इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतर-धार्मिक विवाह के बाद सुरक्षा की मांग करने वाले एक जोड़े द्वारा दायर याचिका पर राहत देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जोड़े की शादी उत्तर प्रदेश निषेध धर्म परिवर्तन अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करती है. न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने यह आदेश मुरादाबाद और अन्य जिलों के कई याचिकाकर्ताओं की अलग-अलग याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया.
यह शादी कानून के तहत वैध नहीं...!
इस कपल ने अदालत से अनुरोध किया था कि वह परिवार को उनके वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप बंद करने के लिए कहे और अपनी जान को खतरा बताते हुए अपनी सुरक्षा की मांग की थी. कोर्ट ने कहा कि यह विपरीत धर्म के जोड़े की शादी का मामला है. शादी से पहले धर्म परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. इसलिए, यह शादी कानून के तहत वैध नहीं है, अदालत ने कहा, इस शादी में धर्मांतरण विरोधी कानून का पालन नहीं किया गया.
कानूनी प्रक्रिया का पालन करते, तो...
हालांकि, अदालत ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बाद शादी करते हैं, तो वे नए सिरे से सुरक्षा की मांग कर सकते हैं. 2021 में पारित धर्मांतरण विरोधी कानून गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी रूपांतरण पर रोक लगाता है. कुल आठ याचिकाओं में से पांच मुस्लिम युवकों ने हिंदू महिलाओं से और तीन हिंदू युवकों ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी.
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्यों द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित हैं.
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