बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान अपने पत्ते धीरे-धीरे खोलते नजर आ रहे हैं. उनकी पार्टी उनसे बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ने की मांग कर रही है. एनडीटीवी से हुई बातचीत में उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने पर न ना कहा और ना हां. उन्होंने कहा कि पार्टी कार्यकर्ता चाहते हैं कि मैं मुख्यमंत्री बनूं, मैं उनकी भावना का सम्मान करता हूं. उन्होंने कहा कि उनके चुनाव लड़ने पर उनकी पार्टी का संसदीय दल फैसला करेगा. इस बातचीत में उन्होंने इशारों ही इशारों में एनडीए गठबंधन में अपने लिए सीटों की मांग कर दी. इससे पहले उनकी पार्टी के एक सांसद ने कहा था कि लोजपा एनडीए में रहते हुए अपने स्वतंत्र पहचान के साथ चुनाव लड़ेगी. राजनीतिक विश्लेषक उनके दावों को सीट बंटवारे से पहले दबाव की राजनीति के रूप में देख रहे हैं.
विधानसभा चुनाव में लोजपा की हिस्सेदारी
एनडीटीवी से हुई बातचीत में चिराग ने एक बात पर जोर देकर कहा कि आज की तारीख में उनके पास एक भी विधायक नहीं है. इस वजह से वो अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी पार्टी को और मजबूत करना है. चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर जारी अटकलों को उनके इस बयान से बल मिलता है. उन्होंने 2020 का चुनाव एनडीए से अलग होकर लड़ा था. लेकिन वो केवल एक सीट ही जीत पाए थे. लेकिन उनका वोट बैंक उनके साथ बना हुआ नजर आया था. उनकी पार्टी को 5.8 फीसदी वोट मिले थे. इससे पहले 2015 का चुनाव उन्होंने एनडीए में रहते हुए ही 42 सीटों पर लड़ा था. उस चुनाव में लोजपा दो सीटें जीती थीं और पांच फीसदी वोट हासिल किए थे.साल 2015 में नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं थी.वह आरजेडी वाले महागठबंधन में शामिल थी.

चिराग पासवान खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हैं.
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही लोजपा ने सीटों को लेकर अपनी दावेदारी शुरू कर दी थी. पहले उसने कहा कि उसे बिहार के हर जिले में कम से कम एक सीट चुनाव लड़ने के लिए चाहिए. इस हिसाब से उनका दावा 38 सीटों पर बनता है.एनडीटीवी से उन्होंने यह भी कहा है कि अगर 2020 के चुनाव में वो एनडीए में होते तो आरजेडी 25 सीट भी नहीं जीत पाती. इस तरह अपनी कमी से हुए एनडीए को नुकसान पर जोर देकर अपनी अहमियत जताई. हालांकि सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए ने अभी कोई फार्मूला तय नहीं किया है.इस बीच लोजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी शुरू कर दी है.चिराग पासवान ने पिछले महीने पत्रकारों से कहा था कि उनका ध्यान 'बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट' पर लगा हुआ है. उन्होंने कहा था कि उनका बिहार उन्हें पुकार रहा है. उन्होंने यह भी कहा था कि अपने पिता रामविलास पासवान के विपरीत उनकी रुचि राष्ट्रीय राजनीति की जगह बिहार की राजनीति में है. उनका यह बयान भी उनके मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा का उद्गार था.
बिहार के दलित और मुस्लिम वोट बैंक पर नजर

लोजपा सांसद अरुण भारती ने कहा था कि इस बार उनकी पार्टी अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी.
चिराग पासवान के इस बयान से पहले उनकी पार्टी के सांसद और उनके बहनोई अरुण भारती ने पिछले हफ्ते एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि गठबंधन में सहयोग,पहचान में स्वतंत्र. उन्होंने एक ट्वीट में कहा था कि लोजपा आगामी चुनाव में अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ उतरेगी.उन्होंने कहा था कि हम बहुजन समाज की आकांक्षाओं के प्रतीक हैं और इस प्रतीक को किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता.लोजपा नेता का यह बयान पार्टी की बढ़ती महत्वाकांक्षा को लेकर था. दसअसल बिहार के जाति सर्वेक्षण में पता चला कि राज्य में दलितों की आबादी 19 फीसदी और आदिवासियों की आबादी करीब दो फीसदी है. अब लोजपा की नजर इस 21 फीसदी वोट बैंक पर है. वह पासवान (दुसाध) के अलावा पूरे दलित समाज का वोट बटोरना चाहती है. क्योंकि अभी बिहार में चिराग के कद का कोई दलित नेता नहीं है. इसलिए पहली बार लोजपा आरवी का कोई नेता बहुजन शब्द पर जोर देता हुआ नजर आया.
चिराग अब बिहार में अपना आधार बढ़ाना चाहते हैं. इसलिए वो मुसमानों के मुद्दे को भी हवा दे रहे हैं. एनडीटीवी से बातचीत में चिराग ने इसका जिक्र भी किया है. उन्होंने कहा कि कैबिनेट की बैठक में उन्होंने वक्फ बिल को संयुक्त संसदीय जांच समिति (जेपीसी) को भेजने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि चाहे बात हिंदू-मुस्लिम विवाद की हो या फिर लेटरल एंट्री की या जाति आधारित जनगणना की मैंने अपनी स्पष्ट राय रखी है.मैं किसी का प्रॉक्सी बनकर काम नहीं करता हूं.
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