केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने बीजेपी सांसद और संसदीय पैनल के चीफ़ डीके गांधी के उस बयान से पल्ला झाड़ लिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश में कैंसर और सिगरेट को लिंक करने वाला कोई सर्वे कराया ही नहीं गया है और क्या पता इससे कैंसर होता है या नहीं?
आज पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पत्रकारों से कहा कि वह डीके गांधी से सहमत नहीं है, क्योंकि विज्ञान गलत नहीं हो सकता।
अहम बात यह है कि सिगरेट और दूसरे तम्बाकू उत्पादों के लिए बने संसदीय पैनल ने 1 अप्रैल से सिगरेट के पैकेट पर आने वाली सचित्र चेतावनी को बड़ा किया जाने के खिलाफ तर्क दिया है कि ऐसा करने से लोगों में खौफ़ पैदा हो जाएगा, साथ ही रोज़गार पर भी असर पड़ेगा। अभी तक यह चेतावनी पैकेट के 40 फीसदी हिस्से में होती थी, जिसे बढ़ाकर 85 फीसदी किया जाना था।
वहीं एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले, डीके गांधी के बयान से हैरान हैं। उनका कहना है कि आरआर पाटिल की मौत तंबाकू के कारण ही हुई थी। अगर कोई सबूत देखना है तो एक बार टाटा मेमोरियल अस्पताल में जाएं, तो स्थिति का अंदाज़ा हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले ही साल तंबाकू कंपनियों को निर्देश जारी किए गए थे कि 1 अप्रैल, 2015 से सिगरेट के डिब्बे के 85 फीसदी भाग पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी दी जाए। हालांकि संसदीय समिति ने इस मामले में और बातचीत की जरूरत बताई है, जिसके कारण तंबाकू कंपनियों के लिए राहत मिलती दिख रही है।
इस मामले में संसदीय समिति के प्रमुख और बीजेपी नेता दिलीप कुमार गांधी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि सिगरेट और कैंसर के जुड़ाव के संबंध में कुछ स्वतंत्र सर्वे जरूर हुए हैं, लेकिन सिगरेट पीने से कैंसर होता है या नहीं, इसका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस मामले में हमने कभी कोई सर्वे नहीं किया।
यह तो सरकार पर निर्भर करता है कि उन्हें संसदीय समिति की सिफारिशों को मानना है या नहीं, लेकिन धूम्रपान के खिलाफ अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार डेडलाइन के अनुसार चेतावनी को लागू नहीं करना अच्छे संकेत नहीं हैं।
पिछले साल नवंबर में जब भारत सरकार ने सिगरेट खरीदने की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 25 साल करने और खुली सिगरेट बेचने पर रोक लगाने की बात कही थी, तो स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े तमाम लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया था। इस योजना को स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संसद में रखा था, लेकिन सरकार इस पर आगे नहीं बढ़ पाई है।
भारत में हर साल करीब 9 लाख लोग तंबाकू जनित बीमारियों के कारण अपनी जान गंवा देते हैं और यह संख्या चीन के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है। जानकारों का मानना है कि इस दशक के अंत तक यह आंकड़ा 15 लाख तक पहुंच जाएगा।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं