न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली कुछ समय तक जारी रहने की उम्मीद है, क्योंकि नया तंत्र अस्तित्व में लाए जाने के लिए लोकसभा के अंतिम सत्र में संसद संवैधानिक संशोधन विधेयक नहीं पारित कर सका।
सरकार ने न्यायविदों और भाजपा की ओर से न्यायिक नियुक्ति आयोग (जेएसी) को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की मांग को भी मान लिया, ताकि भविष्य में आयोग के स्वरूप से सामान्य कानून के जरिये छेड़छाड नहीं की जा सके।
सरकार की तरफ से सहमति जताने के बावजूद न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक को संसदीय मंजूरी नहीं मिल पाई। संसद का शीतकालीन सत्र (15 वीं लोकसभा का अंतिम सत्र) शुक्रवार को अनिश्चतकाल के लिए स्थगित हो गया।
इससे पहले 2003 में कॉलेजियम प्रणाली हटाने का पूर्व प्रयास रंग नहीं ला पाया था। तत्कालीन एनडीए सरकार ने एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था, लेकिन विधेयक जब स्थायी समिति के समक्ष था, उसी समय लोकसभा भंग हो गई। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली उस समय कानून मंत्री थे।
विधेयक के मुताबिक, संविधान का नया अनुच्छेद 124 ए जेएसी के स्वरूप के बारे में और अनुच्छेद 124 बी इसके कामकाज को परिभाषित करेगा। सुधारों पर 26 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट के सहमत होने के पहले प्रस्तावित आयोग के स्वरूप के बारे में न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2013 में परिभाषित किया गया, जिसे मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा में पृथक संविधान संशोधन विधेयक के साथ पेश किया गया था।
संविधान संशोधन विधेयक कहता है कि एक जेएसी होगा, लेकिन इसके स्वरूप और कामकाज के साथ ही यह नहीं बताया गया कि क्या इसका नेतृत्व प्रधान न्यायाधीश करेंगे।
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