Constitution Role In Developed India: संविधान@75 के ‘NDTV INDIA संवाद' में जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा कि संविधान के मूल्यों की आधारशिला संविधान बनाने वालों ने रखा. मगर बदलाव प्रकृति का नियम है.इसलिए वो हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता. ये अच्छी बात है कि संविधान में अमेंडमेंड की गुंजाइश है. संविधान में सबसे अच्छी बात राइट टू इक्वलिटी है.संविधान के प्रिएंबल में भी लिखा है कि जाति, धर्म, लिंग, भाषा किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. इसे और प्रभावी बनाने के लिए मौलिक अधिकारों और अन्य धाराओं को संविधान में जोड़ा गया है. यही कारण है कि महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था बनाई गई. यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत समझी जा रही है.इसीलिए संविधान के मूल्यों को रखते हुए अमेंडमेंड बहुत जरूरी होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का भी विशेष महत्व
भारत के पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विकास सिंह ने कहा कि संविधान में समाज में सभी को साथ लेकर चलने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी.अब यही देखते हुए महिलाओं के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है. न्यायिक तंत्र में भी इसकी व्यवस्था होनी चाहिए. इसलिए संविधान में बदलाव देश को आगे बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए. भारत के विकास में सुप्रीम कोर्ट का भी विशेष महत्व है. आज के दिन संविधान की मूल आत्मा को कैसे बनाए रखा जाए इसका काम सुप्रीम कोर्ट करता है. ये जीएसटी के मामले में देखा भी गया है.
संविधान को भी उस हिसाब से बदलना होगा
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता नलिन कोहली ने बताया कि कोई देश बनता है तो सबसे पहले देखा जाता है कि देश की सीमा क्या है. फिर लोग होंगे. फिर कौन इसे चलाएगा, कैसे चलाएंगे, फिर सबकी शक्तियां तय होती हैं. क्रिकेट की भाषा में कहें तो मैच तो अंदर चल रहा है, लेकिन मैच के बाहर बैठा थर्ड अंपायर विवाद होने पर तय करता है कि सही क्या है. ठीक उसी तरह सुप्रीम कोर्ट का रोल है. 1947 से आज तक भारत कितना बदल गया, कितनी प्राथमिकता कितनी बदल गई, अब हम अधिकारों पर बात कर रहे हैं तो 75 साल में हम काफी आगे बढ़ गया और संविधान भी बदलावों के साथ आगे बढ़ता आया. यही संविधान की खूबसूरती है. पहले कोई मानता नहीं था कि भारत विकसित देश बन सकता है, लेकिन अब सब मानते हैं कि 2047 में न होकर 2040, 2045 तक भी हम विकसित देश बन सकते हैं और इसमें संविधान को भी उस हिसाब से बदलना होगा.
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अमेंडमेंड जरूरी
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि संविधान बनाने वालों ने इसे बनाते समय सोचा था कि भारत इस हिसाब से विकसित होगा. उन्होंने आगे आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भी संविधान में बदलाव का रास्ता छोड़ रखा था. इस संविधान को बदलने या दूसरा संविधान को लाने की जरूरत नहीं है. आर्टिकल 21 पहले जीने और रहने का मामला था. अब ये पर्यावरण से लेकर डिजिटल तक का मुद्दा है. इसीलिए अमेंडमेंड होता है. महिला आरक्षण इसका एक अच्छा उदाहरण है. सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में दिल्ली के वायु प्रदूषण पर ये कहा कि राइट टू ब्रीथ अधिकार है.
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