Nal Jal Yojana
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बिहार: आरोपों पर डिप्टी CM तारकिशोर प्रसाद की सफाई, 'हर घर नल का जल योजना की सफलता से बौखला गया विपक्ष'
- Thursday September 23, 2021
- Edited by: धीरज पाल
डिप्टी सीएम ने सफाई देते हुए कहा कि अंग्रेजी अखबार में छपी खबर में जिन दो कंपनियों के नाम का जिक्र किया गया है. उन कंपनियों में मेरे परिवार या ससुराल के कोई सदस्य शामिल नहीं है.
- ndtv.in
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बीच चुनाव आयकर विभाग के छापे से कैसे गरमायी बिहार की राजनीति?
- Saturday October 31, 2020
- Reported by: मनीष कुमार, Edited by: प्रमोद कुमार प्रवीण
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि इस घोटाले का स्वरूप कई गुना अधिक है और उनकी सरकार आयी तो विस्तार से इसकी जाँच करायेगी. इसके साथ ही उनका कहना है कि इस पूरे योजना के क्रियान्वयन में बड़ा घोटाला हुआ है.
- ndtv.in
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'नीतीश राज में हुए सिर्फ घोटाले, सरकार बनी तो जांच करवाकर भेजूंगा जेल', बोले चिराग पासवान
- Thursday October 29, 2020
- Edited by: प्रमोद कुमार प्रवीण
चिराग ने अपने बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट के संकल्प को भी दोहराया और लोगों से अगले 20 दिन इसके लिए जुटने की अपील की.
- ndtv.in
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बिहार : रोहतास जिले में नल जल योजना की हकीकत, महादलित पोखर का पानी पीने को मजूबर
- Thursday October 29, 2020
- Reported by: रवीश रंजन शुक्ला, Edited by: सूर्यकांत पाठक
Bihar Election 2020: रोहतास (Rohtas) जिले में सासाराम के शिवसागर प्रखंड के पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड होने के बावजूद मौऊनी गांव की महादलित बस्ती नहाने-धोने से लेकर पीने के पानी के लिए तालाब पर ही निर्भर है. बस्ती में दो साल पहले सरकारी पाइप और नल दोनों लगा लेकिन पानी नहीं पहुंचा. मौऊनी गांव के महादलित दूसरे टोले से पानी नहीं ले सकते. महादलित बस्ती के सोहन बताते हैं कि ''गांव के दूसरे टोले या बीघे से पानी लेने जाते हैं तो मारपीट करते हैं. चापाकल के हत्था उखाड़कर रख लेते हैं. इस कारण से हम लोग पोखर का पानी उबालकर पीते रहे हैं.''
- ndtv.in
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मध्यप्रदेश में 15 साल में 35 हजार करोड़ खर्च, पानी मिला सिर्फ छह फीसदी ग्रामीणों को!
- Friday June 21, 2019
- Reported by: अनुराग द्वारी, Edited by: सूर्यकांत पाठक
मध्यप्रदेश इन दिनों भीषण जल संकट की चपेट में है. शहर और गांवों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है. राज्य के साढ़े तीन सौ से ज्यादा नगरीय निकाय सुबह शाम पानी नहीं दे पा रहे. कुछ जगहों पर तीन तो कहीं दो दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा है. यही हाल गांवों में है, जहां पानी लाने के लिए कुछ जगहों पर प्रदेश की सीमा पार करनी पड़ती है. तो कहीं सूखे कुंए में उतरकर पानी लाना पड़ता है. जानते हैं क्यों...क्योंकि सरकारी तिजोरी से पिछले 15 सालों में लगभग 35,000 करोड़ रुपये खर्च हुए लेकिन पानी मिला सिर्फ छह फीसदी ग्रामीण आबादी को ही.
- ndtv.in
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बिहार: आरोपों पर डिप्टी CM तारकिशोर प्रसाद की सफाई, 'हर घर नल का जल योजना की सफलता से बौखला गया विपक्ष'
- Thursday September 23, 2021
- Edited by: धीरज पाल
डिप्टी सीएम ने सफाई देते हुए कहा कि अंग्रेजी अखबार में छपी खबर में जिन दो कंपनियों के नाम का जिक्र किया गया है. उन कंपनियों में मेरे परिवार या ससुराल के कोई सदस्य शामिल नहीं है.
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बीच चुनाव आयकर विभाग के छापे से कैसे गरमायी बिहार की राजनीति?
- Saturday October 31, 2020
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- Thursday October 29, 2020
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बिहार : रोहतास जिले में नल जल योजना की हकीकत, महादलित पोखर का पानी पीने को मजूबर
- Thursday October 29, 2020
- Reported by: रवीश रंजन शुक्ला, Edited by: सूर्यकांत पाठक
Bihar Election 2020: रोहतास (Rohtas) जिले में सासाराम के शिवसागर प्रखंड के पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड होने के बावजूद मौऊनी गांव की महादलित बस्ती नहाने-धोने से लेकर पीने के पानी के लिए तालाब पर ही निर्भर है. बस्ती में दो साल पहले सरकारी पाइप और नल दोनों लगा लेकिन पानी नहीं पहुंचा. मौऊनी गांव के महादलित दूसरे टोले से पानी नहीं ले सकते. महादलित बस्ती के सोहन बताते हैं कि ''गांव के दूसरे टोले या बीघे से पानी लेने जाते हैं तो मारपीट करते हैं. चापाकल के हत्था उखाड़कर रख लेते हैं. इस कारण से हम लोग पोखर का पानी उबालकर पीते रहे हैं.''
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मध्यप्रदेश में 15 साल में 35 हजार करोड़ खर्च, पानी मिला सिर्फ छह फीसदी ग्रामीणों को!
- Friday June 21, 2019
- Reported by: अनुराग द्वारी, Edited by: सूर्यकांत पाठक
मध्यप्रदेश इन दिनों भीषण जल संकट की चपेट में है. शहर और गांवों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है. राज्य के साढ़े तीन सौ से ज्यादा नगरीय निकाय सुबह शाम पानी नहीं दे पा रहे. कुछ जगहों पर तीन तो कहीं दो दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा है. यही हाल गांवों में है, जहां पानी लाने के लिए कुछ जगहों पर प्रदेश की सीमा पार करनी पड़ती है. तो कहीं सूखे कुंए में उतरकर पानी लाना पड़ता है. जानते हैं क्यों...क्योंकि सरकारी तिजोरी से पिछले 15 सालों में लगभग 35,000 करोड़ रुपये खर्च हुए लेकिन पानी मिला सिर्फ छह फीसदी ग्रामीण आबादी को ही.
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