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राजनीति परिवारों की जायदाद नहीं... वंशवाद पर कांग्रेस के सांसद शशि थरूर का करारा प्रहार

थरूर ने राजनीतिक वंशवाद के और उदाहरण देते हुए कहा, 'यही बात समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव पर भी लागू होती है, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और जिनके बेटे अखिलेश यादव बाद में उसी पद पर रहे.

राजनीति परिवारों की जायदाद नहीं... वंशवाद पर कांग्रेस के सांसद शशि थरूर का करारा प्रहार
  • वरिष्ठ सांसद शशि थरूर ने भारतीय राजनीति में वंशवाद को लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताते हुए उसकी आलोचना की है.
  • थरूर ने कहा कि राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता के बजाय वंशवाद से होना शासन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है.
  • उन्होंने भारत सहित पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी वंशवादी राजनीति के व्यापक प्रभाव का उदाहरण दिया.
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नई दिल्‍ली:

वरिष्ठ सांसद शशि थरूर ने भारतीय राजनीति में वंशवाद की राजनीति पर करारा प्रहार करते हुए एक तीखा सवाल खड़ा कर दिया है. एक अंतरराष्‍ट्रीय आलेख में थरूर ने साफ शब्दों में कहा है कि 'भारतीय राजनीति परिवारों की जायदाद नहीं है' और वंशवादी राजनीति लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है. यह टिप्पणी इसलिए राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा रही है, क्योंकि यह आलोचना उस समय आई है जब उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस एक ही परिवार (नेहरू-गांधी परिवार) के नेतृत्व के इर्द-गिर्द केंद्रित है. यह आलेख प्रोजेक्ट सिंडिकेट नामक एक अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया संस्था के पोर्टल पर प्रकाशित हुआ है. 

वंशवाद को बताया गंभीर खतरा 

शशि थरूर ने अपने इस आलेख में कहा है कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक 'गंभीर खतरा' है. अब समय आ गया है कि भारत ‘‘वंशवाद की जगह योग्यता'' को स्वीकार्यता प्रदान करे. थरूर ने कहा कि जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंशवाद से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है. 
उनके इस लेख को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधा और कटाक्ष करते हुए कहा कि थरूर ‘खतरों के खिलाड़ी' बन गए हैं और अब तक पता नहीं उनका क्या अंजाम होगा क्योंकि ‘प्रथम परिवार' (गांधी-नेहरू परिवार) बहुत प्रतिशोधी है. 

पार्टियों की मंशा पर सवाल 

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन ‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट' के लिए लिखे एक लेख में तिरुवनंतपुरम के सांसद थरूर ने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस से जुड़ा है, लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का बोलबाला है. थरूर का यह बयान भारत-पाकिस्तान संघर्ष और पहलगाम हमले के बाद राजनयिक प्रयासों पर उनकी टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के कुछ सप्ताह बाद आया है. उस समय उनकी टिप्पणियां कांग्रेस के रुख से अलग थीं और कई पार्टी नेताओं ने उनकी मंशा पर सवाल उठाते हुए उन पर निशाना साधा था. 

दशकों से वंशवाद हावी 

‘इंडियन पॉलिटिक्स आर ए फेमिली बिजनेस' शीर्षक वाले लेख में थरूर ने कहा कि दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी रहा है और नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है. उनका कहना था, 'लेकिन यह विचार पुख्ता हुआ है कि राजनीतिक नेतृत्व एक जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है. यह विचार भारतीय राजनीति में हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर व्याप्त है.' थरूर ने कहा कि बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके बेटे नवीन ने अपने पिता की खाली लोकसभा सीट जीती. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने यह पद अपने बेटे उद्धव को सौंप दिया और अब उद्धव के बेटे आदित्य भी प्रतीक्षारत हैं. 

थरूर ने राजनीतिक वंशवाद के और उदाहरण देते हुए कहा, 'यही बात समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव पर भी लागू होती है, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और जिनके बेटे अखिलेश यादव बाद में उसी पद पर रहे. अखिलेश अब सांसद और पार्टी के अध्यक्ष हैं. बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने पार्टी की कमान संभाली.'उन्होंने जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब और तमिलनाडु में भी वंशवादी राजनीति की मिसालें दीं. 

पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश और श्रीलंका का उदाहरण 

थरूर ने यह भी तर्क दिया कि यह (वंशवादी राजनीति) केवल कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्राम सभाओं से लेकर संसद तक, भारतीय शासन के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है. उन्होंने पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवार, बांग्लादेश में शेख और जिया परिवार तथा श्रीलंका में भंडारनायके और राजपक्षे परिवार का उदाहरण देते हुए कहा, ‘सच कहूं तो, इस तरह की वंशवादी राजनीति पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है.' 

थरूर का कहना था, 'लेकिन ये भारत के जीवंत लोकतंत्र के साथ ख़ास तौर पर बेमेल लगते हैं. फिर भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया है? एक कारण यह हो सकता है कि एक परिवार एक ब्रांड के रूप में प्रभावी रूप से काम कर सकता है...अगर मतदाता किसी उम्मीदवार के पिता, चाची या भाई-बहन को स्वीकार करते हैं, तो वे शायद उम्मीदवार को स्वीकार कर लेंगे - विश्वसनीयता बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है.' थरूर ने इस बात पर जोर दिया कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर ख़तरा है. उन्होंने कहा, 'जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या ज़मीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंश से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है.' 

खतरों के खिलाड़ी थरूर 

उनके लेख को लेकर भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने ‘एक्स' पर पोस्ट किया है. पूनावाला ने लिखा, ‘भारतीय राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय कैसे बन गई है, इस पर डॉ. शशि थरूर द्वारा लिखित बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख. उन्होंने भारत के ‘नेपो किड' राहुल और छोटा ‘नेपो किड' तेजस्वी यादव पर सीधा हमला किया है.' उनका दावा है कि यही कारण है कि कांग्रेस के ‘नामदार' ‘कामदार चायवाले' प्रधानमंत्री मोदी से नफरत करते हैं. पूनावाला ने कहा, '‘हतप्रभ हूं कि इतनी स्पष्टता से बोलने के लिए डॉ. थरूर का क्या अंजाम होगा.' 

उन्होंने एक अन्य पोस्ट में कहा, 'डॉ. थरूर खतरों के खिलाड़ी बन गए हैं। उन्होंने सीधे तौर पर ‘नेपो किड्स' या ‘नेपोटिज्म' के नवाबों को चुनौती दी है. सर (थरूर), जब मैंने 2017 में ‘नेपो' नामदार राहुल गांधी को चुनौती दी थी तो आप जानते हैं कि मेरे साथ क्या हुआ था. सर आपके लिए प्रार्थना कर रहा हूं... प्रथम परिवार बहुत प्रतिशोधी है.' 

हर सेक्‍टर में है खानदानी सोच 

वहीं कांग्रेस सांसद के लेख पर पार्टी के नेता उदित राज ने बयान दिया है. न्‍यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में उन्‍होंने कहा, ' भारत में करीब हर सेक्टर में खानदानी सोच है, एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है, एक बिजनेसमैन का बच्चा बिजनेस करता रहता है और पॉलिटिक्स भी इससे अलग नहीं है. साथ ही, अगर किसी पॉलिटिशियन का क्रिमिनल बैकग्राउंड है तो यह हमारे समाज की सच्चाई दिखाता है.' 

उन्‍होंने आगे कहा, 'चुनाव के टिकट अक्सर जाति और परिवार के आधार पर बांटे जाते हैं. नेहरू से लेकर पवार तक, DMK से ममता तक, मायावती से लेकर अमित शाह के बेटे तक, ऐसे कई उदाहरण हैं... नुकसान यह है कि मौके सिर्फ परिवारों तक ही सीमित रह जाते हैं. खानदानी असर सिर्फ पॉलिटिक्स तक ही सीमित नहीं है; यह ब्यूरोक्रेसी, ज्यूडिशियरी और यहां तक कि फिल्म इंडस्ट्री तक भी फैला हुआ है.' 

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