नई दिल्ली:
भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में सरकार की नीतियों में खामी को सामने लाते हुए कहा कि यदि कोयला क्षेत्र का आवंटन मनमाना तरीके से न कर प्रतिस्पर्धी बोली के आधार पर किया जाता तो सरकार को 1.85 लाख करोड़ रुपये का राजस्व हासिल होता।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस पर जहां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से तत्काल इस्तीफे की मांग की है, वहीं सरकार ने सीएजी के निष्कर्ष को त्रुटिपूर्ण बताते हुए खारिज किया है।
सरकार ने नुकसान के इस जोड़-घटाव को गलत बताया है, जो कि देश के बजटीय आयकर और सीमा शुल्क के लगभग बराबर है। आयकर और सीमा शुल्क क्रमश: 1.95 लाख करोड़ रुपये और 1.86 लाख करोड़ रुपये अनुमानित हैं।
सीएजी ने शुक्रवार को संसद में पेश की गई इस रिपोर्ट में कहा कि ऐसा कोयला खदान आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने के कारण हुआ है। यह प्रक्रिया जून 2004 में शुरू होनी थी, लेकिन विभिन्न कारणों से इसमें भारी विलम्ब हुआ।
बहुप्रतीक्षित इस रिपोर्ट में कहा गया है, "इस बीच 31 मार्च, 2011 तक विभिन्न सरकारी और निजी पक्षों को 194 कोयला खदानें आवंटित की गइर्ं, जिनमें लगभग 4,444 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान है।"
रिपोर्ट में कहा गया है, "सरकार कोयला खदानों के आवंटन के लिए जल्द नीलामी का निर्णय लेकर कुछ हदतक इस वित्तीय लाभ को अर्जित कर सकती थी।" रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश सिफारिशें राज्य सरकारों की ओर से आई थीं।
यह रिपोर्ट अब भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के पास जाएगी। जोशी ने कहा, "इस सरकार में जमीन से लेकर आसमान तक तथा जमीन के नीचे तक घोटाले ही घोटाले हैं।" लेकिन केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री वी. नारायणसामी ने रिपोर्ट की आलोचना की और कहा कि सीएजी अपने अधिकार का पालन नहीं कर रहे। उन्होंने कहा, "सबूत लिए जाएंगे और अंतत: परिणाम निलेगा।" उन्होंने कहा कि सरकार का पक्ष सुना जाना अभी बाकी है।
नारायणसामी ने कहा, "दुर्भाग्यवश, सीएजी के पास संविधान के तहत खास अधिकार हैं। लेकिन मेरे अनुसार, सीएजी इस अधिकार का अनुसरण नहीं कर रहे हैं...।"
नारायणसामी के अनुसार, रिपोर्ट पीएसी के पास जाएगी जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल हैं और उसका अध्यक्ष मुख्य विपक्षी पार्टी का है।
नारायणसामी ने कहा कि पीएसी एक छोटी संसद की तरह है और यह अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है। उन्होंने कहा, "उसके बाद सरकार द्वारा ही उस पर कार्रवाई की जा सकती है। उसके बाद ही यह अंतिम रिपोर्ट बनती है।" उन्होंने कहा कि मसौदा रिपोर्ट खास दस्तावेजों के आधार पर तैयार हुई है, जिसे वे अपना दृष्टिकोण मानते हैं।
सीएजी की रिपोर्ट में उन 25 कम्पनियों के नाम भी लिए गए हैं, जो कोयल खदान आवंटन में लाभार्थी रही हैं। इनमें एस्सार पॉवर, जिंदल स्टील एंड पॉवर, हिंडालको एवं टाटा पॉवर, डीबी पॉवर, अदानी पॉवर, सीईएससी, मोनेट इस्पात, रुंगटा माइंस, मुकुंद एवं टाटा स्टील शामिल हैं।
2008 में नई निजी कम्पनियों को आवंटित किए गए दुर्लभ दूरसंचार स्पेक्ट्रम पर दो वर्ष पहले संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया था।
भविष्य में निजी कम्पनियों व सरकारी कम्पनियों को कोयला खदान आवंटन के तौर-तरीकों पर अपने सुझाव में सीएजी ने कहा है कि इसके लिए विदेशी निवेश सम्वर्धन बोर्ड की तर्ज पर एक अधिकार प्राप्त समूह का गठित किया जाना चाहिए।
इस रिपोर्ट के साथ दो अन्य रिपोर्टें भी संसद में पेश की गईं। अतिरिक्त दोनों रिपोर्टें अति विशाल विद्युत परियोजनाओं और दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में सार्वजनिक निजी साझेदारी पर हैं।
भाजपा ने रिपोर्ट में कथित गड़बड़ियों का खुलासा होने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफे की मांग की।
भाजपा ने इसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है। पार्टी ने हालांकि सीएजी की रिपोर्ट की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने की जरूरत से इनकार किया।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संवाददाताओं से कहा, "हम प्रधानमंत्री का इस्तीफा चाहते हैं लेकिन इस मामले में जेपीसी की जरूरत नहीं है।"
वहीं पार्टी नेता एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि चंद निजी कम्पनियों को भारी लाभ पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री सीधे तौर पर, राजनीतिक और नैतिक रूप से जिम्मेदार हैं। संप्रग सरकार 2004 से 2012 तक कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए प्रतियोगितापूर्ण नीलामी की अनुमति देने का फैसला नहीं ले सकी।
सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए जेटली ने कहा, "कोयला ब्लॉकों के आवंटन में विवेकाधीन तरीका अपनाने के बजाय प्रतियोगितापूर्ण नीलामी के फैसले को लागू करने में जुलाई 2004 से फरवरी 2012 तक आठ साल की देरी की गई। इसी का नतीजा है कि राजकोष को नुकसान और निजी कम्पनियों को भारी फायदा हुआ।" उन्होंने कहा, "जुलाई 2004 और मई 2009 के बीच कोयला मंत्रालय का प्रभार चूंकि प्रधानमंत्री के पास था, इसलिए वह प्रत्यक्ष रूप से इसके लिए जिम्मेदार हैं..उन्हें सीएजी की रिपोर्ट पर आत्मविश्लेषण करना चाहिए और इस्तीफा देना चाहिए।"
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस पर जहां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से तत्काल इस्तीफे की मांग की है, वहीं सरकार ने सीएजी के निष्कर्ष को त्रुटिपूर्ण बताते हुए खारिज किया है।
सरकार ने नुकसान के इस जोड़-घटाव को गलत बताया है, जो कि देश के बजटीय आयकर और सीमा शुल्क के लगभग बराबर है। आयकर और सीमा शुल्क क्रमश: 1.95 लाख करोड़ रुपये और 1.86 लाख करोड़ रुपये अनुमानित हैं।
सीएजी ने शुक्रवार को संसद में पेश की गई इस रिपोर्ट में कहा कि ऐसा कोयला खदान आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता न होने के कारण हुआ है। यह प्रक्रिया जून 2004 में शुरू होनी थी, लेकिन विभिन्न कारणों से इसमें भारी विलम्ब हुआ।
बहुप्रतीक्षित इस रिपोर्ट में कहा गया है, "इस बीच 31 मार्च, 2011 तक विभिन्न सरकारी और निजी पक्षों को 194 कोयला खदानें आवंटित की गइर्ं, जिनमें लगभग 4,444 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान है।"
रिपोर्ट में कहा गया है, "सरकार कोयला खदानों के आवंटन के लिए जल्द नीलामी का निर्णय लेकर कुछ हदतक इस वित्तीय लाभ को अर्जित कर सकती थी।" रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश सिफारिशें राज्य सरकारों की ओर से आई थीं।
यह रिपोर्ट अब भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के पास जाएगी। जोशी ने कहा, "इस सरकार में जमीन से लेकर आसमान तक तथा जमीन के नीचे तक घोटाले ही घोटाले हैं।" लेकिन केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री वी. नारायणसामी ने रिपोर्ट की आलोचना की और कहा कि सीएजी अपने अधिकार का पालन नहीं कर रहे। उन्होंने कहा, "सबूत लिए जाएंगे और अंतत: परिणाम निलेगा।" उन्होंने कहा कि सरकार का पक्ष सुना जाना अभी बाकी है।
नारायणसामी ने कहा, "दुर्भाग्यवश, सीएजी के पास संविधान के तहत खास अधिकार हैं। लेकिन मेरे अनुसार, सीएजी इस अधिकार का अनुसरण नहीं कर रहे हैं...।"
नारायणसामी के अनुसार, रिपोर्ट पीएसी के पास जाएगी जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल हैं और उसका अध्यक्ष मुख्य विपक्षी पार्टी का है।
नारायणसामी ने कहा कि पीएसी एक छोटी संसद की तरह है और यह अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है। उन्होंने कहा, "उसके बाद सरकार द्वारा ही उस पर कार्रवाई की जा सकती है। उसके बाद ही यह अंतिम रिपोर्ट बनती है।" उन्होंने कहा कि मसौदा रिपोर्ट खास दस्तावेजों के आधार पर तैयार हुई है, जिसे वे अपना दृष्टिकोण मानते हैं।
सीएजी की रिपोर्ट में उन 25 कम्पनियों के नाम भी लिए गए हैं, जो कोयल खदान आवंटन में लाभार्थी रही हैं। इनमें एस्सार पॉवर, जिंदल स्टील एंड पॉवर, हिंडालको एवं टाटा पॉवर, डीबी पॉवर, अदानी पॉवर, सीईएससी, मोनेट इस्पात, रुंगटा माइंस, मुकुंद एवं टाटा स्टील शामिल हैं।
2008 में नई निजी कम्पनियों को आवंटित किए गए दुर्लभ दूरसंचार स्पेक्ट्रम पर दो वर्ष पहले संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया था।
भविष्य में निजी कम्पनियों व सरकारी कम्पनियों को कोयला खदान आवंटन के तौर-तरीकों पर अपने सुझाव में सीएजी ने कहा है कि इसके लिए विदेशी निवेश सम्वर्धन बोर्ड की तर्ज पर एक अधिकार प्राप्त समूह का गठित किया जाना चाहिए।
इस रिपोर्ट के साथ दो अन्य रिपोर्टें भी संसद में पेश की गईं। अतिरिक्त दोनों रिपोर्टें अति विशाल विद्युत परियोजनाओं और दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में सार्वजनिक निजी साझेदारी पर हैं।
भाजपा ने रिपोर्ट में कथित गड़बड़ियों का खुलासा होने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफे की मांग की।
भाजपा ने इसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है। पार्टी ने हालांकि सीएजी की रिपोर्ट की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने की जरूरत से इनकार किया।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संवाददाताओं से कहा, "हम प्रधानमंत्री का इस्तीफा चाहते हैं लेकिन इस मामले में जेपीसी की जरूरत नहीं है।"
वहीं पार्टी नेता एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि चंद निजी कम्पनियों को भारी लाभ पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री सीधे तौर पर, राजनीतिक और नैतिक रूप से जिम्मेदार हैं। संप्रग सरकार 2004 से 2012 तक कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए प्रतियोगितापूर्ण नीलामी की अनुमति देने का फैसला नहीं ले सकी।
सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए जेटली ने कहा, "कोयला ब्लॉकों के आवंटन में विवेकाधीन तरीका अपनाने के बजाय प्रतियोगितापूर्ण नीलामी के फैसले को लागू करने में जुलाई 2004 से फरवरी 2012 तक आठ साल की देरी की गई। इसी का नतीजा है कि राजकोष को नुकसान और निजी कम्पनियों को भारी फायदा हुआ।" उन्होंने कहा, "जुलाई 2004 और मई 2009 के बीच कोयला मंत्रालय का प्रभार चूंकि प्रधानमंत्री के पास था, इसलिए वह प्रत्यक्ष रूप से इसके लिए जिम्मेदार हैं..उन्हें सीएजी की रिपोर्ट पर आत्मविश्लेषण करना चाहिए और इस्तीफा देना चाहिए।"
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