बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) के पहले चरण के लिए बुधवार (01 अक्टूबर) से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई. लेकिन चाहे एनडीए हो या विपक्षी महागठबंधन दोनों तरफ अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं हो सका है और न ही स्थिति साफ़ हो सकी है कि कौन सी पार्टी किस सीट से चुनाव लड़ेगी? हालांकि, माना जा रहा हैं कि शुक्रवार तक यह स्थिति साफ हो जाएगी कि कौन सा दल कितनी सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगा?
जहाँ तक एनडीए का सवाल है, वहाँ नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही गठबंधन चुनाव मैदान में उतरेगा, इसपर भाजपा में किसी को कोई कन्फ़्यूज़न नहीं है. बुधवार को दिल्ली में भाजपा का एक अहम बैठक हुई जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह , पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, बिहार प्रभारी देवेंद्र फडनवीस, भूपेन्द्र यादव, उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी समेत सारे वरिष्ठ नेता शामिल हुए. उसके बाद मीडिया से भूपेन्द्र यादव ने कहा कि कोई भ्रम में ना रहें. बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो नीतीश कुमार ही मुख्य मंत्री बनेंगे.
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उनके निशाने पर लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान थे जो इस मुद्दे पर कई बार बयान दे चुके हैं कि वो भाजपा का मुख्य मंत्री चाहते हैं. दरअसल, इस बार नीतीश कुमार के एनडीए में रहने के कारण चिराग को सीटों की संख्या जो ऑफ़र की गयी है वो उनके अनुमान 40 से आधी हैं, ऐसे में चिराग़ आज से कल तक एनडीए में रहने या उससे अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला कर लेंगे.
जहाँ तक महगठबंधन की बात है, यहाँ भी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच पेंच फँसा हुआ है. कांग्रेस ना केवल सीटों की अच्छी संख्या बल्कि मनमुताबिक सीट भी चाहती है. कांग्रेस का तर्क है कि मुख्य मंत्री अगर तेजस्वी यादव को बनना है तो उन्हें बड़ा दिल दिखाना होगा. कांग्रेस पार्टी के नेता इस बात को हर व्यक्ति के सामने रखते हैं कि तेजस्वी यादव के रुख के कारण पहले जीतन राम माँझी गए फिर उपेन्द्र कुशवाहा. कांग्रेस का आरोप है कि सहयोगियों के जाने के कारण महागठबंधन कमजोर हुआ है.
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वहीं राष्ट्रीय जनता दल का कहना है कि कांग्रेस में जितने नेता हैं उन सब ने गांधी परिवार के सामने अपना प्रदर्शन और नम्बर बढ़ाने के चक्कर में सीटों के तालमेल को अनायास विवाद में डाल दिया है. इस बीच सीपीआई (एमएल) ने भी तेजस्वी के रुख से नाराज़ होकर 30 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का एलान कर दिया है.
निश्चित रूप से तेजस्वी यादव के ऊपर ना केवल सहयोगियों को एकजुट रखने का ज़िम्मा हैं बल्कि अगर खटास कम नहीं हुई तो उनका नीतीश कुमार को चुनौती देने का प्लान इस चुनाव में धरा का धरा रह जाएगा.
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