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This Article is From Oct 17, 2020

बिहार : रोहतास जिले में नल जल योजना की हकीकत, महादलित पोखर का पानी पीने को मजूबर

Bihar Election 2020: आर्सेनिक और फ्लोराइड होने के बावजूद मौऊनी गांव की महादलित बस्ती नहाने-धोने से लेकर पीने के पानी के लिए तालाब पर ही निर्भर, दूसरे टोले से पानी नहीं ले सकते

बिहार : रोहतास जिले में नल जल योजना की हकीकत, महादलित पोखर का पानी पीने को मजूबर
रोहतास जिले में मौऊनी गांव की महादलित बस्ती के लोग पोखर के पानी से काम चलाने को मजबूर हैं.
रोहतास:

Bihar Election 2020: रोहतास (Rohtas) जिले में सासाराम के शिवसागर प्रखंड के पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड होने के बावजूद मौऊनी गांव की महादलित बस्ती नहाने-धोने से लेकर पीने के पानी के लिए तालाब पर ही निर्भर है. बस्ती में दो साल पहले सरकारी पाइप और नल दोनों लगा लेकिन पानी नहीं पहुंचा. मौऊनी गांव के महादलित दूसरे टोले से पानी नहीं ले सकते. महादलित बस्ती के सोहन बताते हैं कि ''गांव के दूसरे टोले या बीघे से पानी लेने जाते हैं तो मारपीट करते हैं. चापाकल के हत्था उखाड़कर रख लेते हैं. इस कारण से हम लोग पोखर का पानी उबालकर पीते रहे हैं.''

खेलते-खेलते सदन पहुंच गए छेदी पासवान
चार बार सांसद, चार बार विधायक रहे छेदी पासवान को दिल्ली से आनन फानन में बुलाया गया. छेदी पासवान बीजेपी के सांसद हैं और भतीजे चंद्रशेखर पासवान LJP से JDU के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. इलाके में चर्चा है कि JDU के ललन पासवान से उनकी नहीं बनती है. लेकिन वे बताते हैं कि ललन पासवान उनका ही बच्चा है. उन्होंने चुनाव पहली बार लड़वाया था. भतीजे के बारे कहते हैं कि ''वह अलग रहता है. अगर कोई बोल दे कि मैं उसकी मदद कर रहा हूं तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा.'' छेदी पासवान अस्सी के दशक के नामी एथलीट और फुटबाल प्लेयर रह चुके हैं. खेल में नाम कमाने के कारण पहली बार जनता दल से टिकट मिला. चौधरी देवीलाल ने लोकसभा चुनाव में टिकट दिया. विनम्र स्वभाव के छेदी पासवान बातचीत के दौरान कहते हैं कि ''मेरा बेटा भी राजनीति में सक्रिय है, लेकिन उसे टिकट इसलिए नहीं मिलेगा क्योंकि उस पर परिवारवाद का ठप्पा है.'' 

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धान का कटोरा रोहतास जिला
रोहतास जिले को बिहार का धान का कटोरा भी कहते हैं. कभी यहां सैकड़ों चावल मिल हुआ करती थीं लेकिन अब ज्यादातर बंद पड़ी हैं. यहां का खास चावल सोनाचूर है. चावल की खासियत है कि यह खाने में नरम होता है. सोनाचूर चावल को ज्यादातर किसान अपने खाने के लिए बोते हैं क्योंकि इसका उत्पादन कम होता है. पूर्व मुखिया अलख निरंजन बताते हैं कि आमतौर पर बाजार में इस चावल की कीमत 100 से 120 रुपये किलो होती है लेकिन सीधे किसान इसे 60 से 70 रुपये में बेचते हैं.

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