मुंबई: कोरोना वॉरियर्स की पीड़ा, कोरोना काल में हाथोंहाथ लिया, केस कम होते ही बिना पगार हटाया जा रहा...

मुंबई के कोविड केयर सेंटर्स की लिस्ट देखें तो ज़्यादातर में आपको मरीज़ों की संख्या शून्य नज़र आएगी. इनमें से कई बंद हो चुके हैं, मुश्किल घड़ी में यहां काम पर लाए गए स्टाफ़ अब बिन पगार नौकरी जाने की शिकायत कर रहे हैं.

मुंबई: कोरोना वॉरियर्स की पीड़ा, कोरोना काल में हाथोंहाथ लिया, केस कम होते ही बिना पगार हटाया जा रहा...

महानगर मुंबई में कोरोना के केसों की संख्‍या में कमी आई है

मुंंबई:

Corona Pandemic: बृहन्‍नमुंबई म्‍युनिसिपल कॉर्पोरशन (BMC) ने बुधवार को ही अपना सबसे बड़ा 39 हज़ार करोड़ का बजट पेश किया, लेकिन मुंबई में कोविड वॉरियर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. कोविड के मामले कम हो रहे हैं इसलिए कई कोविड सेंटर्स (corona centres) बंद हो रहे हैं. अब यहां काम कर रहे कॉन्ट्रैक्ट स्टाफ़ बिना पगार अचानक हटाए जाने की शिकायत कर रहे हैं. जब कोरोना का प्रकोप था, तब मुंबई में ताबाड़ तोड़ऐसी कोविड फ़ैसिलिटीज़ बनायी गयीं. मेडिकल स्टाफ़ को कोविड वॉरियर का दर्जा देते हुए, इन कोविड सेंटर्स को तैयार किया गया. अब मामले तेज़ी से घट (corona cases)रहे हैं तो कई कोविड सेंटर बंद हो रहे हैं, और कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे स्टाफ़ बिना पगार अचानक से काम से हटाए जाने का आरोप लगा रहे हैं. 

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मुंबई के बी वॉर्ड के कई स्टाफ़ सोशल मीडिया के ज़रिए विरोध जता रहे हैं. वे कहते हैं कि अक्टूबर से सैलरी नहीं मिली. एक कोविड कोविड स्टाफ़ नहीने सुर्वे ने कहा, ''उद्धव (ठाकरे) सर ने आह्वान किया था कि तुम लोग आगे आकर काम करो. हम आगे आए, अपना फ़र्ज़ पूरा किया, नज़मबाग का पूरा सेटअप ग्राउंड फ़्लोर से थर्ड फ़्लोर तक किया, 100-100 किलो का खाट उठा उठा कर लोडिंग किया, मरीज़ की वाइटल शुगर चेक भी की जबकि ये हमारा मेडिकल फ़ील्ड भी नहीं था. बारह घंटे ड्यूटी की, उसका पैसा तो मिला ही नहीं, अभी पगार मांगते हैं तो कहते हैं बीएमसी की पगार कहां जाने वाली है, मिलेगी लेकिन वक़्त पर नहीं मिली तो किस काम की ये सैलरी.''वहीं नजम बाग़ कोविड फ़सिलिटी के ऐड्मिन इंचार्ज मोहम्मद तस्नीम खान कहते हैं, ''मुझे इतनी दिक़्क़तें हुईं, जो मेरे लेबर हैं पीछे, इनकी सैलरी वक्त पर आती नहीं थी, इनके घर में राशन-पानी कुछ नहीं था, लेकिन मेहनत करते थे, मैं इनको पैसे से मदद करता था, डॉक्टर-नर्स अंदर कोई नहीं जाता था, मेरे लड़के अंदर बैठे रहते थे. अपना धंधा पानी बिज़नेस सब छोड़कर यहां लगे, देश की सेवा के लिए लगे, लेकिन हमारे लिए कुछ करने की बारी आई तो इस तरह निकाला जा रहा है.''

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एक अन्य कोविड स्टाफ सारिका मोरे ने कहा, ''इधर से बंद होने के बाद दूसरी जगह ट्रांसफ़र किया, दूसरी फेसिलिटी में 4-5 दिन काम किया फिर निकाल दिया हमको, ज्‍वॉइनिंग लेटर दिया लेकिन कुछ काम का नहीं, फिर भी निकाल दिया.''इसी कोविड सेंटर में तैनात डॉ. हम्ज़ा सोलकर बताते हैं कि उन्हें भी पगार में देरी के कारण धरने पर बैठना पड़ा था. वे कहते हैं, 'दो तीन महीने लगातार सैलरी नहीं आई थी, लॉकडाउन के वक्त बहुत मुश्किल था बिना सैलरी सरवाइव करना. जब भी बात करने जाते तो कहा जाता था, प्रोसेसिंग में है एक दो हफ़्ते या दो तीन दिन में आएगा, लेकिन कुछ होता नहीं था, इसलिए हमें धरना देना पड़ा था.''मुंबई के कोविड केयर सेंटर्स की लिस्ट देखें तो ज़्यादातर में आपको मरीज़ों की संख्या शून्य नज़र आएगी. इनमें से कई बंद हो चुके हैं, मुश्किल घड़ी में यहां काम पर लाए गए स्टाफ़ अब बिन पगार नौकरी जाने की शिकायत कर रहे हैं.

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