सीबीआई (CBI) निदेशक का पद संभालते ही आलोक वर्मा (Alok Verma) फिर से एक्शन में आ गए हैं. 77 दिन बाद बुधवार को ड्यूटी पर लौटे आलोक वर्मा (CBI Chief Alok Verma) ने तत्कालीन अंतरिम निदेशक एम नागेश्वर राव (Nageshwar Rao) द्वारा किए गए लगभग सभी ट्रांसफर ऑर्डर को निरस्त कर दिया. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के सरकारी आदेश को मंगलवार को रद्द कर दिया था. आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच तकरार शुरू होने के बाद सरकार ने दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था और उनके सारे अधिकार ले लिए थे.
CBI director Alok Verma withdraws transfer orders made by M Nageswara Rao who was appointed as interim CBI Director. Section 4 and 5 of transfer orders not withdrawn. pic.twitter.com/MytrkgBf4M
— ANI (@ANI) January 9, 2019
आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने के बाद 1986 बैच के ओडिशा काडर के आईपीएस अधिकारी नागेश्वर राव को 23 अक्टूबर, 2018 को सीबीआई निदेशक के दायित्व और कार्य सौंपे गए थे. अधिकारियों के अनुसार अगली सुबह ही राव ने बड़े पैमाने पर तबादले किए. उनमें अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की जांच करने वाले अधिकारी जैसे डीएसपी एके बस्सी, डीआईजी एम के सिन्हा, संयुक्त निदेशक एके शर्मा भी शामिल थे. एक अधिकारी ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि आलोक वर्मा ने बुधवार को अपना दायित्व संभाल लिया और राव द्वारा किए गए सभी तबादले रद्द कर दिए.
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक की शक्तियों से वंचित कर अवकाश पर भेजने का केंद्र सरकार का आदेश रद्द कर दिया था. हालांकि, कोर्ट ने वर्मा के पर कतरते हुए साफ कर दिया था कि बहाली के उपरांत सीबीआई प्रमुख का चयन करने वाली उच्चाधिकार समिति के उनकी शक्तियां छीनने के मुद्दे पर विचार करने तक वह कोई भी बड़ा नीतिगत फैसला करने से परहेज करेंगे. वर्मा का सीबीआई निदेशक के तौर पर दो वर्ष का कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त हो रहा है.
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बहरहाल, वर्मा को शक्तियों और अधिकारों से वंचित करने की तलवार अब भी उनके सिर पर लटकी हुई है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि सीबीआई प्रमुख का चयन करने वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति अब भी वर्मा से जुड़े मामले पर विचार कर सकती है, क्योंकि सीवीसी उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है. चयन समिति को एक हफ्ते के भीतर बैठक बुलाने को कहा गया है. न्यायालय ने कहा कि कानून में अंतरिम निलंबन या सीबीआई निदेशक को हटाने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है.
शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया कि इस तरह का कोई भी फैसला चयन सहमति की सहमति लेने के बाद ही किया जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने 44 पेज के फैसले में वर्मा को उनकी शक्तियों से वंचित करने और संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाए जाने संबंधी सीवीसी और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के 23 अक्टूबर, 2018 के आदेशों को निरस्त कर दिया.
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पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि सीबीआई निदेशक वर्मा अपने पद पर बहाल होने पर समिति से ऐसी कार्रवाई या निर्णय लेने की अनुमति मिलने तक कोई भी बड़ा नीतिगत फैसला नहीं करेंगे और ऐसा करने से बचेंगे. यह फैसला प्रधान न्यायाधीश ने लिखा, लेकिन चूंकि आज वह उपस्थित नहीं थे इसलिए न्यायमूर्ति कौल ने यह निर्णय सुनाया. इसके साथ ही न्यायालय ने अपने फैसले में प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और नेता प्रतिपक्ष (लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता) की सदस्यता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति को एक सप्ताह के भीतर बैठक करने के लिए भी कहा. उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति के फैसले के आधार पर वर्मा को 19 जनवरी 2017 को दो साल के लिए सीबीआई निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया था.
VIDEO: काम पर लौटे CBI चीफ आलोक वर्मा
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