- बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा, प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल नेता दोनों चुनाव हार गए
- कांग्रेस ने कुल छह सीटें जीतीं, जिनमें से तीन सीटें 2020 में भी उसकी थीं और तीन नई सीटें शामिल हैं
- किशनगंज में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदलकर मोहम्मद कमरुल होदा को मैदान में उतारा, जो जीत हासिल करने में सफल रहे
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. ये नतीजे बिहार के विपक्ष के लिए बहुल निराशाजनक रहे हैं. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में 114 सीटें जीतने वाला महागठबंधन इस चुनाव में 50 सीटें भी नहीं जीत पाया है. देश की सबसे पुराने पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे निराशाजनक रहा. हालत यह रही कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान भी चुनाव हार गए. चुनाव आयोग के मुताबिक कांग्रेस ने छह सीटें जीती हैं. ये सीटें हैं फारबिसगंज, किशनगंज, मनिहारी, वाल्मीकिनगर, चनपटिया और अररिया.
कांग्रेस ने इस चुनाव में जो छह सीटें जीती हैं, उनमें से तीन सीटें उसने 2020 में भी जीती थीं. ये सीटें हैं-अररिया,मनिहारी और किशनगंज. इस बार कांग्रेस ने वाल्मीकिनगर, चनपटिया और फारबिसगंज विधानसभा सीट को अपने खाते में जोड़ा है.
किशनगंज में उम्मीदवार बदलने का फायदा
किशनगंज में उम्मीदवार बदलने के बाद भी कांग्रेस वहां जीतने में कामयाब रही है. साल 2020 के चुनाव में किशनगंज में इजहारूल हुसैन ने जीत दर्ज की थी.लेकिन इस बार कांग्रेस ने किशनगंज में अपने विधायक का ही टिकट काट दिया. कांग्रेस ने वहां चुनाव से डेढ महीने पहले पार्टी में आए मोहम्मद कमरुल होदा को अपना उम्मीदवार बना दिया.होदा भी पूर्व विधायक हैं. लेकिन वो कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव मैदान में उतरे. होदा जेडीयू,एनसीपी, एआईएमआईएम और आरजेडी से होते हुए कांग्रेस में आए हैं. उन्होंने कांग्रेस के भरोसे पर खरा उतरते हुए किशनगंज सीट उसकी झोली में डाल दी है.
कांग्रेस ने इस बार जो दो पुरानी सीटें जीती हैं, उन पर उसने अपने पुराने विधायकों पर ही भरोसा जताया था. उसने अररिया में अब्दुर रहमान और मनिहारी में मनोहर प्रसाद सिंह को टिकट दिया था. अररिया में अब्दुर रहमान ने जेडीयू की शगुफ्ता अजीम को 12 हजार से अधिक वोटों से मात दे दी है. रहमान को 91 हजार 529 और अजीम को 78 हजार 788 वोट मिले. वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित मनिहारी सीट पर उसके विधायक मनोहर प्रसाद सिंह ने पार्टी के भरोसे को बरकरार रखा है. मनोहर सिंह ने जेडीयू के शंभू कुमार सुमन को 15 हजार 168 वोटों के अंतर से हराया है. सिंह को एक लाख 14 हजार 754 और सुमन को 99 हजार 586 वोट मिले हैं. यह सीट पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस और जेडीयू बारी-बारी से जीतते रहे हैं. मनोहर प्रसाद सिंह 2010 में जदयू से जीते थे. बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इसके बाद वो 2020 में कांग्रेस के टिकट जीते थे.
बीजेपी और जेडीयू से छीनी तीन सीटें
वहीं कांग्रेस ने जो तीन नई सीटें जीती हैं, उसने ये सीटें जेडीयू और बीजेपी से छीनी हैं. इन तीन सीटों में से 2020 के चुनाव में वाल्मीकिनगर में जेडीयू और चनपटिया-फारबिसगंज पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.
कांग्रेस ने फारबिसगंज की सीट बहुत कड़े मुकाबले में जीती है. वहां से कांग्रेस के मनोज विश्वास ने बीजेपी के विद्यासागर केसरी को 221 वोटों के मामूली अंतर से हराया है. फारबिसगंज कांग्रेस के प्रभाव वाली सीट रही है. इस सीट पर अबतक हुए 17 चुनावों में से आठ बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. बीजेपी के हिस्से में यह सीट सात बार आई है. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ने यह सीट करीब 40 साल बाद अपने पाले में की है. इससे पहले 1985 में कांग्रेस के सरयू मिश्र इस सीट से जीते थे. उन्होंने इस सीट पर 1967,1969, 1972, 1977, 1980,1985 तक लगातार छह बार जीते थे.
वाल्मीकिनगर और चनपटियां में रंग लाई कांग्रेस की कोशिशें
कांग्रेस ने पश्चिम चंपारण की वाल्मीकिनगर सीट कांग्रेस ने जेडीयू से छीन ली है.वहां कांग्रेस के सुरेन्द्र प्रसाद कुशवाहा ने जेडीयू के धीरेन्द्र प्रताप सिंह को 1675 वोट बहुत मामूली अंतर से हराया है. धीरेन्द्र प्रताप सिंह यह सीट पिछले दो बार से जीत रहे थे. वो 2015 में निर्दलीय जीते थे और और 2020 में जेडीयू के टिकट पर.खास बात यह है कि 2020 में इस सीट पर कांग्रेस के राजेश सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे. सुरेन्द्र कुशवाहा को यहां अपनी जाति के साथ-साथ महागठबंधन के कोर वोटरों का भी समर्थन मिला है. यहां कांग्रेस के लिए प्रचार करने प्रियंका गांधी और जेडीयू के लिए नीतीश कुमार ने सभा की थी. यहां पर सुरेन्द्र कुशवाहा को एक लाख सात हजार 30 वोट और जेडीयू के धीरेंद्र को एक लाख छह हजार 55 वोट मिले. जीत हार के इस अंतर से आप समझ सकते हैं कि वाल्मीकिनगर का मुकाबला कितने कांटे का था.
कांग्रेस ने पश्चिम चंपारण की एक और सीट चनपटिया भी अपने खाते में की है. इस सीट पर सबकी निगाहें लगी हुई थीं. इसकी वजह कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवार नहीं बल्कि जन सुराज के उम्मीदवार त्रिपुरारी कुमार तिवारी उर्फ मनीष कश्यप थे. यूट्यूबर मनीष कश्यप का यह दूसरा चुनाव था. लेकिन उन्हें तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा है. इस वजह से यहां का मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था. लेकिन जीत कांग्रेस के हिस्से में आई. कांग्रेस के अभिषेक रंजन ने बीजेपी के उमाकांत सिंह को 602 वोटों के छोटे अंतर से मात दी. मनीष कश्यप को एक बार फिर तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा.
चनपटिया में कांग्रेस पांच दशक नसीब हुई जीत
चनपटिया बिहार की वह सीट है, जिसे बीजेपी पिछले छह चुनाव से जीत रही थी. यह एक ब्राह्मण-भूमिहार बहुल सीट है. वहां से सवर्ण उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं. कांग्रेस ने यह सीट अंतिम बार 1972 में जीती थी. उस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उमेश प्रसाद वर्मा ने जीत दर्ज की थी. इस तरह से कांग्रेस ने यह सीट 53 साल बाद अपने नाम की है. कांग्रेस ने इस सीट पर पिछले चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन किया था. उस चुनाव में बीजेपी के उमाकांत सिंह ने कांग्रेस के अभिषेक रंजन को 13 हजार 469 वोटों से हराया था. उस चुनाव में मनीष कश्यप को तीसरा स्थान और नौ हजार 239 वोट मिले थे. वो निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे. लेकिन इस बार यह सीट कांग्रेस ने जीत ली है.
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