विज्ञापन
This Article is From Sep 18, 2017

मौत की सजा के लिए फांसी की जगह दूसरा विकल्प? पढ़ें क्या है पूरा मामला

फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल 2 मिनट.

मौत की सजा के लिए फांसी की जगह दूसरा विकल्प? पढ़ें क्या है पूरा मामला
फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
फांसी के लिए कोई और तरीका अपनाने की मांग
फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते हैं
गोली मारने या इलेक्ट्रिक चेयर पर 2 मिनट
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सजा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाए. ऋषि मल्होत्रा द्वारा याचिका में फांसी पर लटकाने रखने हैं. टिल डेथ का प्रावधान करने वाली सीआरपीसी की धारा 354 (5) को रद्द करने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में फांसी को मौत का सबसे बर्बर तरीका बताया है. याचिका में मांग की गई है कि मौत की सजा के लिए फांसी नहीं कोई और तरीका अपनाया जाए. याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल 2 मिनट.

1993 मुंबई बम धमाका : 12 मार्च से लेकर 7 सितंबर तक का सिलसिलेवार ब्योरा...

दरअसल- अदालत किसी दोषी को फांसी की सजा सुनाती है तो कहती है 'हैंग टिल डेथ' जिसका मतलब होता है कि दोषी को तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक उसके शरीर में प्राण बाक़ी है. कानून के हिसाब से भी फांसी देने का यही नियम है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस कानून में संशोधन की मांग की गई है.    

अब फांसी पर नहीं लटकेगा छह लोगों का हत्यारा, सुप्रीम कोर्ट ने दिया 'जीवनदान'

याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संवैधानिक पीठ का हवाला देते हुए कहा गया है कि संवैधानिक पीठ ने यह माना था कि जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है. ऐसे में फांसी सम्मान से मरने के अधिकार के खिलाफ है, इसे बदला जाना चाहिए. याचिका में ये भी कहा गया है कि अगस्त 2015 में लॉ कमीशन ने आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध को छोड़कर सभी जुर्म के लिए सजा-ए-मौत को खत्म करने की वकालत की थी. अपनी सौंपी गई रिपोर्ट में कमीशन ने कहा था कि सिर्फ आतंकवाद और राष्ट्रद्रोह के मामलों में ही फांसी की सजा होनी चाहिए.
प्रणब मुखर्जी: एक ऐसे राष्ट्रपति जो अपराधियों के लिए रहे शामत

कमीशन के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस एपी शाह ने कहा था कि कमीशन के नौ में से छह सदस्य रिपोर्ट से सहमत हैं. तीन असहमत सदस्यों में से दो सरकार के प्रतिनिधि है. रिपोर्ट में कहा गया था कि आंख के बदले आंख का सिद्धांत हमारे संविधान की बुनियादी भावना के खिलाफ है. बदले की भावना से न्यायिक तंत्र नहीं चल सकता. 

लॉ कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि मौजूदा समय में दुनियाभर के 140 देशों में फांसी की सजा खत्म हो चुकी है. भारत में रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में फांसी की सजा देने की बात कही गई है, लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कई बार इस सिद्धांत का मनमाना इस्तेमाल हुआ है. लॉ कमिशन ने कहा था कि उम्रकैद की सजा विकल्प है और उम्रकैद का मतलब उम्रकैद होता है, हालांकि राज्य सरकार सजा में छूट दे सकती है लेकिन कई राज्यों में गंभीर अपराध के मामले में 30 से 60 साल बाद सजा में छूट का प्रावधान है.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com