सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की दलील- अनुच्छेद 370 की स्थिति पर भ्रम का फायदा "हमारे दुश्मनों" ने उठाया

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, जम्मू-कश्मीर के विशेष स्थान का तर्क तथ्यात्मक रूप से गलत है, भौगोलिक ब्रिटिश भारत में 62 राज्य ऐसे थे जिनके अपने संविधान थे

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की दलील- अनुच्छेद 370 की स्थिति पर भ्रम का फायदा

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अनुच्छेद 370 पर 10 वें दिन की सुनवाई हुई.

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अनुच्छेद 370 पर 10 वें दिन की सुनवाई हुई. पांच जजों की संविधान पीठ में केंद्र ने अहम दलील दी. केंद्र सरकार ने 370 निरस्त करने की वकालत की और कहा कि, अनुच्छेद 370 की स्थिति पर भ्रम का फायदा "हमारे दुश्मनों" ने उठाया. 370 रद्द कर जम्मू-कश्मीर के लोगों के मौलिक अधिकारों को बहाल किया गया. जम्मू-कश्मीर के लोगों को देश के किसी भी अन्य नागरिक के समान अधिकार मिले. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि, उन राज्यों की लिस्ट दीजिए जो विलय समझौते के बिना भारत संघ में शामिल हुए थे.

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से बहस करते हुए सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा, दलील दी गई कि भौगोलिक ब्रिटिश भारत में जम्मू-कश्मीर का एक विशेष स्थान था क्योंकि वह एकमात्र हिस्सा था जिसका 1939 में संविधान था. यह तथ्यात्मक रूप से गलत है. 62 राज्य ऐसे थे जिनके अपने संविधान थे. 
 
उन्होंने कहा कि, इतिहास में जाएं तो भारत सरकार कानून 1935 को देंखें, इसमें राज्यों के भारत सरकार में शामिल होने की शर्तों का जिक्र किया गया है कि, भारत में शामिल होने के बाद उनकी अपनी संप्रभुता खत्म हो जाएगी. 

सीजेआई ने उस कानून की धारा पांच का भी हवाला दिया. इसका जवाब सॉलिसिटर जनरल ने दिया कि इसके प्रावधान के मुताबिक रजवाड़ों और राज्यों की संप्रभुता एक्सेस ट्रिटी पर दस्तखत करते ही ब्रिटिश राज के पास चली जानी थी. इस बारे में मेहता ने कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र भी किया. 

286 राज्य 1939 के दौर में अपना संविधान रचने की प्रक्रिया में थे

इसके बाद तुषार मेहता ने 1939 में ब्रिटिश इंडिया में ब्रिटिश प्रॉविंसेज और रजवाड़ों के विलय का जिक्र करते हुए कश्मीर के महाराजा हरि सिंह की चर्चा की. उस समय 62 स्टेट थे जिनका अपना संविधान था. 286 राज्य इसी बीच 1939 के दौर में अपना संविधान रचने की प्रक्रिया में थे. रीवा सहित कई रजवाड़ों ने कई विशेषज्ञों को इस काम के लिए नियुक्त भी किया था. ऐसे में यह कहना कतई गलत है कि सिर्फ जम्मू कश्मीर का ही विशेष संविधान या विशिष्ट स्थिति थी.

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि मणिपुर ने 26 जुलाई 1947 को भारत सरकार में अपनी संप्रभुता का विलय किया. पंडित नेहरू ने भी कहा था कि भारत सरकार में संप्रभुता के विलय के बाद कोई भी राजवाड़ा अलग सेना या बल नहीं रख सकता, ना कोई टैक्स आदि वसूल सकता है. जुलाई 1946 में फेडरल ऑफ इंडिया, यूनियन ऑफ इंडिया बन गया. 

महाराजा हरि सिंह ने कहा था कि वे कभी भी पाकिस्तान में शामिल नहीं होंगे

मेहता ने कहा कि, महाराजा ने कहा कि वे कभी भी पाकिस्तान में शामिल नहीं होंगे क्योंकि वे एक धार्मिक राज्य की स्थापना कर रहे थे.. ये तथ्य नारायणी बसु और वीपी मेनन की किताब में है. हमारे संस्थापकों ने कितनी खूबसूरती से उस स्थिति से निपटा हमारे देश को एकीकृत किया और उसका अंतिम परिणाम अनुच्छेद 1 था. 

चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, दरअसल ऐसा रियासतों में विश्वास की भावना पैदा करने के लिए किया गया था. आप भारत में शामिल हो रहे हैं लेकिन हम आपको आपके विलय पत्र मे कुछ रियायतें दे रहे हैं. हमें यह भी देखना होगा कि भारत चाहता था कि रियासतें उसमें शामिल हो जाएं, इसलिए हमने उन्हें आश्वासन दिया कि आप आज निर्णय ले सकते हैं कि आप संघ को केवल कुछ विषय ही देंगे. 

एसजी ने कहा कि इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि सरदार पटेल ने कहा कि यह दोनों पक्षों का विषय आपसी हित का था. इसके लिए अन्य राज्यों द्वारा हस्ताक्षरित विलय पत्र के मसौदे का हवाला कोर्ट को दिया. 

''मेनन वापस आए तो ठीक, नहीं तो मुझे गोली मार देना''

CJI ने महाराजा द्वारा लिखे गए पत्र को देखते हुए कहा  कि यह पत्र मेनन द्वारा सरदार पटेल को दिया गया था. इसमें महाराजा के द्वारा निर्देश दिया गया था कि यदि मेनन वापस आए तो ठीक नहीं तो मुझे गोली मार देना. 

एसजी ने कहा जैसे ही जिन्ना ने सुना कि भारत ने जम्मू-कश्मीर के विलय को स्वीकार कर लिया है, उन्होंने समस्या पर चर्चा के लिए नेहरू को लाहौर आमंत्रित किया. उन्होंने कहा कि उस समय की कूटनीति देखिए माउंटबेटन निमंत्रण स्वीकार करने के लिए उत्सुक थे और नेहरू माउंटबेटन से सहमत होने के इच्छुक थे, लेकिन सरदार पटेल इस आधार पर इस प्रस्ताव के सख्त विरोध में थे कि पाकिस्तान हमलावर था और भारत को उन्हें खुश करने की नीति नहीं अपनानी चाहिए. कुछ ऐसे राज्य थे जिन्होंने विलय समझौतों के संशोधित दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं किए थे फिर भी भारत के हिस्से के रूप में शामिल हुए. जैसे ही वे भारत में शामिल हुए, उन्हें संविधान सभा में शामिल किया जाने लगा और प्रत्येक राज्यों को जोड़ते हुए अनुसूची 1 में संशोधन किया गया. 

भारत का संविधान अस्तित्व में आया तो राज्यों ने अपनी संप्रभुता खो दी

तुषार मेहता ने कहा कि, एक बार जब भारत का संविधान अस्तित्व में आया तो अनुसूची 1 में उल्लिखित सभी राज्यों ने अपनी संप्रभुता खो दी. इसी तरह देश बनते हैं. केवल संविधान ही भारत के लोगों को संप्रभुता प्रदान करने वाला सर्वोच्च दस्तावेज रह गया और अन्य सभी दस्तावेज इसमें समाहित हो गए. 

मेहता ने राज्य मंत्रालय, संविधान सभा की बहस का जिक्र किया, जिसमें सरदार पटेल और गोपालस्वामी अय्यंगार के भाषण का नोट के आधार पर तर्क दिया गया कि संप्रभुता पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दी गई थी और जम्मू-कश्मीर में अशांत स्थिति सामान्य नहीं होने तक अनुच्छेद 370 अस्थायी था.

पिछले 70 से भी ज्यादा सालों से परेशान था सीमा क्षेत्र

तुषार मेहता ने कहा कि पिछले 70 से भी ज्यादा सालों से परेशान था वह सीमाई क्षेत्र.
तब से ही देश के एक हिस्से में मनोवैज्ञानिक द्वंद चल रहा था, चाहे वह कहीं से प्रेरित हो या कुछ और. लेकिन 370 के प्रावधान खत्म होने के बाद वहां के लोगों की भावना देखिए, उन्होंने दिवाली मनाई. भावनात्मक दिवाली थी.

तुषार मेहता ने कहा, तथ्यों को देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि अब जम्मू-कश्मीर के निवासियों को बड़ी संख्या में मौलिक अधिकार और अन्य अधिकार प्रदान किए जाएंगे और वे पूरी तरह से देश के अपने बाकी भाइयों और बहनों के बराबर होंगे. एसजी मेहता ने कहा, जिस समय विलय पूरा हो जाता है, संप्रभुता का विलय हो जाता है. यह बड़ी संप्रभुता में समाहित हो जाता है. 

''एक अंग को बचाने के लिए कभी भी जान नहीं ली जाती''

केन्द्र सरकार की तरफ से पहले अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमणी ने दलील देना शुरू कीं. अटॉर्नी जनरल ने बहस की शुरुआत अब्राहम लिंकन के एक कथन से की. उन्होंने कहा कि लिंकन ने राष्ट्र को खोने और संविधान को संरक्षित करने की बात कही है.  सामान्य कानून के अनुसार, जीवन और उसके अंगों की रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन किसी की जान बचाने के लिए एक अंग को काटा जा सकता है लेकिन एक अंग को बचाने के लिए कभी भी जान नहीं ली जाती है. अनुच्छेद 370 को उसी तर्ज पर संवैधानिक एकीकरण प्रक्रिया में सहायता के लिए बनाया गया था जैसा कि अन्य राज्यों के साथ हुआ था. इसे एक निश्चित अवधि तक के लिए  बने कानून को निरंतर लागू किए जाने के तौर पर नहीं देखा जा सकता है.

AG ने कहा कि, राष्ट्रपति का आदेश पारित करते समय उचित प्रक्रिया का पालन किया गया. सीमावर्ती राज्य भारत के एक विशेष क्षेत्र होते हैं और उनके पुनर्गठन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. कोर्ट को राज्यों से संबंधित कार्यों के लिए संसद को स्वतंत्रता देनी चाहिए. अनुच्छेद 356 के तहत सरकार के पास शक्ति मौजूद है. 

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एजी की दलीले पूरी होने के बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहस की. मामले की सुनवाई 28 अगस्त को भी होगी.