भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों को आलोचना के लिए तैयार रहना चाहिए. आलोचना अच्छे लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है. सिर्फ़ किसी राजनीतिक दल की आलोचना भर से धारा 153A और 295 A लगाना ठीक नहीं. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट (Delhi Court) ने यह टिप्पणी फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर ( Mohammed Zubair) के मामले में की है. कोर्ट ने जुबैर को 50,000 के मुचलके पर जमानत दी है. यह मामला साल 2018 में ट्वीट कर धार्मिक भावनाएं आहत करने का है. हालांकि, मोहम्मद ज़ुबैर को अभी जेल में ही रहना होगा, क्योंकि वह हाथरस केस में अभी 27 तारीख़ तक न्यायिक हिरासत में हैं.
मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, "लोकतंत्र में सरकार लोगों द्वारा खुली चर्चा के तहत चलती है. लोकतंत्र तब तक फल-फूल नहीं सकता जब तक लोगों को खुले तौर पर अपनी बात रखने की आज़ादी न हो. वाद विवाद ,चर्चा , खुले तौर पर अपना पक्ष रखना एक खुले समाज का सूचक है. हिंदू धर्म सबसे पुराना और सहिष्णु धर्म है, हिंदू धर्म को मानने वाले भी सहिष्णु हैं." कोर्ट ने कहा कि हिंदू इतने सहिष्णु हैं कि देवी देवताओं के नाम पर अपने दफ़्तर, अपने व्यवसाय और यहां तक अपने नाम रखते हैं यानि कोई अपनी संस्था का नाम हिंदू देवी-देवता के नाम पर रखता है तो उस पर IPC की धारा 153A और 295 A लगा देना ठीक नहीं हैं. ये धाराएं तभी लगाई जाएं जब कोई व्यक्ति दुर्भावना से हिंदू देवी-देवताओं के नाम रखे.
इससे पहले, मामले में कल गुरुवार को सुनवाई के दौरान जज ने दिल्ली पुलिस से पूछा था कि जुबैर के ट्वीट की तारीख क्या थी? जवाब में दिल्ली पुलिस की ओर से बताया गया कि यह 2018 का था लेकिन यह एक सतत अपराध (continuing offence) है और इसका असर जून 2022 में भी देखा गया. पुलिस की ओर से कहा गया था कि हालांकि वे दलील दे रहे हैं कि फोटो एक फिल्म से है लेकिन शब्दों का अपना महत्व है. "2014 के पहले और 2014 के बाद" यह ट्वीट में जोड़ा गया. यह फिल्म में नहीं था. इसे दुर्भावनापूर्ण इरादे से करने का प्रयास था. इस पर जज ने पूछा, लेकिन मामला क्या है. आप इस "2014 के पहले और 2014 के बाद" से क्या बताना चाहते हैं. क्या आप कहना चाहते हैं कि यह सरकार की आलोचना है. इस पर दिल्ली पुलिस की ओर से कहा गया था कि यह धर्म से संबंधित है. यदि यह सरकार से जुड़ा होता तो हम दखल नहीं देते.
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