सु्प्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन (Permanent Commission for Women Officers in Armed Forces) देने के मामले में कड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा, "केंद्र सरकार फैसले को वैसे ही लागू करे, जैसे यह दिया गया है.यह फैसले के इर्द-गिर्द घूमने की कोशिश है. अदालत ने कहा कि हम फैसले को फिर से नहीं खोलेंगे. अगर आप खुश नहीं हैं तो आप पुनर्विचार दाखिल करें." सुप्रीम कोर्ट ने मामले को फिर से खोलने से इनकार कर दिया है. अदालत ने केंद्र सरकार की स्पष्टीकरण के लिए दाखिल अर्जी पर विचार करने से इनकार किया.
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सुप्रीम कोर्ट ने महिला अफसरों की अर्जी पर भी सुनवाई से इनकार किया.जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने स्पष्टीकरण मांगने के "फैशन" पर नाखुशी व्यक्त की.पीठ ने कहा कि अगर फैसले के संबंध में कोई शिकायत है, तो इस पर पुनर्विचार के लिए ही उपयुक्त विकल्प है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र फैसले को वैसे ही लागू करें जैसे यह दिया गया है. यह निर्णय़ के इर्द-गिर्द घूमने की कोशिश है. अदालत इस मामले में दोबारा सुनवाई नहीं करेगी.
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याचिकाकर्ता चाहें तो पुनर्विचार दाखिल कर सकते हैं. दरअसल, इस साल 25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन देने के लिए भारतीय सेना द्वारा अपनाए गए मूल्यांकन मानदंडों को "मनमाना और तर्कहीन" के रूप में खारिज कर दिया था. पीठ ने महिला अफसरों को सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal)के समक्ष उपाय करने के लिए की छूट के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दी थी.
शीर्ष अदालत ने फरवरी 2020 के अपने मूल फैसले के बावजूद सेना में कई महिला अधिकारियों को फिटनेस के आधार पर स्थायी कमीशन नही दिए जाने को गलत ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली HC ने इस पर 2010 में पहला फैसला दिया था. 10 साल बीत जाने के बाद मेडिकल फिटनेस और शरीर के आकार के आधार पर स्थायी कमीशन न देना ठीक नहीं है. साथ ही महिलाओं को परमानेंट कमीशन के पक्ष में निर्णय़ सुनाया था.
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