मुंबई:
दिल की बीमारियों के मरीजों के लिए जीवनदायी साबित होते कार्डिआक स्टेंट्स के कारोबार में भारी मुनाफ़ाखोरी का खुलासा हुआ है। खुलासा किसी स्वयंसेवी संगठन ने नहीं बल्कि महाराष्ट्र सरकार के खाद्य एवं औषधि विभाग अर्थात FDA ने किया है।
महाराष्ट्र सरकार ने पाया है कि स्टेंट के कारोबार में पेशेंट की जेब पर भारी बोझ पड़ रहा है। दिल के मरीजों के लिए खून का बहाव सतत जारी रहे इस लिए रक्तवाहिकाओं में एंजिओप्लास्टी कर स्टेंट बिठाया जाता है। इस जरूरी चीज के कारोबार में महाराष्ट्र FDA ने भारी मार्जिन उगाही का खुलासा किया है।
विभाग के विजीलेंस टीम की जांच बताती है कि एक स्टेंट पर करीब 300 गुना मुनाफा कमाया जा रहा है। स्टेंट आयात करती कंपनी, उसके डिस्ट्रीब्यूटर और अस्पतालों का नेक्सस इसके पीछे है। विभाग ने इसे साबित करने के लिए कुछ कंपनी, डिस्ट्रिब्युटर और अस्पतालों के सौदों को राडार पर रखा था। उसी से स्टेंट की कीमत इम्पोर्ट ड्यूटी से ज्यादा होने की बात का खुलासा हुआ है।
महाराष्ट्र FDA कमिश्नर हर्षदीप काम्बले ने एनडीटीवी को इस बात की जानकारी दी। उनकी जांच के आधार पर राज्य सरकार ने केंद्रीय स्वाथ्य मंत्री को लिखित विनती की है कि स्टेंट को अत्यावश्यक औषधि की सूची में शामिल किया जाए। साथ ही नेशनल प्राइसिंग अथॉरिटी स्टेंट की कीमत समेत उसपर कमाए जा सकने वाले मार्जिन की दर भी तय करें।
एनडीटीवी इंडिया से एक्सक्लूसिव बातचीत में काम्बले ने कहा कि स्टेंट का कारोबार देश में सालाना 2 हजार करोड़ रुपये का है। इसमें जारी मुनाफ़ाखोरी की वजह से 30 से 40 हजार रुपये का एक स्टेंट मरीज को डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा में बेचा जा रहा है। अगर इसके दाम कम होते हैं तो मरीज की जेब से जानेवाले करीब 700 करोड़ रुपये सालाना बचाए जा सकेंगे।
FDA की इस पहल को मेडिकल क्षेत्र से भी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। विख्यात हार्ट सर्जन डॉ. आर पांडा ने एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में कहा, 'स्टेंट के भारत में निर्माण को बढ़ावा मिलना चाहिए। ऐसा होने पर उसकी कीमत कम हो सकती है।'
इलाज के दौरान महंगे स्टेंट इसलिए खरीदे जाते हैं क्योंकि उस समय पेशेंट की जान की कोई कीमत नहीं होती। इसी को आधार बनाकर दिल धड़कते रखने का कारोबार भारत में फलफूल रहा है। इसे रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने पहल की है।
महाराष्ट्र सरकार ने पाया है कि स्टेंट के कारोबार में पेशेंट की जेब पर भारी बोझ पड़ रहा है। दिल के मरीजों के लिए खून का बहाव सतत जारी रहे इस लिए रक्तवाहिकाओं में एंजिओप्लास्टी कर स्टेंट बिठाया जाता है। इस जरूरी चीज के कारोबार में महाराष्ट्र FDA ने भारी मार्जिन उगाही का खुलासा किया है।
विभाग के विजीलेंस टीम की जांच बताती है कि एक स्टेंट पर करीब 300 गुना मुनाफा कमाया जा रहा है। स्टेंट आयात करती कंपनी, उसके डिस्ट्रीब्यूटर और अस्पतालों का नेक्सस इसके पीछे है। विभाग ने इसे साबित करने के लिए कुछ कंपनी, डिस्ट्रिब्युटर और अस्पतालों के सौदों को राडार पर रखा था। उसी से स्टेंट की कीमत इम्पोर्ट ड्यूटी से ज्यादा होने की बात का खुलासा हुआ है।
महाराष्ट्र FDA कमिश्नर हर्षदीप काम्बले ने एनडीटीवी को इस बात की जानकारी दी। उनकी जांच के आधार पर राज्य सरकार ने केंद्रीय स्वाथ्य मंत्री को लिखित विनती की है कि स्टेंट को अत्यावश्यक औषधि की सूची में शामिल किया जाए। साथ ही नेशनल प्राइसिंग अथॉरिटी स्टेंट की कीमत समेत उसपर कमाए जा सकने वाले मार्जिन की दर भी तय करें।
एनडीटीवी इंडिया से एक्सक्लूसिव बातचीत में काम्बले ने कहा कि स्टेंट का कारोबार देश में सालाना 2 हजार करोड़ रुपये का है। इसमें जारी मुनाफ़ाखोरी की वजह से 30 से 40 हजार रुपये का एक स्टेंट मरीज को डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा में बेचा जा रहा है। अगर इसके दाम कम होते हैं तो मरीज की जेब से जानेवाले करीब 700 करोड़ रुपये सालाना बचाए जा सकेंगे।
FDA की इस पहल को मेडिकल क्षेत्र से भी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। विख्यात हार्ट सर्जन डॉ. आर पांडा ने एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में कहा, 'स्टेंट के भारत में निर्माण को बढ़ावा मिलना चाहिए। ऐसा होने पर उसकी कीमत कम हो सकती है।'
इलाज के दौरान महंगे स्टेंट इसलिए खरीदे जाते हैं क्योंकि उस समय पेशेंट की जान की कोई कीमत नहीं होती। इसी को आधार बनाकर दिल धड़कते रखने का कारोबार भारत में फलफूल रहा है। इसे रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने पहल की है।
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