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बिहार चुनाव 2025: तेजस्वी का महत्व और महत्वाकांक्षा

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की 'बिहार अधिकार यात्रा' अभी हाल में ही खत्म हुई है. इस यात्रा के जरिए तेजस्वी क्या हासिल करना चाहते हैं, बता रहे हैं अजीत कुमार झा.

बिहार चुनाव 2025: तेजस्वी का महत्व और महत्वाकांक्षा
  • तेजस्वी यादव राहुल गांधी के साथ वोटर अधिकार यात्रा पूरी करने के बाद बिहार अधिकार यात्रा निकाली.
  • बिहार अधिकार यात्रा जिन 10 जिलों से गुजरी वहां राष्ट्रीय जनता दल की जीती हुई 22 सीटें हैं.
  • 2020 के चुनाव में आरजेडी ने इन जिलों की 66 में से 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था, और 22 सीटें जीती थी.
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नई दिल्ली:

भारत की राजनीति में गठबंधन और राजनीतिक निष्ठाएं रेगिस्तान की रेत की तरह बदलती रहती हैं. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव का हालिया कदम गहरी रणनीति और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को दर्शाता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और महागठबंधन के दूसरे नेताओं के साथ 16 दिन की 'वोटर अधिकार यात्रा' निकालने के तुरंत बाद तेजस्वी पांच दिन की 'बिहार अधिकार यात्रा' पर निकल गए. लेकिन उनका यह फैसला कई सवाल खड़े करता है, क्या यह उनका अहंकार था या चुनावी रणनीति का एक सोचा-समझा कदम?

'बिहार अधिकार यात्रा' का समय

तेजस्वी यादव की बिहार अधिकार यात्रा का समय महत्वपूर्ण है. इसे उनकी अपनी राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है. सत्तारूढ़ एनडीए के खिलाफ महागठबंधन एकजुट है, लेकिन वह नेतृत्व की चुनौतियों से जूझ रहा है. कांग्रेस की ओर से तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न बताना उनकी महत्वाकांक्षाओं के लिए झटका साबित हो सकता है. राजनीति में छवि अक्सर हकीकत बन जाती है, ऐसे में तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार न बनाना उनके अपमान के रूप में देखा जा सकता है. इसीलिए उन्होंने वोटरों के साथ सीधे जुड़कर अपनी प्रासंगिकता और ताकत दिखाने की कोशिश की है.

राजद की मजबूत पकड़

तेजस्वी की 'बिहार अधिकार यात्रा' को केवल उनका अहंकार मानना, यात्रा की गहरी रणनीति को नजरअंदाज करना होगा. उनकी 5 दिन की इस यात्रा का मार्ग में जहानाबाद, नालंदा, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, समस्तीपुर और वैशाली जैसे 10 जिले शामिल थे. यह उनकी एक सोची-समझी रणनीति को दिखाता है. तेजस्वी ने अपनी यात्रा के लिए 22 प्रमुख विधानसभा क्षेत्रों को चुना. ये क्षेत्र कभी उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के पुराने गढ़ हैं. लेकिन इन इलाकों को महागठबंधन की 'वोटर अधिकार यात्रा' में शामिल नहीं किया गया था. इन इलाकों पर ध्यान देकर तेजस्वी उन वोटरों की वफादारी दोबारा जगाना चाहते हैं, जो गठबंधन में उपेक्षित महसूस कर रहे हों.

विधानसभा चुनाव66 में राजद ने कितनी सीटें जीतीपिछले चुनाव की तुलना में आया बदलावराजनीति
201008-2005 और 2010 के चुनाव में मिली हार के बाद राजद कमजोर थी
201522+14महागठबंधन में जदयू का शामिल होने काम कर गया
20202200इस चुनाव में जदयू महागठबंधन छोड़ एनडीए में शामिल हुई. इसके बाद भी राजद ने 22 सीटें जीतीं.

तेजस्वी की चुनावी रणनीति की सफलता आरजेडी के बढ़ते स्ट्राइक रेट में झलकती है. साल 2020 के चुनाव में आरजेडी ने इन 10 जिलों में 38 सीटों पर चुनाव लड़ा और 22 जीत दर्ज की. इस तरह उसका स्ट्राइक रेट 58 फीसदी रहा. यह 2010 के मुकाबले तीन गुना बेहतर था. उस चुनाव में आरजेडी ने 36 सीटों पर लड़कर केवल आठ जीती थीं. उसका स्ट्राइक रेट 22 फीसदी था.

इन 22 प्रमुख सीटों में से नौ पर गौर करें, वैशाली जिले की राघोपुर (तेजस्वी की सीट), महनार और मोहुआ. खगड़िया जिले की अलौली, बेगूसराय की चेरिया-बरियारपुर, मिथिलांचल के सुपौल जिले की लौकहा, मधेपुरा की मधेपुरा और सिंगरौली और समस्तीपुर जिले की समस्तीपुर सीट. ये सीटें उत्तर बिहार के मिथिलांचल और दक्षिण बिहार में गंगा के दक्षिण में फैली हैं. मधेपुरा अपने यादव प्रभाव के लिए मशहूर है. वहां कहावत है, 'रोम पोप का, मधेपुरा गोप का'.

बिहार में आरजेडी की राजनीतिक हैसियत

बिहार की राजनीति में आरजेडी का ऐतिहासिक महत्व बहुत बड़ा है. उसकी पहचान यादव, मुस्लिम और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदायों के साथ जुड़ी है. तेजस्वी की यात्रा केवल वोट जुटाने की कवायद नहीं है, बल्कि यह आरजेडी के सामाजिक न्याय और समानता के मूल सिद्धांतों को फिर से मजबूत करने का प्रयास है. बिहार में, जहां जातिगत समीकरण चुनावी नतीजों में अहम भूमिका निभाते हैं, वोटरों से सीधा संपर्क उनकी आवाज को महत्व देने और उन्हें राजनीतिक चर्चा में शामिल रखने का संदेश देता है.

तेजस्वी के कदमों में तात्कालिकता को साफ-साफ देखा जा सकता है. बिहार, अपने जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य के साथ, राष्ट्रीय रुझानों का एक छोटा रूप है. नवंबर 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ, सभी पार्टियों के लिए दांव बहुत ऊंचा है. तेजस्वी का सक्रिय रुख इस तेजी का जवाब है. महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी मजबूत करके, वह न केवल समर्थन जुटाते हैं, बल्कि खुद को एक जिम्मेदार और जवाबदेह नेता के रूप में स्थापित भी करते हैं. इस तरह के गुण जो बिहार जैसे राज्य में गहरा असर डालते हैं.

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की बिहार अधिकार यात्रा जिन 10 जिलों से होकर गुजरी उनमें विधानसभा की 66 सीटें हैं.

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की बिहार अधिकार यात्रा जिन 10 जिलों से होकर गुजरी उनमें विधानसभा की 66 सीटें हैं.

तेजस्वी की पहचान

तेजस्वी की पांच दिन की 'बिहार अधिकार यात्रा' उनकी दृढ़ता को बयान करती है. राजनीति में गठबंधन जरूरी होने के साथ-साथ बहुत नाजुक भी होते हैं. तेजस्वी का अपना रास्ता बनाने का फैसला उनकी चुनावी समझ को दर्शाता है. यह इस बात का सबूत है कि राजनीति में कई बार अपनी पहचान और नियंत्रण को फिर से हासिल करने के लिए कुछ साहसिक कदम उठाने पड़ते हैं. उनकी 'बिहार अधिकार यात्रा' केवल वोटों की खोज नहीं है, बल्कि यह उनकी पहचान को मजबूत करने, उद्देश्य को नयापन देने और यह ऐलान करने का प्रतीक है कि उनके नेतृत्व में आरजेडी अब भी एक ताकतवर पार्टी है. 

हम यह कह सकते हैं कि तेजस्वी यादव की 'बिहार अधिकार यात्रा' एक बहुआयामी प्रयास है, जो राजनीतिक महत्वाकांक्षा, रणनीतिक जरूरत और गठबंधन ढांचे में अपनी पहचान की खोज की जटिलताओं को समेटे हुए है. यह सिर्फ अपमान के जवाब में नहीं, बल्कि अपने आधार को मजबूत करने और व्यापक राजनीति में अपनी प्रासंगिकता स्थापित करने की एक सोची-समझी कोशिश है. बिहार में यात्रा करते हुए, वे कई लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को मूर्त रूप देते हैं, यह साबित करते हुए कि लोकतंत्र में हर कदम, बयान और रणनीति दोनों होता है.

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