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तेजस्वी नहीं तो और कौन, बिहार में कांग्रेस के पास उपाय ही क्या है?

बिहार चुनाव के लिए महागठबंधन में अब सबकुछ ठीक करने की कोशिश तेज हो गई है. कल पटना में महागठबंधन की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस है. इसमें सीएम फेस से लेकर कुछ बड़े ऐलान किए जा सकते हैं.

तेजस्वी नहीं तो और कौन, बिहार में कांग्रेस के पास उपाय ही क्या है?
तेजस्वी यादव, राहुल गांधी
  • महागठबंधन के दल पटना में गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले हैं
  • कहा जा रहा है कि कांग्रेस राज्य में सीएम फेस को लेकर तेजस्वी यादव के नाम को हरी झंडी दे सकती है
  • बिहार में पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर को है जबकि दूसरे चरण की वोटिंग 11 नवंबर को है
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पटना:

बिहार की राजनीति में कांग्रेस की स्थिति लगातार चुनौतीपूर्ण बनी हुई है. एक समय था जब सवर्ण, दलित और मुस्लिम वर्ग कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक माने जाते थे. लेकिन सन 2000 में सोनिया गांधी द्वारा लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले आरजेडी के साथ गठबंधन के बाद कांग्रेस का आधार तेजी से खिसकने लगा. सवर्ण समाज पहले से ही धीरे-धीरे भाजपा की ओर रुख कर चुका था. भागलपुर दंगों के बाद 1990 में मुस्लिम मतदाता भी कांग्रेस से दूरी बना चुके थे जबकि दलित मतदाता अपने-अपने राजनीतिक मंच तैयार करने लगे थे.

लालू के साथ गई कांग्रेस 

सन 2000 के विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस के पास लालू परिवार के अलावा कोई ठोस सहयोगी आधार नहीं बचा. दिल्ली से आए गैर-बिहारी प्रभारी समय-समय पर कांग्रेस को राज्य में अलग पहचान देने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन चुनाव के समय वही पुरानी स्थिति लालू जी के प्रति नतमस्तक होना दोहरा दी जाती है.

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चुनाव के केंद्र में फ्लोटर वोटर 

राज्य के करीब 80% मतदाता पहले ही किसी-न-किसी दल के प्रति झुकाव रख लेते हैं, जबकि लगभग 20% मतदाता फ्लोटिंग यानी अस्थिर माने जाते हैं. यह वर्ग अंतिम समय तक निर्णय नहीं ले पाता, परंतु अंततः उसी को वोट देता है जिसे अपने क्षेत्र का मजबूत उम्मीदवार समझता है. अब चुनावी राजनीति का केंद्र यही फ्लोटिंग मतदाता बन चुका है.

तेजस्वी पर ही दांव खेलना मजबूरी!

लालू प्रसाद और सोनिया गांधी के पुराने संबंध के चलते कांग्रेस अक्सर वोटों के बिखराव से बचने के लिए आरजेडी के साथ समझौते को प्राथमिकता देती है. महागठबंधन के पास मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव से बेहतर चेहरा नहीं माना जा रहा. संगठनात्मक कमजोरी और नेतृत्व की कमी कांग्रेस के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है.

समर्थकों को साधने की चुनौती 

सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में रहते हैं, लेकिन विधानसभा स्तर पर ओवैसी के प्रभाव से मतों का विभाजन देखने को मिला था. अगर कांग्रेस और आरजेडी मजबूत गठबंधन में उतरें, तो यह विभाजन रुक सकता है. कांग्रेस ने इस बार बड़े पैमाने पर सवर्ण उम्मीदवार उतारकर भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति अपनाई है. यदि यह रणनीति सफल होती है, तो महागठबंधन के जीतने के आसार बढ़ सकते हैं.


हालांकि कांग्रेस प्रभारी और तेजस्वी यादव के बीच मतभेदों की खींचतान ने दोनों की छवि कमजोर की है. ऐसे समय में आपसी समझ से एक संयुक्त संदेश देना आवश्यक हो गया है, ताकि समर्थकों में भरोसा बहाल हो सके. तेजस्वी के पास संगठनात्मक कैडर है, जबकि कांग्रेस के पास राहुल गांधी की राष्ट्रीय पहचान और मेहनत का प्रभाव है.

सोनिया ने की कोशिश 

जानकारों का कहना है कि सोनिया गांधी ने दोनों दलों के बीच सुलह का रास्ता आगे बढ़ाया है. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार मानने पर सहमति जताई है, और जल्द ही राहुल गांधी और तेजस्वी यादव संयुक्त रैलियों में मंच साझा करते दिख सकते हैं. अगर ऐसा हुआ, तो महागठबंधन को निश्चित रूप से राजनीतिक लाभ मिलेगा.

हालांकि समय अब सीमित है. दो दिनों बाद छठ महापर्व शुरू हो जाएगा, जब सामाजिक और धार्मिक बंधन राजनीति से ऊपर उठ जाते हैं. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि बिहार की चुनावी सरगर्मी 30 अक्टूबर से 4 नवंबर तक अपने चरम पर रहेगी. राजनीतिक गलियारों में अब सिर्फ एक ही उत्सुकता है इस बार मतदाताओं का रुख किस ओर झुकता है?

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