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This Article is From Apr 07, 2015

अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ एनजेएसी कानून पर करेगी सुनवाई

अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ एनजेएसी कानून पर करेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की फाइल इोटो
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्तियों के लिए बीस साल से चली आ रही कोलीजियम व्यवस्था को खत्म करने वाले राष्‍ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून पर अब सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ करेगी।

सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने मामले को संविधान पीठ के लिए भेजते हुए कहा कि कानून पर रोक लगाने की बात संविधान पीठ में वकीलों की कई संस्थाओं ने याचिकाओं में उठाई हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि एनजेएसी एक्ट को मनमाना और असंवैधानिक घोषित कर निरस्त करने की अपील की गई।

याचिका में कहा गया कि इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका का दखल बढ़ेगा जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता प्रभावित होगी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट में इसे सही ठहराते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अभी सुनवाई कर सकता है क्योंकि इसके लिए नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है।

याचिका में कहा गया है कि न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून और 121वां संविधान संशोधन कानून निरस्त किया जाए, क्योंकि इससे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हस्तक्षेप बढ़ता है, जो न सिर्फ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बाधित करता है बल्कि संविधान के मूल ढांचे को भी प्रभावित करता है जिसमें स्वतंत्र न्यायपालिका की बात कही गई है।

न्यायिक नियुक्ति आयोग के अध्यक्ष भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे। उनके अलावा सुप्रीमकोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, कानून मंत्री और दो विख्यात हस्तियां होंगी। दो विख्यात हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति करेगी। इस समिति में प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता होंगे।

कानून की धारा 5 (6) कहती है कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी की नियुक्ति के लिए सहमत नहीं तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा।

याचिकाकर्ता का कहना है कि इसका सीधा मतलब है कि मुख्य न्यायाधीश के नजरिये को नजरअंदाज किया जा सकता है, जबकि सुप्रीमकोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ एडवोकेट ऑन रिकार्ड मामले में कह चुकी है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की राय नजरअंदाज नहीं की जा सकती, जबकि नए कानून के मुताबिक आयोग का अल्प समूह (दो सदस्य) ऐसा कर सकते हैं।

नए कानून में दो विख्यात व्यक्तियों की योग्यता क्या होगी यह तय नहीं है और न ही यह तय है कि वे किस क्षेत्र से चुने जाएंगे जबकि इन दो सदस्यों के पास बाकी के चार सदस्यों की राय पलटने का अधिकार होगा।

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