दिल्ली हाईकोर्ट ने नागपुर केंद्रीय कारागार के अधीक्षक को 2006 के मुंबई ट्रेन धमाका मामले में मौत की सजा पाने वाले दोषी को कुछ किताबें उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.. ये किताबें या तो भौतिक या फिर ऑनलाइन, दोनों ही स्वरूपों में उपलब्ध कराई जा सकती हैं. हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि नागपुर जेल में कैद एहतशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी को चार हफ्ते के भीतर किताबें मुहैया कराई जानी चाहिए. उसने स्पष्ट किया कि निर्धारित अवधि में किताबें न मिलने पर सिद्दीकी अदालत के समक्ष उचित याचिका दाखिल करने के लिए स्वतंत्र है. HC ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के वकील की इस दलील का संज्ञान लिया कि उन्होंने नागपुर केंद्रीय कारागार के प्राधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगर सिद्दीकी जेल में इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए अधिकृत नहीं है तो किताबें खरीदकर उपलब्ध कराई जाएं.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा, “इस रुख को ध्यान में रखते हुए नागपुर केंद्रीय कारागार के अधीक्षक याचिकाकर्ता को चार हफ्ते के भीतर या तो भौतिक रूप में या फिर सॉफ्ट प्रति (ऑनलाइन स्वरूप) के तौर पर किताबें उपलब्ध कराएंगे.” इसी के साथ हाईकोर्ट ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत कुछ किताबों की मुफ्त प्रतियों की मांग से जुड़ी दोषी की याचिका का निस्तारण कर दिया. मंत्रालय के वकील ने कहा था कि दोषी द्वारा मांगी गई किताबें काफी महंगी हैं.सिद्दीकी को 11 जुलाई 2006 को हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में मौत की सजा सुनाई गई है. उस दिन मुंबई में पश्चिमी लाइन की लोकल ट्रेन में एक के बाद एक हुए सात बम धमाकों में 189 लोगों की मौत हो गई थी और 829 अन्य घायल हो गए थे.
अपनी याचिका में सिद्दीकी ने कहा था कि उसने जेल में इग्नू द्वारा प्रदान किए जाने वाले कई पाठ्यक्रमों को मुफ्त में पूरा किया है और विभिन्न विषयों, पुस्तकों और सामग्रियों के बारे में अधिक जानकारी जुटाना चाहता है. उसने दलील दी थी कि चूंकि, जेल के पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की किताबें उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए उसे आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के तहत संबंधित प्रकाशनों या पुस्तकों की भौतिक प्रति उपलब्ध कराई जाए.
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