उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, दोपहर की चिलचिलाती धूप... पुलिस ने सख्ती से लागू कर दिया है लॉकडाउन, जिसमें सिर्फ आवश्यक सेवाएं ही जारी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंगलवार रात को टेलीविज़न पर दिए राष्ट्र के नाम संदेश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा करने के बाद पुलिस सारी रात घोषणा करती रही, लेकिन इसके बावजूद बेहद झकझोर देने वालेहालात ने 20-वर्षीय अवधेश कुमार को मजबूर कर दिया कि वह सावधानी को छोड़कर, पुलिस कार्रवाई का खतरा उठाकर भी सड़क पर आ जाए.
अवधेश ने मंगलवार रात को ही उन्नाव स्थित अपनी फैक्टरी से 80 किलोमीटर की दूरी पर बसे बाराबंकी में अपने गांव की तरफ चलना शुरू कर दिया था, और वह गुरुवार सुबह ही घर पहुंच पाएगा, बशर्ते उसे रास्ते में पुलिस ने नहीं रोक लिया. लगभग 36 घंटे के इस सफर में अवधेश कहीं भी रुक नहीं पाएगा, एक-दो बार को छोड़कर. अवधेश का साथ देने के लिए लगभग 20 अन्य बूढ़े-जवान और भी हैं, जो उसके साथ उन्नाव की उसी फैक्टरी में काम करते हैं.
जब अवधेश से पूछा गया कि पीएम मोदी ने मजदूरों से अपील की है कि वे घर ना जाने की बजाय, जहां पर वहीं रहें तो उसने कहा, 'मैं भी यह नहीं करना चाहता, लेकिन कोई विकल्प नहीं है.' अवधेश ने कहा, 'लेकिन मैं कैसे रह सकता हूं. मैं उन्नाव की एक स्टील फैब्रिकेसन कंपनी में काम करता हूं. मैं वहीं रुका हुआ था, जहां उन्होंने रखा था. बीती रात प्रबंधन ने हमें खाली करने के लिए कह दिया. उन्होंने हमसे कहा कि हम यहां नहीं रह सकते. ऐसे में हमारे पास घर जाने के अलावा क्या विकल्प है. परिवहन की सुविधा नहीं है. इसलिए हम कुछ एक ही गांव के रहने वाले हैं, जिन्होंने तय किया कि हम पैदल ही गांव चलेंगे.'
इस समूह के साथ 50 वर्षीय राजमल भी हैं, उन्होंने कहा, 'हमारे गाँव में कुछ भोजन है, लेकिन मेरी कमाई वही है जिससे मेरा परिवार चल रहा है. मैंने सुना है कि यूपी सरकार मेरे जैसे लोगों को एक हजार रुपये प्रति महीने देने योजना बनाई है, लेकिन मैं कहीं भी पंजिकृत नहीं हूं. कोई भी मेरे पास नहीं आया. मेरे जैसे लोगों को केवल अंधेरा नजर आ रहा है.'
इस समहू के पास कपड़े, पानी और कुछ बिस्कुट के साथ एक बैग है. धूप से बचने के लिए अपने सिर के चारों ओर तोलिया बांध रखे हैं. इनके पास कोरोना वायरस से बचने के लिए कुछ नहीं है. बता दें, भारत में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या 562 हो गई है, जबकि इससे 9 लोगों की मौत हो चुकी है