जगन्नाथ मंदिर के आसपास निर्माण कार्य रहेगा जारी या होगा बंद? कल सुप्रीम कोर्ट सुनाएगी फैसला

महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि प्रोजेक्ट का डिजाइन (NMA) को पिछले साल दिया गया था. नियंत्रित क्षेत्र में निर्माण शुरू हुआ, लेकिन अब वो निषिद्ध क्षेत्र तक पहुंच गया है. इससे राष्ट्रीय और ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्व के इस स्मारक और मंदिर को अपूरणीय क्षति हो सकती है.

जगन्नाथ मंदिर के आसपास निर्माण कार्य रहेगा जारी या होगा बंद? कल सुप्रीम कोर्ट सुनाएगी फैसला

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर के आसपास राज्य सरकार द्वारा कराए दा रहे निर्माण कार्य और खुदाई के खिलाफ याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि मंदिर के आसपास पुरी हेरिटेज कॉरिडोर के निर्माण को हरी झंडी दी जाए या नहीं. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच शुक्रवार को फैसला सुनाएगी. बता दें कि जगन्नाथ मंदिर के आसपास सरकार द्वारा खुदाई और निर्माण कार्य के खिलाफ याचिका पर दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है. इससे पहले उड़ीसा हाईकोर्ट ने मामले में याचिका को खारिज कर दिया था. 

निर्माण कार्य बंद कर जांच का आदेश दे

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि श्री जगन्नाथ मंदिर परिक्रमा के भीतर निषिद्ध क्षेत्र में अवैध निर्माण किया जा रहा है. कोर्ट फौरन इसे मोस्ट अर्जेंट मानते हुए निर्माण कार्य बंद कर इसकी जांच का आदेश दे. कोर्ट इस महत्वपूर्ण स्मारक के संरक्षण, सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित करने का आदेश दे. ये अद्भुत शिल्पकला वाला मंदिर ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के साथ-साथ करोड़ों श्रद्धालुओं की भावना से भी जुड़ा है. 

महालक्ष्मी पवनी ने कहा, " निषिद्ध क्षेत्र में महिला और पुरुष शौचालय बनाए जा रहे हैं. दूसरे याचिककर्ता की ओर से कहा गया कि निषिद्ध क्षेत्र में निर्माण बिना समुचित अनुमति के चल रहा है. पुरात्तत्व स्मारक होने से किसी भी तरह का निर्माण निषिद्ध है. रेगुलेटेड एरिया में भी सक्षम प्राधिकरण की अनुमति से ही निर्माण किया जा सकता है. राष्ट्रीय स्मारक अथॉरिटी (NMA) को भी पता है कि स्मारक में निषिद्ध और नियंत्रित क्षेत्र हैं. "

मंदिर को अपूरणीय क्षति हो सकती

याचिकाकर्ता की ओर से पेश महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि प्रोजेक्ट का डिजाइन (NMA) को पिछले साल दिया गया था. नियंत्रित क्षेत्र में निर्माण शुरू हुआ, लेकिन अब वो निषिद्ध क्षेत्र तक पहुंच गया है. इससे राष्ट्रीय और ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्व के इस स्मारक और मंदिर को अपूरणीय क्षति हो सकती है. OBCC और मंदिर कमेटी भी इस मामले में कुछ नहीं बोल रही. राज्य कहता है कि उसके पास प्राचीन स्मारक अधिनियम 1958 के तहत शक्ति है, लेकिन कानून के तहत सक्षम प्राधिकारी राज्य या केंद्र के महानिदेशक या आयुक्त हैं. राज्य ने अभी NOC ली और काम शुरू किया. 

उन्होंने कहा कि परियोजना से पहले कोई विरासत मूल्यांकन अध्ययन नहीं लिया गया. ऐसे में संरक्षित साइट को हुई क्षति अपूरणीय क्षति होगी. नक्शा और योजना बाद में बदली है, जिसका NOC नहीं लिया गया. यह योजना अधिकारियों को नहीं दिखाई गई. यह परियोजना केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारक के 200 मीटर के दायरे में है, जो कि बैन है. ओडिशा के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना सार्वजनिक उपयोग के लिए निर्माण किया जा सकता था. लेकिन संरक्षित क्षेत्र में यह कार्य चल रहा है. 

ओडिशा सरकार ने कही ये बात

वहीं, कोर्ट में ओडिशा सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि मरम्मत और नवीनीकरण का यह पैमाना उल्लंघन के समान नहीं है. महिलाओं के लिए शौचालय निर्माण, क्लॉकरूम, गर्भगृह में प्रवेश का इंतजार कर रहे लोगों के लिए कतार का काम हो रहा है. पुनर्निर्माण, नवीनीकरण और मरम्मत इस कानून या निषेध के तहत शामिल नहीं है. 

इस दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि लेकिन हाईकोर्ट ने नोट किया है कि अब काम दूसरे क्षेत्र में ट्रांसफर हो गया है न कि नियंत्रित क्षेत्र में. पब्लिक यूटिलिटीज क्या सही नहीं हैं? आप इसे चाहते हैं या नहीं चाहते हैं? आप कहते हैं कि यह निषिद्ध क्षेत्र में है, लेकिन हाईकोर्ट का निष्कर्ष अन्यथा है. जस्टिस गवई ने कहा कि हाईकोर्ट में तो प्राधिकरण ने कहा है कि ये निषिद्ध क्षेत्र में नहीं किया गया है. 

मालूम हो कि ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर के समीप पुरी हेरिटेज कॉरिडोर के निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. दरअसल, याचिकाकर्ता के वकील ने जगन्नाथ मंदिर में अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की थी. याचिकाकर्ता का कहना है कि अवैध खुदाई के कारण मंदिर को खतरा है. उन्होंने अदालत को बताया था कि वहां पुनर्निर्माण की कोई अनुमति नहीं है, लेकिन अतिक्रमण के साथ ही निर्माण कार्य भी जारी है. सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने पूछा था कि क्या इस मामले में हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है? 

मंदिर को नुकसान पहुंचने की आशंका

याचिकाकर्ता सुमंत कुमार गढ़ेई के वकील गौतम दास ने जवाब दिया कि अर्जी तो दाखिल की है लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई. अदालत ने कहा था कि अर्जी की कॉपी केस के एमाईकस और राज्य के वकीलों को भी दी जाए. इस मामले में ओडिशा हाईकोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने हलफनामा दायर कर कहा था कि गहरी खुदाई से मंदिर को नुकसान पहुंचने की आशंका है. 

याचिका में कहा गया है कि मंदिर के परिसर में मेघनाद पछेरी मंदिर के पास 30 फुट गहराई तक खुदाई की गई है. इससे मंदिर की बुनियाद को खतरा हो सकता है. राज्य की एजेंसियां ​​प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 20 ए के घोर उल्लंघन में काम कर रही हैं. साथ ही याचिका में आरोप लगाया गया है कि ओडिशा सरकार अनधिकृत निर्माण कार्य कर रही है, जो प्राचीन मंदिर की संरचना के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है. 

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