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This Article is From Dec 16, 2012

'सेना के अस्पतालों ने 109 साल के लिए दवाएं खरीद लीं'

नई दिल्ली:
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा (एएफएमएस) के कुछ अस्पतालों द्वारा दवाओं की खरीद पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इनमें से कुछ की खरीद में 100 गुणा तक अधिक कीमत अदा की गई।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘कुछ औषधियों के मामले में ओवर स्टॉकिंग इतनी अधिक थी कि औसत मासिक अनुरक्षण संख्या के आधार पर यह छह से 109 वर्ष की आवश्यकता की पूर्ति करती।’’ इतनी अधिक मात्रा में दवाओं की खरीद पर कैग ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि इसमें से अधिकतर औषधियों का जीवनकाल दो साल में समाप्त हो जाएगा।

कैग ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में इन अस्पतालों में 12 प्रतिशत चिकित्सा अधिकारियों की कमी, तीन साल में सशस्त्र सेना चिकित्सा महाविद्यालय के माध्यम से भर्ती 508 में से 73 चिकित्सा कैडटों के सेवा छोड़ने, 190 विशेषज्ञों के पलायन और सेना के विभिन्न अस्पतालों में 22,108 उपकरणों की कमी पर भी गहरी चिंता जताई है।

रिपोर्ट में इन कमियों पर चिंता जताते हुए कहा गया है, ‘‘सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवाएं (एएफएमएस) युद्ध और शांति दोनों में रक्षा सेवाओं की संकटकालीन संभार-तंत्र शाखाओं में से एक है। इसका उद्देश्य सशस्त्र बल कर्मियों तथा उनके परिवारों के स्वास्थ्य को बनाए रखना एवं बेहतर बनाना है।’’ सैन्य क्षेत्रों में 90 सैन्य अस्पतालों के अतिरिक्त देशभर में फैले विभिन्न बेड क्षमताओं के 133 मिलिटरी अस्पताल हैं।

अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि सेना के इन अस्पतालों में मार्च 2011 तक 298 यानी 14 प्रतिशत विशेषज्ञों की कमी थी। एमबीबीएस चिकित्सकों को विशेषज्ञों के रूप में श्रेणीबद्ध किया जाता है।

इसमें कहा गया है कि इसी तरह इन अस्पतालों में नर्सों तथा अर्द्धचिकित्सा कार्मिकों की भी भारी कमी है। कुछ अस्पतालों में तो इनकी 39 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई है।

कैग ने कहा है कि उसने जिन 28 अस्पतालों का निरीक्षण किया उनमें से अधिसंख्य में पोर्टेबल मल्टी चैनल ईसीजी, बेड-साइड मानिटर हार्ट रेट डिस्पले, डीसी डेफिब्रिललेटर, नेबुलाइजर इलेक्ट्रिक, पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड यूनिट जैसे उपकरणों की गंभीर कमी पाई गई। स्ट्रेचर एंबुंलैंसों की कमी के उल्लेख में रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई 2008 से जुलाई 2011 के दौरान ऐसी एंबुलैंसों का अभाव 48 प्रतिशत से बढ़ कर 57 प्रतिशत तक हो गया।

इसमें बताया गया है कि एक्स-रे मशीनों की सभी 227 पालीक्लीनिक में व्यवस्था की गई थी। लेकिन उनके परिचालन के लिए रेडियोग्राफर 79 पालीक्लीनिक के लिए स्वीकृत नहीं किए गए। ऐसे में कई जगहों पर एक्स-रे मशीनें उपयोग में नहीं लाई जा सकीं।

रपट में उपकरणों की निष्क्रियता पर गहरी चिन्ता का इजहार करते हुए कहा गया है कि गैरसैन्य स्टेशनों में कर्मियों के उपचार के लिए पैनल वाले अस्पतालों पर आश्रित रहना पड़ता है। 15 गैरसैन्य स्टेशनों पर पैनल वाला कोई भी अस्पताल उपलब्ध नहीं था जिससे कार्मिक चिकित्सकीय उपचार से वंचित रहे।

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