भारत ने अपने नाम की कितनी बड़ी कामयाबी? ऐसे समझें Chandrayaan-3 के चांद पर पहुंचने की अहमियत

चंद्रयान-3 की चांद पर सफल लैंडिंग के बाद वर्ल्ड मीडिया ने भारत की इस कामयाबी को हाथोंहाथ लिया. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के तमाम बड़े अखबारों ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग की लाइव कवरेज की. आइए पांच प्वॉइंट्स में जानते हैं कि भारत के लिए यह कामयाबी कितनी अहम है:-

नई दिल्ली:

भारत 23 अगस्त को दुनिया के सामने स्पेस पावर के तौर पर उभर कर आया है. देश के तीसरे लूनर मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3 successfully lands on Moon) के लैंडर विक्रम (Chandrayaan-3 Vikram Lander)ने चांद के साउथ पोल पर कदम रखकर इतिहास रच दिया. उसने 20 मिनट में चंद्रमा की अंतिम कक्षा से 25 किमी का सफर पूरा किया. इस सफल लैंडिंग (Chandrayaan-3 on Moon)के साथ ही भारत चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया है. 

चंद्रयान-3 की चांद पर सफल लैंडिंग के बाद भारत की इस महान कामयाबी को वर्ल्ड मीडिया ने हाथोंहाथ लिया. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के तमाम बड़े अखबारों ने चंद्रयान-3 की लैंडिंग की लाइव कवरेज की. आइए पांच प्वॉइंट्स में जानते हैं कि भारत के लिए यह कामयाबी कितनी अहम है:-

1. चांद के डार्क साइड पर जाने वाला भारत पहला देश
अब तक किसी भी देश का स्पेसक्राफ्ट चांद के इस डार्क साइड (South Pole) पर नहीं लैंड कर पाया है. रूस ने कोशिश जरूर की थी. लेकिन 21 अगस्त को रूस का लूना-25 आखिरी ऑर्बिट बदलते समय क्रैश हो गया था. वहीं, चांद के किसी सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश है. भारत से पहले अमेरिका, रूस(USSR) और चीन ऐसा कर चुके हैं.

2. दुनिया ने देखा इसरो का जुनून
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. ISRO ने यह साबित कर दिया है कि भारत जो ठान ले, उसे करने की हिम्मत और जुनून रखता है. कभी सिर्फ किसानों का देश कहा जाने वाला भारत आज चांद के उस सतह पर उतरा, जहां आज तक कोई देश नहीं जा सका.

3. एलीट स्पेस क्लब में हुई एंट्री
अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने भारत के मंगलयान मिशन को लेकर एक आपत्तिजनक कार्टून छापा था. इसमें एक किसान को गाय के साथ दिखाया गया था, जो एलीट स्पेस क्लब के दरवाजे को खटखटा रहा है. इससे पहले अमेरिका भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी देने से इनकार कर चुका है. लेकिन वक्त का तकाजा देखिए... चंद्रयान-3 के लिए अमेरीकी स्पेस एजेंसी NASA ने हमारी स्पेस एजेंसी ISRO की मदद की है. NASA के पास एक डीप स्पेस नेटवर्क (Deep Space Network-DSN) है. जिसमें दुनिया के अलग-अलग कोनों में विशाल रेडियो एंटीने की एक सीरीज है. इसके जरिए NASA इसरो को ट्रैकिंग कवरेज मुहैया करा रहा है. वहीं, ESA अंतरिक्ष में सैटेलाइट को उनकी कक्षा में ट्रैक करने और जमीन से उनका संपर्क बनाए रखने में मदद करती है. 

4. बजट फ्रेंडली मिशन से बना स्पेस पावर
कोई भी स्पेस मिशन बेहद खर्चीला होता है. ISRO के चंद्रयान-3 मिशन में लगभग 615 करोड़ रुपये लगे हैं. यह लागत हालिया रिलीज हॉलीवुड फिल्म  Barbie और Oppenheimer की लागत से भी कम है. कम लागत में ISRO ने मिशन तैयार किया और स्पेस पावर के रूप में अपनी जगह बना ली. यह लैंडिंग एक स्पेस पावर के रूप में ISRO के स्वदेशी ज्ञान को दिखाता है.

5. दुनिया ने देखी मेक इन इंडिया की ताकत
1992 में अमेरिका ने भारत को अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी देने से इनकार कर दिया था. आज 'मेक इन इंडिया' हमारी ताकत को दिखाता है. इसरो अपने काम के जरिए एक अच्छा रेवेन्यू जेनरेटर भी बनकर उभरा है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसरो ने नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, बेल्जियम, जर्मनी, इजराइल और कजाकिस्तान समेत 34 देशों के 345 सैटेलाइट लॉन्च किए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इससे करीब 5.6 करोड़ डॉलर का रेवेन्यू जेनरेट हुआ.

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