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मैं उन्हें इन पहाड़ों में महसूस करता हूं... करगिल से भाई की जुबानी 'परमवीर' विक्रम बत्रा की कहानी

करगिल की उस शौर्य गाथा को 25 साल पूरे हो रहे हैं. जानिए देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत की कहानी उनके भाई विशाल की जुबानी...

द्रास:

करगिल की पहाड़ियों से टकराती हुई हवा सर्र सर्र बह रही है. बातचीत के दौरान हवा में मुंह से निकले शब्द कई बार बह से जाते हैं. लेकिन कुछ शब्द हैं, जो जिंदा हैं. अमिट हैं. 'यह दिल मांगे मोर' इनमें से एक है. मानो अभी भी गूंज रहा हो. इस एक लाइन पर कैप्टन विक्रम बत्रा याद बरबस आ जाते हैं. उनकी यादें ताजा करने उनके जुड़वा भाई विशाल बत्रा द्रास आए हैं. नीचे की पहाड़ी पर बैठे हैं और दूर पॉइंट 5140 और पॉइंट 4875 की तरफ बार-बार उनकी नजरें घूम जा रही हैं. जहां भारत को अपना 'शेरशाह' मिला था. विशाल की आंखों में सबकुछ फिल्म की रील की तरह घूम रहा है. 25 साल पहले वाली हर एक बात याद आ रही है. NDTV से बातचीत में विशाल भाई के किस्सों का पिटारा खोलते हैं. 

स्कूल के वे दिन...

विशाल बत्रा भाई से अपनी दोस्ती की बातें बताते हैं,  'हम दोनों फौज में जाना चाहते थे. यह सपना था हम दोनों का. स्कूल आर्मी कैंटोनमेंट में था. वहां माउंट ब्रिगेड हुआ करती थी. हमारी पूरी दिनचर्या ही फौजियों जैसी हो गई थी. उस वक्त दूरदर्शन पर परमवीर चक्र सीरियल आया करता था. हम दोनों का यह फेवरिट था.हमने साथ में SSB का टेस्ट दिया था. विक्रम का सिलेक्शन पहली ही कोशिश में हो गया था. मैंने दो बार और कोशिश की. लेकिन सफल नहीं हुआ.' 

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लव, कुश और मां 

वह बताते हैं कि कैसे विक्रम को मां लव बुलाया करतीं, और उन्हें कुश पुकारतीं. वह बताते हैं कि मां की भगवान राम में बड़ी आस्था थी. वह सुबह रामचरितमानस का नियमित पाठ करतीं. और उनके लिए हम दोनों जुड़वा भाई लव-कुश हो गए. और फिर अचानक बचपन की यादों का यह किस्सा करगिल की तरफ मुड़ जाता है.  

विशाल ने इन 25 सालों में करगिल के उन पत्थरों को छुआ है, जहां युद्ध के दौरान कई भाई के कदम पड़े होंगे. वह उसे पॉइंट 5140 पर भी गए, जिसे जीतने के बाद भाई का आखिरी फोन आया था. और 17 हजार फीट पर उस पॉइंट  4875 पर भी, जिस पर विक्रम शहीद हुए और जिसे अब बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है. 

भाई के कदमों के निशां...

विशाल बताते हैं कि मेरी बड़ी इच्छा थी कि 4875 पर जाऊं. करगिल की 20वीं सालगिरह वह मुझे  4875 पर जाने का मौका मिला. विक्रम ने यहां पर शहादत दी थी. मुझे वहां जाकर पता चला कि यह कितना कठिन युद्ध क्षेत्र था. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस चोटी को छुड़ाने वाले जांबांजों को दो परमवीर चक्र मिले. यह बताता है कि कितना मुश्किल अभियान रहा होगा. 

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लिव लाइफ किंग साइज..

विशाल बताते हैं कि मेरे कुछ अच्छे कर्म रहे होंगे कि मैं विक्रम के भाई के रूप में पैदा हुआ.विक्रम से उस रिश्ते को बयां नहीं कर सकता हूं.यह बस महसूस किया जा सकता है. उन्हें फिर स्कूल के दिनों की याद आती है. विशाल बताते हैं, 'जब हम कॉलेज में होते थे तो वह कहते थे- 'लिव लाइफ किंग साइज'. फौज का जुनून कुछ ऐसा था कि तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में आऊंगा. स्कूल के दिनों में याद करता हूं यकीन नहीं होता है कि हम दोनों ऐसे थे.'विशाल कहते हैं कि विक्रम का वह जुनून और जज्बा ही था कि वह 25 साल बाद भी अमर हैं.

कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत की कहानी 

  • ऑपरेशन विजय के दौरान 13 जैक राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा को पॉइंट 5140 को दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराने का टास्क सौंपा गया था.
  • विक्रम बत्रा ने अपने दल के साथ बहादुरी से युद्ध लड़ते हुए यह पॉइंट दुश्मनों से छुड़ाया. आमने-सामने की लड़ाई में 4 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. 
  • 07 जुलाई 1999 को उनकी कंपनी को पॉइंट 4875 पर कब्जा करने का काम सौंपा गया. आमने-सामने की भीषण लड़ाई में बत्रा ने 5 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया.
  • गंभीर रूप से जख्मी हो जाने के बावजूद विक्रम बत्रा अपने दल को लीड करते रहे और इस नामुमकिन से काम को सफल बनाया. 
  • इस अदम्य साहस  के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 

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