बहुचर्चित AGR (Adjusted Gross Revenue) मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को सुनवाई की. कोर्ट ने बकाया में PSU (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स) को जोड़ने पर DoT (डिपोर्टमेंट ऑफ टेलीकॉम) को जमकर फटकार लगाई और कहा कि DOT हमारे फैसले का दुरुपयोग कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि PSU से 4 लाख करोड़ रुपये के बकाया की मांग पूरी तरह अनुचित है और DoT अधिकारी एक हलफनामा दाखिल कर बताएं कि ऐसा क्यों किया गया. जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, 'हमारे फैसले का गलत इस्तेमाल किया गया, हम उन्हें सजा देंगे! आप 4 लाख करोड़ से अधिक की मांग कर रहे हैं!' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2019 के फैसले को सार्वजनिक उपक्रमों से बकाया मांगने का आधार नहीं बनाया जा सकता था. अदालत ने DOT को कहा कि वो PSU से बकाया मांगने के मुद्दे पर फिर से विचार करे. मामले में अगली सुनवाई 18 जून को होगी.
जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि उस समय सीमा में क्या गारंटी है कि टेलीकॉम कंपनियां पैसा देंगी, इसके साथ ही तय समय सीमा में पैसा जमा करने का क्या तरीका होगा. क्या होगा अगर कंपनियों में से कोई लिक्विडशन (दिवालिया) में जाता है,फिर भुगतान कौन करेगा? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि उसके फैसले के आधार पर बकाया के लिए टेलीकॉम कपंनियों के साथ- साथ PSU को भी क्यों शामिल किया गया.कोर्ट ने कहा कि PSU को इस दायरे से बाहर निकालना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या टेलीकॉम कंपनियों ने कोविड फंड में पैसा दिया है. इस पर एयरटेल की ओर से कहा गया कि उसने PM cares फंड में 100 करोड दिए हैं जबकि टाटा ने कहा कि उसने 1500 करोड रुपये दिए हैं. मामले में टेलीकॉम कंपनियों ने AGR के मुद्दे पर और समय मांगा है.
AGR बकाया के भुगतान पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से समय सीमा पूछी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि उसके फैसले के आधार पर बकाया के लिए टेलीकॉम कपंनियों के साथ-साथ PSU को भी क्यों शामिल किया गया. कोर्ट ने कहा कि PSU को इस दायरे से बाहर निकालना चाहिए. जस्टिस मिश्रा ने कहा, 'हर दिन मैं सोचता हूं कि हमारे फैसले का किस तरह से इस्तेमाल और दुरुपयोग हुआ है. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) ने कहा कि सार्वजनिक उपक्रमों के पास दूरसंचार स्पेक्ट्रम हैतो अदालत ने कहा कि 30 साल से कोई मांग क्यों नहीं की गई लेकिन पिछले साल हमारे फैसले के बाद उनसे बकाया मांगा गया.इससे पहले मामले में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए SG ने कहा कि सार्वजनिक उपक्रम स्वयं में एक वर्ग बनाते हैं और सार्वजनिक कार्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर AGR बकाया को लागू करना सार्वजनिक हित नहीं हो सकता है. ऐसे कुछ सार्वजनिक उपक्रम हैं जो अपने लिए एक वर्ग बनाते हैं. वे सरकार के कार्यों का निर्वहन करते हैं.ये सार्वजनिक उपक्रम वाणिज्यिक शोषण के लिए अन्य दूरसंचार प्रदाताओं की तरह मोबाइल सेवाएं प्रदान नहीं कर रहे हैं. इन कंपनियों से निजी क्षेत्र के दूरसंचार प्रदाताओं की तुलना में अलग तरीके से व्यवहार करने की आवश्यकता है. SG तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने मामले की जांच की है. अगर एक ही बार में सारी रकम मांगी जाए तो अर्थव्यवस्था पर इससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. एक बार में सभी टेलीकॉम बकाया मांगे जाने पर टेलीकॉम सेवाओं को नुकसान होगा और कुछ बंद हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि यदि अदालत ने इसे प्रभावित किया तो दूरसंचार क्षेत्र, प्रभाव नेटवर्क पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी और अंततः उपभोक्ताओं को नुकसान होगा.
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