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This Article is From Apr 23, 2020

जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए के तहत मामले दर्ज

सरकार ने पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी

जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए के तहत मामले दर्ज
जम्मू-कश्मीर के पत्रकार, जिनके खिलाफ दर्ज हुआ यूएपीए मामला
नई दिल्ली:

कश्मीर की 26 साल की फोटोग्राफर मशरत जाहरा पर सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी गई है.  फ्रीलांस फोटोग्राफर के तौर पर मसरत कश्मीर से भारत और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के कई संस्थानों के लिए काम कर चुकी हैं. अपने चार साल के कैरियर में मसरत ज्यादातर हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों पर रिपोर्ट करती रहीं हैं. मसरत कहती हैं कि फोटोग्राफी मेरी पहचान है. मैं ना किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ी हूं और ना ही किसी समाजिक संगठन से. आज हालत ये है कि कश्मीर में जो भी पेशेवर तरीके से काम करता है उसे ये आतंकवादी समझते हैं पर ये हमारे हौसले के कभी डिगा नहीं सकते हैं. मैं एक पत्रकार हूं और यही मेरी पहचान है. 

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ऐसे ही एक और पत्रकार गौहर गिलानी पर जम्मू कश्मीर पुलिस ने मामला दर्ज किया है. गिलानी पर सोशल मीडिया पर लिखी उनकी पोस्ट को लेकर यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. गिलानी पर आरोप है कि उनकी सोशल मीडिया पोस्टें राष्ट्रीय एकता, अखंडता और भारत की सुरक्षा के लिए पूर्वाग्रह से प्रेरित हैं. पुलिस ने आरोप लगाया है. गिलानी की गैर-क़ानूनी गतिविधियों और कश्मीर में आतंकवाद का महिमामंडन करने की वजह से प्रदेश की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा हो सकता है. इस पर गिलानी कहते हैं कि वे कहने के लिए कुछ भी कह सकते हैं. यहां जो भी प्रशासन और सरकार से सवाल पूछता है तो ऐसे आरोप लगाए जाते हैं. एक पत्रकार लिखेगा नहीं तो क्या करेगा. ये हमला मुझ पर या मसरत पर नहीं है बल्कि पूरी पत्रकारिता पर हमला है. अगस्त के बाद से जिस तरह से तीन पूर्व मुख्यमंत्री के साथ साथ हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया हो उनसे आप क्या उम्मीद कर सकते हैं?   

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इसके अलावा ‘द हिंदू' अखबार के श्रीनगर संवाददाता पीरजादा आशिक के खिलाफ़ भी यूएपीए लगाया गया है. पीरजादा के लेकर पुलिस का दावा है कि उसे 19 अप्रैल को सूचना मिली कि शोपियां एनकाउंटर और उसके बाद के घटनाक्रमों पर पीरजादा आशिक नाम के पत्रकार ने  द हिंदू अखबार में ‘फेक न्यूज' प्रकाशित किया जा रहा था. एफआईआर में पुलिस ने दावा किया कि न्यूज में दी गई जानकारी तथ्यात्मक रूप से गलत है . इस खबर से लोगों के मन में डर बैठ सकता है. यह भी कहा गया कि खबर में पत्रकार ने जिला के अधिकारियों से इसकी पुष्टि नहीं कराई. इस पर पीरजादा आशिक का कहना है उन्होंने शोपियां के परिवार के इंटरव्यू के आधार पर खबर बनाई है . उन्होंने यह भी दावा किया कि शोपियां के डीसी के आधिकारिक बयान के लिए एसएमएस, व्हाट्सऐप और ट्विटर से संपर्क किया . उन्होंने हैरानी जताई कि उस खबर को फेक न्यूज करार दिया जा रहा है. यही नहीं आशिक कहते हैं इस एफआईआर में ना तो इनका और ना ही अखबार के नाम का कोई जिक्र है. पीरजादा कहते हैं आज सरकार चाहती है कश्मीर से वही छपे जो वो चाहती है. अगर आप ग्राउंड रिपोर्ट या परिवार से बात करके कोई स्टोरी करेंगे तो फिर आप पर मामला दर्ज कर लिया जाएगा.

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इस पूरे मामले में एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने गिलानी, जाहरा और पीरजादा आशिक़ के ख़िलाफ़ यूएपीए लगाने को ताक़त का दुरुपयोग बताया है. एडिटर्स गिल्ड का कहना है कि सरकार की इन कार्रवाइयों पर वह हैरत में है और इसका विरोध करता है. गिल्ड ने एक बयान में कहा कि सिर्फ सोशल मीडिया या मुख्यधारा की मीडिया में कुछ छपने पर इस क़ानून का सहारा लेना सत्ता का खुला दुरुपयोग है. एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में कहा है कि इन पत्रकारों को किसी तरह का ऩुकसान नहीं पहुंचना चाहिए. गिल्ड ने कहा कि यदि सरकार को रिपोर्टिंग से कोई शिकायत भी थी तो उसके समाधान के लिए दूसरे तरीके हैं. सच्ची तस्वीरों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से ही खूंखार आतंकवादियों से निपटने वाला कानून लागू नहीं किया जा सकता है. 

हालांकि इस मामले पर कश्मीर पुलिस के आईजी विजय कुमार ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि मेरे लिए कोई भी व्यक्ति मायने नहीं रखता है. उन्होंने सोशल मीडिया या फिर कहीं पर क्या लिखा है वो मायने रखता है. ये कोर्ट ऑफ लॉ के अन्तर्गत आता है. बाकी कोर्ट तय करेगा.      

इन घटनाओं से साफ है कि जम्मू कश्मीर में पत्रकारों की आवाज को दबाया जा रहा है. कश्मीर के पत्रकारों का कहना है कि कश्मीर में मीडिया को चुप कराने की कोशिश हो रही है. वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है कि जम्मू कश्मीर के पत्रकारों को दोधारी तलवार पर चलते हुए अपना फर्ज निभाना पड़ रहा है. पहले पत्रकार आतंकियों और सरकार रूपी चक्की के दो पाटों में पिसता रहा है. अब पत्रकारों को लग रहा है कि दोधारी तलवार की दोनों की धारें सरकार की हैं जो उनकी आवाज को दबानें की कोशिश कर रही है.

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