"फायदे के लिए नहीं है चाइल्ड वेलफेयर": रानी मुखर्जी की फिल्म पर नॉर्वेजियन दूतावास

मिसेस चटर्जी वर्सेज नॉर्वे एक भारतीय अप्रवासी जोड़े की कहानी पर आधारित है, जिनके परिवार पर 2011 में हुई एक घटना का असर पड़ा था

नॉर्वे के राजदूत ने कहा है कि, नॉर्वे एक लोकतांत्रिक, बहुसांस्कृतिक समाज है.

नई दिल्ली :

रानी मुखर्जी की 'मिसेस चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' एक भारतीय जोड़े पर केंद्रित फिल्म है, जो अपने बच्चों की कस्टडी के लिए नॉर्वे की सरकार से लड़ता है. इस फिल्म पर नॉर्वे की ओर से तीखी प्रतिक्रिया मिली. भारत में नार्वे के राजदूत ने आज फिल्म को 'काल्पनिक कृति' बताया और कहा कि इसमें तथ्यात्मक अशुद्धियां हैं. मिसेस चटर्जी वर्सेज नॉर्वे एक भारतीय अप्रवासी जोड़े की कहानी पर आधारित है, जिनके परिवार पर 2011 में हुई एक घटना का असर पड़ा था. तब उनके दो बच्चों को संस्कृति में अंतर के कारण नॉर्वेजियन फॉस्टर सिस्टम ने अपनी देखभाल में ले लिया था.

नॉर्वेजियन दूतावास ने अपने बयान में कहा, "बताए गए सांस्कृतिक अंतर के आधार पर बच्चों को उनके परिवारों से कभी दूर नहीं किया जाएगा. अपने हाथों से भोजन करना या बच्चों का अपने माता-पिता के साथ बिस्तर पर सोना, बच्चों के लिए हानिकारक नहीं माना जाता है. इस कल्चरल बैकग्राउंड के बावजूद नॉर्वे में यह असामान्य नहीं है." दूतावास ने जोर दिया कि, "कुछ सामान्य तथ्यों को ठीक करना चाहिए." 

दूतावास ने कहा, "बच्चों को वैकल्पिक देखभाल में रखने का कारण उनका उपेक्षा, हिंसा या अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार का शिकार होना होता है." नार्वेजियन राजदूत हंस जैकब फ्रायडेनलंड ने जोर देकर कहा कि नॉर्वे एक लोकतांत्रिक, बहुसांस्कृतिक समाज है.

उन्होंने ट्विटर पर साझा किए गए बयान में कहा, "नॉर्वे में हम विभिन्न फैमिली सिस्टम और सांस्कृतिक प्रथाओं को महत्व देते हैं और उनका सम्मान करते हैं, भले ही वे हमारी आदतों से अलग हों. पालन-पोषण में शारीरिक दंड के अलावा किसी भी आकार या रूप में हिंसा कतई स्वीकार्य नहीं है."

नॉर्वे के चाइल्ड वेलफेयर ने एक बयान में कहा कि उनका काम "लाभ से प्रेरित नहीं है." चाइल्ड वेलफेयर ने फिल्म में किए गए उस कथित दावे का खंडन किया कि, "जितने अधिक बच्चे फॉस्टर सिस्टम में डालते हैं, उतना ही अधिक पैसा कमाते हैं." उसने कहा कि, "वैकल्पिक देखभाल जिम्मेदारी का मामला है और यह पैसा बनाने वाली संस्था नहीं है." 

नॉर्वे के दूत ने कहा कि बच्चों को वैकल्पिक देखभाल में तब रखा जाता है जब वे उपेक्षा का सामना करते हैं या "हिंसा या अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के शिकार होते हैं."

सागरिका चटर्जी (जिन पर फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे बनी है) के बच्चों को उनके पास से ले जाते हुए नॉर्वे सरकार ने आरोप लगाया था कि उसने अपने बच्चों को अपने हाथों से खिलाया था. दंपति पर अपने बच्चों की पिटाई करने, उन्हें खेलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं देने और उन्हें "अनुपयुक्त" कपड़े और खिलौने देने का भी आरोप लगाया गया था.

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दोनों देशों के बीच एक कूटनीतिक विवाद के बाद नॉर्वे के अधिकारियों ने बच्चों की कस्टडी उनके चाचा को सौंप दी जिससे उन्हें भारत वापस लाने में मदद मिली. शादी टूटने के बाद सागरिका को कस्टडी के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था.