उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह उस व्यक्ति को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि का भुगतान करे, जिसे दिसंबर 1976 में पाकिस्तानी अधिकारियों ने जासूसी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था. इसके परिणामस्वरूप 1980 में उस व्यक्ति ने अपनी नौकरी खो दी थी.
प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति एसआर भट्ट की पीठ ने कहा कि इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर संपूर्ण न्याय तभी होगा जब सरकार को राजस्थान के रहने वाले व्यक्ति को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है.
शीर्ष अदालत ने सरकार को आदेश दिया कि 12 सितंबर से तीन सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि का भुगतान किया जाए.
उस व्यक्ति ने दावा किया कि लगातार अनुपस्थिति के कारण उसे अपनी नौकरी गंवानी पड़ी थी. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और 14 साल जेल की सजा सुनाई गई और वह 1989 में भारत वापस आ सका.
शुरुआत में, पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को पांच लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी जाए. याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने पीठ से राशि बढ़ाने का अनुरोध करते हुए कहा कि 75 वर्षीय याचिकाकर्ता ने देश के लिए काम किया है और इस समय वह बीमार है तथा बिस्तर पर है और अपनी बेटी पर निर्भर है.
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