
- पश्चिमी दुनिया के कई हिस्सों में अप्रवासियों के खिलाफ प्रदर्शनों की एक नई लहर तेजी से जोर पकड़ती जा रही है.
- मध्य लंदन में एक विशाल एंटी इमिग्रेशन प्रदर्शन में 1,10,000 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने हिस्सा लिया.
- आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रवादी बयानबाजी और चुनाव-पूर्व राजनीति से यह गुस्सा भड़क रहा है.
पश्चिमी दुनिया के कई हिस्सों में अप्रवासियों के खिलाफ प्रदर्शनों की एक नई लहर तेजी से जोर पकड़ती जा रही है. ब्रिटेन में हफ्तों तक चली घटनाओं के बाद अब ऑस्ट्रेलिया से ऐसी ही खबरें चिंता बढ़ा रही हैं. ये दो ऐसे देश हैं, जहां प्रवासी और छात्र समुदायों में भारतीयों की एक बड़ी हिस्सेदारी है. दोनों देशों में आम चुनाव नजदीक आने के साथ ही इमिग्रेशन एक ज्वलंत मुद्दा बनता जा रहा है. हालांकि भारत इस पर कड़ी नजर रख रहा है.
मध्य लंदन में शनिवार को एक विशाल एंटी इमिग्रेशन प्रदर्शन में 1,10,000 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने हिस्सा लिया. विश्लेषकों ने इसे आधुनिक वक्त में ब्रिटेन का सबसे महत्वपूर्ण अति-दक्षिणपंथी आंदोलन बताया है. दक्षिणपंथी नेता टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व में आयोजित "यूनाइट द किंगडम" रैली में देश भर से लोग शामिल हुए और यह रैली जल्द ही हिंसा में बदल गई, जिसके परिणामस्वरूप कई पुलिस अधिकारी घायल हो गए.

क्यों भड़क रहा है गुस्सा?
ब्रिटेन में पिछले एक महीने में नोजली, लॉटन और केंट के कुछ हिस्सों में कम से कम तीन से चार इमिग्रेशन विरोधी मुद्दे उभरे हैं. प्रदर्शनकारियों ने प्रवासी आवास सुविधाओं के बाहर रैली निकाली है और सार्वजनिक संसाधनों पर दबाव का आरोप लगाया. हालांकि आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रवादी बयानबाजी और चुनाव-पूर्व राजनीति से यह गुस्सा भड़क रहा है. ब्रिटेन में 12 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं, जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर और छात्र शामिल हैं. अब इस बहस का लहजा चिंताजनक है. भारतीय पेशेवर स्वास्थ्य सेवा और तकनीक जैसे क्षेत्रों की रीढ़ हैं, फिर भी जमीनी स्तर पर उन्हें बढ़ती दुश्मनी का सामना करना पड़ रहा है.
ऑस्ट्रेलिया में भी ब्रिटेन जैसे ही हालात
जहां ब्रिटेन इमिग्रेशन को लेकर बढ़ते तनाव से जूझ रहा है, वहीं ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसी ही अशांति फैल रही है. ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रवासियों और छात्रों को भी बढ़ती दुश्मनी का सामना करना पड़ रहा है. इसकी वजह भीड़भाड़, आवास की कमी और अंतरराष्ट्रीय छात्रों से शिकायतें मानी जा रही हैं, जिनमें से कई भारतीय हैं. भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया की शिक्षा अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर का योगदान करते हैं, अचानक खुद को जनता के आक्रोश के तूफान में फंसा पाते हैं.
जीवन-यापन की बढ़ती लागत ने जनता की हताशा को बढ़ा दिया है, जिसके कारण अक्सर अप्रवासी समुदायों को भुगतना पड़ता है. ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया दोनों में महत्वपूर्ण चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दल समर्थन हासिल करने के लिए राष्ट्रवादी संदेशों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस बीच, प्रवासियों के बारे में गलत सूचनाएं तेजी से फैल रही हैं, जिससे विभाजन और भय ज्यादा गहरा हो रहा है.
इसलिए बढ़ रहा है तनाव
- जीवन-यापन की लागत का संकट
- ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में चुनाव
- राष्ट्रवादी संदेश
- प्रवासियों के बारे में गलत सूचना
लेकिन इस प्रतिक्रिया को चुनौती दिए बिना नहीं छोड़ा जा रहा है. दोनों देशों के नागरिक अधिकार समूह और प्रवासी समर्थक बलि का बकरा बनाने की निंदा कर रहे हैं. साथ ही सरकारों से कानूनी प्रवास और भय फैलाने के बीच अंतर करने का आग्रह कर रहे हैं.
प्रवासी विरोधी भावनाएं और भड़कीं तो...
भारत इस पर कड़ी नजर रख रहा है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन दोनों में भारतीय प्रवासी सर्वाधिक हैं. भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में सालाना छह अरब डॉलर से अधिक का योगदान करते हैं. ब्रिटेन में, भारतीय पेशेवर राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. प्रवासी विरोधी भावनाओं के भड़कने से इन देशों के साथ भारत के महत्वपूर्ण रणनीतिक संबंधों पर असर पड़ सकता है.
- ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में प्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत
- भारतीय छात्रों का ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था में 6 अरब डॉलर का योगदान
- ब्रिटेन के NHS और तकनीक के लिए भारतीय पेशेवर महत्वपूर्ण
- अगर माहौल बिगड़ता है तो रणनीतिक संबंध तनाव में
राजनीतिक माहौल में बदलाव, निशाने पर प्रवासी
लंदन से मेलबर्न तक राजनीतिक माहौल बदल रहा है और प्रवासी तेजी से निशाने पर हैं. भारत के लिए यह सिर्फ विदेश नीति का मुद्दा नहीं है. यह विदेशों में रह रहे अपने लाखों नागरिकों की सुरक्षा, सम्मान और भविष्य का सवाल है। जैसे-जैसे विरोध प्रदर्शन तेज़ होते जा रहे हैं, सवाल यह है कि क्या राजनीति साझेदारियों पर भारी पड़ेगी?
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