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This Article is From Sep 05, 2021

मुंबई में फुटपाथ पर रहने को मजबूर हैं कैंसर के मरीज, ना ही सिर पर छत ना ही जेब में पैसा

मुंबई के टाटा कैंसर अस्पताल (Tata Memorial Hospital) में इलाज के लिए देश भर से लोग आते हैं. अस्पताल में इलाज मिल जाता है, लेकिन इस कार्यकाल में रहने और दूसरी चीजों के लिए इन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

मुंबई में फुटपाथ पर रहने को मजबूर हैं कैंसर के मरीज, ना ही सिर पर छत ना ही जेब में पैसा
कैंसर के इलाज के लिए मुंबई आने वाले अधिकांश लोग वही हैं जो गरीब हैं.
मुंबई:

मुंबई के टाटा कैंसर अस्पताल (Tata Memorial Hospital) में इलाज के लिए देश भर से लोग आते हैं. अस्पताल में इलाज मिल जाता है, लेकिन इस कार्यकाल में रहने और दूसरी चीजों के लिए इन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यह लोग महीनों फुटपाथ पर रहते हैं, इसका सेहत पर भी असर पड़ता है. मॉनसून में परेशानी और बढ़ जाती है.

दोपहर के समय मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल के ठीक सामने फुटपाथ पर नारायण सूर्यवंशी अपने रिश्तेदारों के साथ बैठ खाना खा रहे हैं. आज किसी ने केला और चावल दे दिया, तो आज दोपहर का खाना यही है. नांदेड़ में रहने वाले नारायण सूर्यवंशी मजदूरी करते हैं. तीन महीने पहले पेट के कैंसर की जानकारी मिली. इलाज के लिए सबकुछ बेच मुम्बई आए हैं. महीनों तक इलाज चलेगा. इनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि यह किसी होटल या लॉज में रुक सकें.

नारायण सूर्यवंशी कहते हैं, 'घर में दो तीन बकरियाँ थीं, उसे बेच दिया. बकरियों को बेचने के बाद भी पैसा कम था, तो पत्नी के गहनों को भी बेचना पड़ा, उसके बाद पैसा आया है. कुछ लोग आकर खाना देते हैं, तो उसे खा लेते हैं. अगर बारिश हुई, जेब में पैसा है तो लॉज में चले जाते हैं, पैसा नहीं होता तो कहीं जाकर बैठ जाते हैं. बारिश में जहां जगह मिलती है, वहां रुकते हैं, फिर कोई आकर भगा देता है तो कहीं और चले जाते हैं. दिन तो निकल जाता है, रात नहीं निकलती है.

मुंबई के इस फुटपाथ पर इस तरह के आपको सैंकड़ों लोग मिल जाएंगे, जिनकी यही परेशानी है. बिहार से सीमा देवी अपने पति के कैंसर के इलाज के लिए 4 महीनों से मुंबई में रह रही हैं. पहले एक स्कूल में इन्हें पनाह दी गई थी, लेकिन अब स्कूल को खोलने की तैयारी है, लिहाज़ा इन्हें वहां से हटा दिया गया है. साथ में बेटा भी आया हुआ है. पिता के इलाज के वजह से अब इसकी पढ़ाई छूट गई है.

सीमा देवी कहती हैं, 'एक तो घर छोड़कर आए हैं. बच्चों के जीवन के बारे में सोचते हैं कि वो पढें लिखें, लेकिन उनका भी जीवन बर्बाद है. पढ़ाई बंद कर दी है 12वीं के बाद.

अधिकांश मुंबई आने वाले लोग वही हैं जो गरीब हैं. टाटा अस्पताल में इलाज में कम पैसा लगने के कारण वो यहीं फुटपाथ पर रहते हैं. लेकिन शौच से लेकर दूसरे सभी चीजों के लिए हर रोज़ इन्हें अपनी लड़ाई लड़नी पड़ती है. यह अस्पताल से दूर इसलिए भी नहीं जाते हैं, क्योंकि इन्हें कभी भी अस्पताल में बुलाया जाता है.

पीड़ित गुलशन का कहना है, 'डॉक्टर बोल रहे हैं कि आसपास में रहना है, फोन करेंगे तो आ जाना है. आसपास में कोई है नहीं. यहां होटल में 1000 रुपया किराया है एक दिन का. हम कहां से यह देंगे.'

मुंबई में पिछले कई सालों से यह लोग इसी तरह फुटपाथ पर रहने को मजबूर हैं. हाल ही में सरकार ने कैंसर के मरीजों के रहने के लिए म्हाडा के 100 फ्लैट दिए जाने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में इसे रोक दिया गया. कोनार्क कैंसर फाउंडेशन की सीईओ हिमाद्रि बताती हैं कि इस तरह सड़कों पर रहने का बहुत ज़्यादा असर इन मरीजों की सेहत पर पड़ता है.

हिमाद्रि नाहक कहती हैं, 'लोग यहां कम पैसे लेकर आते हैं, उन्हें लगता है कि 20 दिनों में कुछ इलाज हो जाएगा और वो वापस आ जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं होता. डायग्नोसिस में महीनों लगते हैं. यह सभी मजदूर हैं. ज़्यादा से ज़्यादा इनके पास 75 हज़ार रुपये हैं. उसका इस्तेमाल वो या इलाज के लिए कर सकते हैं, या रहने के लिए. इसलिए वो फुटपाथ पर रहते हैं.'

यह लोग जहां पहले से परेशान हैं तो वहीं दिन ब दिन होने वाले खर्चों ने इनकी परेशानी और बढ़ा दी है. जबतक प्रशासन की ओर से इनके लिए कोई स्थाई कदम नहीं उठाया जाता, इनकी परेशानी यूं ही बरकरार रहेगी.

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