दुनिया भर में क्रिसमस की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. इस पर्व का मुख्य आकर्षण क्रिसमस ट्री होता है, जिसे हर साल घरों और सार्वजनिक स्थानों पर सजाया जाता है. यह न केवल त्योहार की शोभा बढ़ाता है, बल्कि परिवार और दोस्तों के बीच खुशियां बांटने का जरिया भी बनता है.
टाइम्स मैग्जीन के अनुसार, क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा काफी पुरानी है. 15वीं और 16वीं शताब्दी के इंग्लैंड के ग्रामीण इलाकों में सर्दियों के दौरान घरों और चर्चों को हरियाली से सजाने का चलन था. उस समय बेलों और पत्तों से पोल और खंभों को सजाया जाता था, जिसे बाद में क्रिसमस ट्री का स्वरूप दिया गया.
ऐतिहासिक रूप से, क्रिसमस ट्री को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार, मार्टिन लूथर ने पाइन ट्री को ईश्वर की भलाई का प्रतीक माना. वहीं, 8वीं शताब्दी में सेंट बोनिफेस ने ओक के पेड़ को काटकर उसकी जगह देवदार का पेड़ लगाया. कुछ परंपराओं में क्रिसमस ट्री को उल्टा लटकाने का चलन भी देखा जाता है.
मॉडर्न क्रिसमस ट्री का प्रचलन जर्मनी से शुरू हुआ. 1419 में जर्मनी के फ्रेइबर्ग शहर में एक गिल्ड ने एक पेड़ को सेब, वाफर, टिनसेल और जिंजरब्रेड से सजाया. यह परंपरा पैराडाइस प्ले नाटकों से प्रेरित थी, जो क्रिसमस ईव पर एडम और ईव के पर्व को मनाने के लिए आयोजित किए जाते थे.
1964 में क्रिसमस ट्री का एक नया चलन शुरू हुआ, जब पॉलीविनाइल से बने आर्टिफिशियल ट्री बाजार में आए. ये ट्री असली पेड़ों जैसे दिखने लगे और समय के साथ इनकी लोकप्रियता बढ़ गई.
क्रिसमस ट्री केवल सजावट का माध्यम नहीं है, बल्कि यह जीवन, आशा और प्यार का प्रतीक है. यह परिवार के बीच उत्साह और खुशियां बांटने का प्रतीक भी माना जाता है. हालांकि, आर्टिफिशियल ट्री का चलन बढ़ रहा है, लेकिन असली क्रिसमस ट्री का सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व आज भी बरकरार है, जो हमें प्रकृति से जोड़ता है.
चाहे असली क्रिसमस ट्री हो या आर्टिफिशियल, यह परंपरा हर साल क्रिसमस की उमंग और उल्लास को बढ़ाती है. यह केवल एक सजावट नहीं, बल्कि हमारे इतिहास और संस्कृति की गहरी जड़ें दिखाने वाला प्रतीक है.
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