पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ बीजेपी नेता दिलीप घोष (Dilip Ghosh) विवादित बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं. पश्चिम बंगाल की बीजेपी इकाई के पूर्व प्रमुख घोष को दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय से एक पत्र मिला है जिसमें उनकी उन टिप्पणियों की ओर ध्यान दिलाया गया है जिनके कारण केंद्रीय नेतृत्व को शर्मिंदगी उठानी पड़ी. गौरतलब है कि इस समय बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर काबिज घोष ने सार्वजनिक रूप से अपने उत्तराधिकारी सुकांत मजूमदार की राज्यों में पार्टी से जुड़े मामलों को 'हैंडल' करने को लेकर आलोचना की थी. पिछले वर्ष हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था.
घोष से संवाददाताओं से कहा था, "सुकांत कम अनुभवी हैं. पार्टी लंबे समय से बंगाल में 'लड़' रही है और कई अनुभवी दिग्गज हैं....उन्हें राज्य में खड़ा किया जाना चाहिए. " बीजेपी मुख्यालय प्रभावी अरुण सिंह के हस्ताक्षर से कल भेजे गए पत्र में पार्टी ने घोष को याद दिलाया है कि उन्हें, इससे पहले भी विवादित टिप्पणियों से बचने के लिए कहा गया था. आशा है कि आप इस बारे में ध्यान रखेंगे.घोष को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि आपकी बेवजह की बयानबाज़ी से कई राज्य नेताओं को दुख पहुँचा है और केंद्रीय नेतृत्व को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है. हाल के टीवी इंटरव्यू में राज्य बीजेपी नेताओं पर आपने जिस तरह निशाना साधा, उससे पार्टी की छवि को धक्का पहुंचा है.बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने ऐसे बयानों पर चिंता जताई है. अरुण सिंह ने घोष को निर्देश दिया कि वे ऐसे बयान न दें.
We have said this before and we will say it again, @BJP4Bengal built a house of cards that is fast falling.@DilipGhoshBJP being censured by the BJP high commission points to the lack of organizational unity in their party.
— All India Trinamool Congress (@AITCofficial) May 31, 2022
Save your sandcastle by the sea @BJP4India! pic.twitter.com/8sTJTT00pN
बीजेपी से जुड़े इस घटना पर बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस चुटकी लेने से नहीं चूकी. पार्टी की ओर से जारी ट्वीट में कहा गया है, "हम पहले भी कह चुके हैं और अब भी कहते हैं कि बंगाल बीजेपी ने ताश के पत्तों का घर बनाया जो अब तेजी से गिर रहा है. दिलीप घोष की बीजेपी हाईकमान की ओर से की जा रही निंदा, इस पार्टी में संगठनात्मक एकता में कमी की ओर इशारा करती है. "
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