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This Article is From Dec 10, 2014

लीमा में जलवायु परिवर्तन और गरीबी उन्मूलन की लड़ाई

लीमा में जलवायु परिवर्तन और गरीबी उन्मूलन की लड़ाई
नई दिल्ली:

लीमा में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अमीर और विकासशील देशों के बीच गरीबी उन्मूलन और टिकाउ विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) जैसे विषयों को लेकर तनातनी तेज हो गई है।

अमेरिका और दूसरे विकसित देशों का कहना है कि विकासशील देश जलवायु परिवर्तन की बात करते वक्त गरीबी की आड़ नहीं ले सकते, जबकि विकासशील देश कहते रहे हैं कि गरीब जनता का ख्याल रखना उनकी सरकारों की पहली जरूरत है।

असल में अगले साल पेरिस में होने वाले जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन से पहले क्लाइमेट चेंज के मामले में पूरा खाका तय होना है और सभी देशों को अपनी प्रतिबद्धता बतानी है। इसके तहत कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण के तरीकों को बताने के साथ-साथ यह भी बताना है कि कौन सा देश कब कार्बन उत्सर्जन के अपने उच्चतम स्तर कब पर पहुंचेगा।

विकसित देश चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर काबू करने की बात करते वक्त विकासशील देश अपने यहां गरीबी उन्मूलन जैसे कार्यक्रमों का हवाला ना दें और ऊंची तकनीक पर खर्च में कोई कमी ना करें और इसी लिए अमीर देशों का कहना है कि गरीबी उन्मूलन को जलवायु परिवर्तन की वार्ता से दूर रखा जाए।

हालांकि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश कह रहे हैं कि वह अपने यहां गरीबी मिटाने के कार्यक्रमों की अनदेखी कर जलवायु परिवर्तन की बात नहीं कर सकते। भारत कहता रहा है कि गरीबों की कीमत पर पर्यावरण नहीं बचाया जा सकता। विकासशील देशों को साफ ऊर्जा के लिए उम्दा टेक्नोलॉजी चाहिए और अमीर देशों को इसमें मदद करनी ही होगी।

अगले साल पेरिस सम्मेलन से पहले भारत, चीन और ब्राजील का यह रुख काफी असरदार हो सकता है। यहां गौर करने वाली यह भी है कि क्लाइमेट चेंज के नाम पर विकसित देशों ने विकासशील देशों की मदद के लिए जो 100 अरब डॉलर का फंड बनाने की बात तो की थी, लेकिन उसमें भी नाममात्र का पैसा इकट्ठा हुआ है और असली वितरण के नाम पर विकासशील देशों को कुछ मदद नहीं मिली।

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