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पछता तो बहुत रहे होंगे केजरीवाल, बस ये एक काम कर लेते तो बच जाती सरकार 

Arvind Kejriwal And Delhi Result: अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की हार ने कई सवाल खड़े किए हैं. चुनाव आयोग के आंकड़े अब इन सवालों के जवाब दे रहे हैं...

पछता तो बहुत रहे होंगे केजरीवाल, बस ये एक काम कर लेते तो बच जाती सरकार 

Arvind Kejriwal And Delhi Result: दिल्ली चुनाव का रिजल्ट आ चुका है. बीजेपी जीत चुकी है और आम आदमी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. स्कोर की बात करें तो 70 सीटों में बीजेपी ने 48 सीटें जीतीं और आप 22 पर सिमट गई. मैन ऑफ द मैच पीएम नरेंद्र मोदी रहे हैं. उन्हीं के चेहरे और गारंटी ने दिल्ली में बीजेपी को 27 साल बाद सत्ता दिला दी है. बीजेपी में फिलहाल सीएम फेस को लेकर मंथन चल रहा है. उम्मीद जताई जा रही है कि पीएम मोदी के फ्रांस-अमेरिका दौरे के बाद कोई एक नाम फाइनल हो जाएगा. वहीं अरविंद केजरीवाल ने रविवार को अपने विधायकों के साथ बैठक की और आगे की योजना की प्लानिंग की. बैठक से निकलकर आप विधायकों ने जो बताया, उसके मुताबिक आप सरकार बनते ही बीजेपी को घेरने का एक भी मौका नहीं छोड़ने वाली. वैसे आप को अभी ये सोचना चाहिए कि आखिर क्यों जनता ने उन्हें नकार कर बीजेपी को मौका दिया. आखिर उनसे क्या गलती हुई. कारण कोई भी इंसान या समूह या राजनीतिक दल अगर अपनी गलतियों से नहीं सीखता तो वो इतिहास का हिस्सा बन जाता है.

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ये दो बयान बता रहे माहौल गर्म रहेगा

कालकाजी सीट से विधायक आतिशी ने बैठक के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा कि सभी विधायकों को जनता की सेवा में पूरी तरह से समर्पित होने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने लिखा, "अरविंद केजरीवाल जी ने आम आदमी पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों से मुलाकात की. सभी विधायकों को जनता की सेवा करने का निर्देश दिया. भाजपा ने वादा किया है कि पहली कैबिनेट में महिलाओं के लिए 2500 रुपये प्रतिमाह देने का प्रस्‍ताव पास करेंगे, और 8 मार्च से हर महिला के खाते में ये पैसे आने शुरू होंगे. हम भाजपा से यह वादा पूरा करवायेंगे."

आम आदमी पार्टी के विधायक संजीव झा ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि बैठक में चर्चा हुई कि हमारे 22 विधायकों की सदन में क्‍या भूमिका होगी. हमें यह तय करना है कि जो वादे भारतीय जनता पार्टी ने किए हैं या पिछले 10 सालों में जो काम नहीं हुए, उनका क्रियान्वयन कैसे किया जाएगा और किस तरह से बीजेपी को सदन में घेरना है. हम महि‍लाओं को हर माह 2500 रुपये देने की बीजेपी की घोषणा पर अमल कराने के ल‍िए दबाव बनाएंगे.

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आखिर किस-किस की हार

2020 में 53.6 फीसदी मत लाकर 62 सीटें झटकने वाली आम आदमी पार्टी अगर 2025 में 43.57 फीसदी पर लुढ़क गई और फिर भी वो उस पर विचार न कर उल्टा नई सरकार से पहले दिन से ही टकराने का इरादा रखे तो ये गंभीर चिंता का विषय है. दिल्ली की जनता के लिए तो है ही, साथ ही आम आदमी पार्टी के लिए भी. इस बार AAP के 37 में से 15 सीटिंग विधायक ही जीते हैं. बाकी सभी हार गए. मतलब जनता में इनके खिलाफ नाराजगी थी. अगर इन्होंने अपने क्षेत्र में काम किया होता तो हार का स्वाद नहीं चखना पड़ता. जिन 15 विधायकों ने काम किया, वो जीतने में कामयाब रहे. साफ है कि दिल्ली की जनता ने काम के आधार पर वोट किया है. दूसरा, AAP के 33 नए उम्मीदवारों में से महज 7 ही जीत पाए. इसका मतलब कि AAP और उसके नेतृत्व में चल रही दिल्ली सरकार से भी के कामकाज को जनता ने पसंद नहीं किया. अगर सरकार के कामकाज को जनता पसंद करती तो विधायक बदले जाने पर नये उम्मीदवारों पर विजय दिला देती.

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कांग्रेस से गठबंधन करते तो बनती बात

इन विपरीत स्थितियों में केजरीवाल की सरकार फिर से बन सकती थी. अगर वो कांग्रेस से गठबंधन कर लेते तो अभी सरकार में होते. 2025 विधानसभा चुनाव में आप को 43.57 फीसदी और कांग्रेस को 6.34 फीसदी वोट मिले. दोनों के वोट शेयर को मिला दें तो वोट शेयर 49.9 फीसदी पहुंच जाता है. वहीं बीजेपी को इस चुनाव में 45.45 फीसदी वोट मिले हैं. जाहिर है, केजरीवाल को उम्मीद नहीं थी कि उनका वोट शेयर इतना गिर जाएगा और कांग्रेस का बढ़ जाएगा. कारण 2024 लोकसभा चुनाव में AAP-कांग्रेस मिलकर लड़े तो उनका वोट शेयर 42.53% ही रहा था. इसलिए केजरीवाल ये मानकर चल रहे थे कि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उन्हें घाटा ही होगा और उन्होंने कांग्रेस से दूरी बना ली. हालत ये हुई कि दिल्ली में पहली बार 43.6% वोट पाकर भी कोई पार्टी चुनाव हार गई है.

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क्या केजरीवाल की मुसीबतें बढ़ेंगी

देखना ये है कि अपनी गलतियों को आने वाले समय में केजरीवाल सुधारते हैं या उसी राह पर चलते हैं. दिल्ली के चुनाव में साफ समझ आया कि दिल्ली की जनता विवाद नहीं, काम चाहती है. इसीलिए बीजेपी को वोट दिया है कि किसी तरह का विवाद नहीं हो. आप को जो 43.57 फीसदी वोट मिले हैं, उनमें से ज्यादातर वोट उनकी योजनाओं के दम पर मिले हैं. अब नई सरकार बनने वाली है तो जाहिर है कि वो अपनी योजनाएं चलाएगी और जिस तरह के वादे बीजेपी ने दिल्ली की जनता से किए हैं, वो अगर पूरे कर देती है तो केजरीवाल के हाथ से ये वोट बैंक भी फिसल जाएगा. बीजेपी के खिलाफ वाला वोट कांग्रेस वापस हासिल भी कर सकती है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल के लिए समस्याएं आने वाले दिनों में और बढ़ सकती हैं.  
 

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