भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी वरवर राव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है.सुप्रीम कोर्ट ने नियमित जमानत दे दी है. NIA के कड़े विरोध के बावजूद कोर्ट ने जमानत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो 82 साल के हैं और ढाई साल तक हिरासत में रहे हैं. वरवर को बीमारियां भी हैं, जो काफी वक्त से ठीक नहीं हैं. ऐसे में वे मेडिकल जमानत के हकदार हैं. इस मामले में चार्जशीट दाखिल हुई है, लेकिन कई आरोपी पकड़े नहीं गए हैं. कई आरोपियों की आरोपमुक्त करने की अर्जियां लंबित हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए शर्त लगाई कि वह ग्रेटर मुंबई के इलाके को नहीं छोड़ेंगे. वो अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेंगे और किसी भी आरोपी के संपर्क में नहीं रहेंगे. जांच या गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगे. वह अपनी पसंद की चिकित्सा कराने के हकदार होंगे. सुप्रीम कोर्ट तेलुगू कवि और भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद के आरोपी पी वरवर राव द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट ने स्थायी मेडिकल जमानत देने से इनकार कर दिया था.
13 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें तेलंगाना में अपने घर पर रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, लेकिन मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्थायी जमानत की अवधि तीन महीने बढ़ा दी थी और ट्रायल में तेजी लाने के निर्देश जारी किए थे. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अपराध की गंभीरता और गंभीरता तब तक बनी रहेगी, जब तक कि आरोपी को उसके द्वारा किए गए कथित अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता. वरवर राव वर्तमान में मेडिकल आधार पर जमानत पर हैं. उन्होंने वर्तमान विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से प्रस्तुत किया है कि अब आगे की कैद उनके लिए "मृत्यु की घंटी बजाएगी" क्योंकि बढ़ती उम्र और बिगड़ता स्वास्थ्य घातक है.
याचिका में उल्लेख किया गया है कि एक अन्य आरोपी, 83 वर्षीय आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में मामले में हिरासत में रहते हुए निधन हो गया था. याचिकाकर्ता ने कहा है कि फरवरी 2021 में जमानत मिलने के बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई और उसे गर्भनाल हर्निया हो गया, जिसके लिए उसे सर्जरी करानी पड़ी. इसके अलावा उन्हें अपनी दोनों आंखों में मोतियाबिंद के लिए भी ऑपरेशन करने की आवश्यकता है, जो उन्होंने नहीं किया है. याचिका में तर्क दिया गया है कि यह एक स्थापित कानून है और सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर जमानत पर वैधानिक रोक के बावजूद यूएपीए मामलों में जमानत दी जा सकती है.
1 फरवरी, 2021 को हाईकोर्ट ने 82 वर्षीय को छह महीने के लिए जमानत दे दी थी और कड़ी शर्तें लगाई थीं, उनमें से एक यह था कि राव को मुंबई में विशेष NIA कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहिए. पीठ ने पाया था कि वृद्ध का निरंतर कारावास में रखना उनके स्वास्थ्य के प्रति असंगत है. सुनवाई के दौरान जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि उन्होंने छह महीने की चिकित्सा जमानत के दौरान स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया. हम शर्त लगाएंगे कि अगर वह जमानत की शर्तों का दुरुपयोग करते हैं तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाएगी. वो 82 साल के हैं और बीमार भी हैं. वो पहले ही मेडिकल आधार पर डेढ़ साल से बाहर हैं जबकि शुरुआत में उन्हें 6 महीने की जमानत दी गई थी. इस आदेश का NIA ने कभी विरोध नहीं किया. हो सकता है कि एजेंसी उस पर लगातार निगरानी रख रही हो. आपके पास इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि उसने अपनी जमानत अवधि के दौरान अब तक किसी भी प्रकार का मेल भेजा है. आपने उसे यह भी नहीं बताया कि ऐसी आशंका है कि वह अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहा है.
वरवर के वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि वो 82 साल के हैं और बीमार भी हैं. अभी केस में आरोप भी तय नहीं हुए हैं. ट्रायल पूरा होने में दस साल लगेंगे. वो चाहते है कि स्टेन स्वामी की तरह वो जेल में ही मर जाएं. NIA के लिए पेश ASG एसवी राजू ने नियमित जमानत देने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वे उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने नक्सलियों की विध्वंसक गतिविधियों को लाभ दिया है, जिससे भारी तबाही हुई है और पुलिस और सुरक्षा कर्मियों के बीच कई मौतें हुई हैं. वह एक साधारण अपराधी नहीं है और भारत सरकार के खिलाफ आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं. उनकी रिहाई उचित नहीं है. उन पर खतरनाक गतिविधियों, विध्वंसक गतिविधियों के लिए मामला दर्ज किया गया है, ये देश के लिए खतरनाक है.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने वरवर राव को नियमित जमानत देने का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि आरोपी के कृत्य का भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता पर सीधा प्रभाव पड़ता है. राव ने नक्सलियों की विध्वंसक गतिविधियों को लाभ दिया है, जिससे भारी तबाही हुई है. पुलिस और सुरक्षा कर्मियों की मौतें हुई हैं. हलफनामे में NIA ने कहा कि आरोपी संवैधानिक आधार पर राहत पाने का हकदार नहीं है, क्योंकि उसके कृत्य "राज्य और समाज के हित के खिलाफ" हैं और उसका अपराध गंभीर है. सबूत बताते हैं कि राव और उनके सह-आरोपी "लगातार माओवादियों के एजेंडे को पूरा करने की प्रक्रिया में थे. वह एक बड़ी साजिश का हिस्सा था. राव पहले ही चिकित्सा आधार पर महीनों की जमानत का आनंद ले चुके हैं.
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