क्या है चाट की खासियत
देव में चाट की दुकान बेहद ही साधारण है, इस दुकान पर काम करने वाले कुमकुम चौरसिया ने बताया, पिछले 10 साल इस दुकान को चला रहा हूं. पहले इस दुकान पर मेरे पिताजी बैठते थे. उन्होंने बताया इस चाट का नाम 'चपचपवा' मेरे पिताजी ने रखा था, तभी से ये नाम चला आ रहा है.
वहीं जब NDTV के रिपोर्टर रवीश रंजन शुक्ला ने यहां का दौरा किया, उन्होंने बताया, 'बिहार में औरंगाबाद के चपचपवा चाट खाते ही आप पसीने से चपचपा जाएंगे, इसीलिए इसे चपचपवा कहा गया है.'
चौरसिया जी ने बताया, उड़द, चना दाल और बेसन से ये चाट बनती है. इसी के साथ समोसे और आलू टिक्की को मिक्स कर ये चाट तैयार जाती है. ये चाट हमारे यहां काफी प्रसिद्ध है.
चौरसिया ने आगे कहा, 'कोरोनावायरस के कारण, भीड़ कम हो गई है, लेकिन कोरोना से पहले अच्छी भीड़ हुआ करती थी. उम्मीद है जल्द ही सब ठीक होगा. '
उन्होंने कहा, लंबे समय से दुकान बंद थी, पिछले एक महीने पहले ही दुकान खोली है, लेकिन अभी बिक्री कम हो रही है. वहीं जितने भी लोग यहां खाने आते हैं वह बड़े शौक से आते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि क्या चपचपवा चाट का विस्तार करना चाहते हैं ताकि ये और शहरों में भी प्रसिद्ध हो सके. इसपर उन्होंने कहा, 'चाट को तैयार करने में काफी मेहनत लगती है. एक आदमी के भरोसे नहीं हो पाएगा. इसलिए हम खुद से मेहनत करते हैं और खुद से बनाते हैं.'
इस तीखी चाट खा कर अच्छे अच्छे पसीने से चपचपा जाते हैं इसीलिए इसे देव का चपचपवा चाट कहा जाता है. चाट के अलावा देव के सूर्य मंदिर की बड़ी महत्ता है. ये मंदिर इसलिए खास है क्योंकि मंदिर का दरवाजा पूर्व की ओर नहीं बल्कि पश्चिम की ओर है.
इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी - आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएं और जनश्रुतियां इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं. इसी से सटा देव किला है. आजकल वारिस को लेकर अदालत में इसका मामला चल रहा है.