.
- ज्यादा संख्या में बनाए जाएं तो काफी सस्ते पड़ते हैं.
- इनसे एक ही वक्त में कई हमले किए जा सकते हैं.
- ये कम कीमत पर ज्यादा तबाही मचाने में सक्षम होते हैं.
- इन्हें चलाने के लिए मिलिट्री या खास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती.
- हमलावर टारगेट से दूर रहकर भी हमला कर सकता है.
- पुर्जों को जोड़कर इन्हें आसानी से और कम समय में तैयार किया जा सकता है.
आत्मघाती ड्रोन कितने खतरनाक
कुछ ड्रोन आत्मघाती होते हैं और कुछ ड्रोन विस्फोटकों को तयशुदा जगह पर गिराकर हमला करने वाले होते हैं. आत्मघाती ड्रोन निशाने वाली जगह पर जाकर टकरा जाते हैं और धमाका करते हैं. इसमें कमर्शल ड्रोन का इस्तेमाल होता है. उनमें विस्फोटक गिराने के लिए तब्दीलियां की जाती हैं. इन्हें उड़ाने के लिए छोटे सिस्टम नीचे की तरफ फिट किए जाते हैं, जो बिना आवाज किए उड़ते हैं. ये टारगेट के ऊपर पहुंचकर ग्रेनेड या छोटे बम गिराते हैं. ऊपर प्रोजेक्टशन कम होने से नुकसान ज्यादा होता है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि पैसा खर्च करके इस तरह के ड्रोन और रॉकेट हासिल कर लिए जाते हैं, लेकिन उन्हें हमले के लिए तैयार करने में विशेषज्ञता की जरूरत होती है. इन्हें इस्तेमाल करने के लिए पूरी टीम की जरूरत होती है. एक शख्स इन्हें नहीं चला सकता. सटीक निशान पर लगने पर ये भारी तबाही मचाते हैं. ऐसे में अगर राजधानी दिल्ली जैसे भीड़भाड़ वाले घने इलाके में इनका इस्तेमाल किया गया होता तो काफी तबाही हो सकती थी.
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