विज्ञापन
This Article is From Sep 12, 2018

भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश: जारी रहेगी वाम विचारकों की नजरबंदी, अब 17 सितंबर को अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नज़रबंद रखे गए पांच वाम विचारकों की नज़रबंदी की अवधि 17 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी है.

भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश: जारी रहेगी वाम विचारकों की नजरबंदी, अब 17 सितंबर को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नज़रबंद रखे गए पांच वाम विचारकों की नज़रबंदी की अवधि 17 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी है. बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कोरेगांव-भीमा गांव में हिंसा की घटना के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं को घरों में ही नजरबंद रखने की अवधि 12 सितंबर तक के लिये बढ़ाई थी. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ को सूचित किया गया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को बहस करनी थी परंतु वह एक अन्य मामले में व्यस्त होने की वजह से उपलब्ध नहीं है. पीठ ने इसके बाद पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की याचिका पर सुनवाई 17 सितंबर के लिये स्थगित कर दी.

रिपोर्ट में खुलासा: पहले से योजना बनाकर भीमा-कोरेगांव में की गई थी हिंसा, संभाजी व मिलिंद मुख्य साजिशकर्ता

इससे पहले, सिंघवी पीठ के समक्ष पेश हुये और उन्होंने थापर की याचिका पर दोपहर 12 बजे के बाद सुनवाई करने का अनुरोध किया क्योंकि वह एक अन्य मामले में पेश हो रहे थे. न्यायालय इस मामले में वरवरा राव, अरूण फरेरा, वरनान गोन्साल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को ऐलगार परिष्द कके बाद कोरेगांव-भीमा गांव में हुयी हिंसा के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर इन सभी को 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था. शीर्ष अदालत ने 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक अपने घरों में ही नजरबंद करने का आदेश देते हुये कहा था , ‘लोकतंत्र में असहमति सेफ्टी वाल्व है.’ इसके बाद इस नजरबंदी की अवधि आज तक के लिये बढ़ा दी गयी थी.

भीमा कोरेगांव मामला: महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- यह अर्जी सुनवाई लायक नहीं, क्योंकि...

इससे पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने इस मामले में पुणे के सहायक पुलिस आयुक्त के बयानों को बहुत गंभीरता से लिया और कहा कि वह न्यायालय पर आक्षेप लगा रहे हैं. पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह न्यायालय में लंबित मामलों के बारे में अपने पुलिस अधिकारियों को अधिक जिम्मेदार बनायें. 

भीमा कोरेगांव मामला: सामने आया यलगार परिषद के भाषण का वीडियो, माओवादी होने के दावों पर सवालिया निशान

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने कहा, ‘आप अपने पुलिस अधिकारियों को अधिक जिम्मेदार बनने के लिये कहें. मामला हमारे पास है और हम पुलिस अधिकारियों से यह नहीं सुनना चाहते कि उच्चतम न्यायालय गलत है.’इसके साथ ही पीठ ने इतिहासकार रोमिला थापर और दूसरे याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे न्यायालय को संतुष्ट करें कि क्या आपराधिक मामले में कोई तीसरा पक्ष हस्तक्षेप कर सकता है.

मोदी सरकार की साजिश-जो खिलाफ बोले, उसे देशद्रोही और हिंदू विरोधी बता दोः शशि थरूर

महाराष्ट्र सरकार ने पिछली बार सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इन पाचं कार्यकर्ताओं को उनके असहमति वाले दृष्टिकोण की वजह से नहीं बल्कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) से उनके संपर्को के बारे में ठोस साक्ष्य के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. 

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित एलगार परिषद की बैठक के बाद पुणे के कोरेगांव-भीमा गांव में हुयी हिंसा की घटना की जांच के सिलसिले में कई जगह छापे मारने के बाद तेलुगू कवि वरवरा राव, वेरनान गोन्साल्विज, अरूण फरेरा, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था.

VIDEO: भीमा कोरेगांव हिंसा : मिलिंद एकबोटे ने हलफनामा दाखिल किया

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com